इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 95 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु आगरा नामक स्थान पहुंचे थे। इस आगरा नामक स्थान के संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने संपूर्ण परिवार और सेवादारों सहित चलकर आगरा नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस आगरा शहर की निवासी माई जस्सी जिन्होंने बीस हाथों लंबा खादी का थान स्वयं बनाकर गुरु जी के चरणों में अर्पित करने हेतु रखा हुआ था। साथ ही यह गुरु जी की असीम भक्त, सेवादारनी अरदास (प्रार्थना) करती थी कि गुरु जी का कब आगरा शहर में आगमन होगा? और कब में गुरु जी को खादी का थान अर्पित करूंगी? ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने पूरे परिवार सहित आगरा शहर में माई जस्सी के पास पहुंचे थे। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार इस स्थान पर गुरुद्वारा माई थान साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है।
आगरा शहर के समीप ही एक विशाल, विलोभनीय सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत गुरुद्वारा साहिब जी ‘गुरु का ताल’ पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस गुरुद्वारा ‘गुरु के ताल’ का संपूर्ण विस्तार से इतिहास का वर्णन इस श्रृंखला के अंतर्गत जब गुरु पातशाह जी के शहीदी मार्ग के इतिहास को लिखा जाएगा तो उस समय गुरुद्वारा ‘गुरु के ताल’ के इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
आगरा शहर को सिख धर्म के चार और गुरुओं ने अपने चरणों चिन्हों से चिन्हित किया है। गुरुद्वारा माई जस्सी के स्थान पर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ भी पधारे थे। इस शहर आगरा में छठी पातशाही ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा दमदमा साहिब जी पातशाही 6वीं सुशोभित है। इस स्थान पर दशम पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा हाथी घाट साहिब जी पातशाही दसवीं भी सुशोभित है।
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी माई जस्सी के पास दो बार पधारे थे। जब दूसरे समय ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को आगरा से गिरफ्तार किया गया था तो उस समय में भी गुरु पातशाह जी गुरुद्वारा ‘गुरु का ताल’ नामक स्थान पर पधारे थे। गुरुद्वारा ‘गुरु का ताल’ का इतिहास भविष्य में इस श्रृंखला के शहीदी मार्ग के प्रसंगों में विस्तार से वर्णित किया जाएगा। कैसे ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को गिरफ्तार करके दिल्ली लेकर गए थे? आप जब भी दर्शनों के लिए आगरा शहर में गुरुद्वारा माई जस्सी के स्थान पर पहुंचेंगे तो इस स्थान पर 300 वर्ष पुरातन ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का स्वरूप सुशोभित है। जिसमें एक पत्थर के छापों द्वारा अंकित ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की बीड़ (पोथी साहिब जी) सुशोभित है। साथ ही ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के सबसे छोटे स्वरूप (एक इंच बाय एक इंच) भी इस गुरुद्वारा साहिब जी में सुशोभित है एवं स्वर्ण स्याही से अंकित एक ऐतिहासिक पुरातन बीड़ (पोथी साहिब जी) गुरुद्वारा साहिब जी में सुशोभित है। विशेष रूप से ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का उर्दू भाषा में लिखित भी एक पुरातन स्वरूप इस स्थान पर सुशोभित है। एक हस्तलिखित बीड़ (पोथी साहिब जी) ‘श्री दसम ग्रंथ साहिब जी’ की भी इस गुरुद्वारा माई थान साहिब जी में सुशोभित है।
इस शहर आगरा से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी भविष्य की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु कौन से स्थान पर गए थे? इस पूरे इतिहास से संगत (पाठकों) को प्रसंग क्रमांक 95 में रूबरू कराया जाएगा।