इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 94 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु मथुरा नामक स्थान पहुंचे थे। इस मथुरा नामक स्थान के संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ सोनीपत से चलकर अपने संपूर्ण परिवार और सेवादारों के साथ दिल्ली से यात्रा करते हुए मथुरा नामक स्थान पर पहुंचे थे। मथुरा शहर के होली गेट (दरवाजा) के समीप ही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। इसी स्थान पर गुरु जी के डेरे ने पड़ाव डाला था। इसी स्थान से गुरु पातशाह जी पवित्र गंगा नदी के विश्राम घाट पर स्नान करने जाते थे। एवं स्थानीय संगत को नाम-वाणी से भी जोड़ते थे। इस स्थान पर तीन दिनों तक गुरु जी ने विश्राम किया था एवं अपनी भविष्य की यात्रा हेतु मार्गस्थ हो गए थे। इसके पश्चात यह ऐतिहासिक स्थान उदासीन संप्रदाय के अनुयायियों के अधीन रहा। इस स्थान पर पहुंचने के बाद ज्ञात हुआ कि ‘कंस टीले’ नामक स्थान के पास एक छोटा सा गुरुद्वारा साहिब भी स्थित है। सन् 1984 ई. के पूर्व इस गुरुद्वारा साहिब जी में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश होता था परंतु सन् 1984 ई. में इस स्थान से जब सिखों ने पलायन कर दिया तो इस स्थान की उदासीन संप्रदाय के अनुयायियों के द्वारा देखरेख की जा रही है। वर्तमान समय में इस स्थान पर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश नहीं होता है।
सन् 1960 ई. में होली गेट (दरवाजा) के समीप स्थित पुरातन ऐतिहासिक गुरुद्वारा उदासीन संप्रदाय के द्वारा स्थानीय संगत को स्वाधीन कर दिया गया था। सन् 1977 ई. में स्थानीय प्रबंधकों की महान सेवा के द्वारा इस गुरुद्वारा परिसर में सिख इतिहास से संबंधित एक संग्रहालय का भी निर्माण किया गया था। साथ ही कक्षा आठवीं तक की शिक्षा का प्रबंध भी इस स्थान पर स्थित विद्यालय से विद्यार्थियों के लिए किया गया था।
सन् 1984 ई. में जब सिखों का नरसंहार हुआ था तो उस समय इस दंगे की आग ने इस मथुरा शहर को भी कलंकित किया था। इस मथुरा शहर में सुशोभित अलग-अलग गुरुद्वारों में 17 सिखों का नरसंहार कर ‘शहीद’ किया गया था। बर्बरता की ऐसी हद थी कि ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के ताबे पर बैठे हुए ग्रंथी सिंह जो की सिंधी धर्म के अनुयायी थे उनके ऊपर ज्वलनशील तेल डालकर उन्हें निर्दयता से जला दिया गया था। इस अग्निकांड में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ को भी आग की लपटों में झोंक दिया गया था, साथ ही इस संपूर्ण गुरुद्वारा साहिब जी को भी आग की लपटों में झोंक दिया गया था। यह संपूर्ण जानकारी गुरुद्वारा ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की वर्तमान सेवा कर रही प्रबंधक कमेटी से ज्ञात हुई थी। इस स्थान पर बहुत ही निर्दयता और बर्बरता से सन् 1984 ई. में सिखों का नरसंहार कर ‘शहीद’ किया गया था। इस दुखद घटना की जानकारी स्थानीय प्रबंधक कमेटी से प्राप्त हुई थी। वर्तमान समय में भी यह गुरुद्वारा उसी जली हुई हालत में ही स्थित है। इस जले हुए भवन के पुनर्निर्माण की पुनः आवश्यकता है। होली गेट (दरवाजा) पर स्थित इस गुरुद्वारे के दर्शन से सन् 1984 ई. में हुए सिखों के नरसंहार की विभीषिका को समझकर विश्लेषित किया जा सकता है।
इस स्थान के समीप ही ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ से संबंधित दो ऐतिहासिक स्थान और मौजूद हैं। एक गुरुद्वारा टीला साहिब जी जो कि इस स्थान पर मौजूद टीले के ऊपर सुशोभित है। दूसरा गुरुद्वारा ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की बगीची अर्थात गुरुद्वारा बगीची साहिब जी पातशाही प्रथम। इस स्थान पर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने स्वयं अपने कर-कमलों से एक बगीचे का निर्माण किया था। इस स्थान पर संगत के लिए निवास और लंगर की उत्तम व्यवस्था प्रबंधक कमेटी की ओर से की गई है।
इस श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 94 में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ मथुरा नामक स्थान से चलकर अपनी भविष्य की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के लिए कौन से स्थान पर गए थे? इस संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को रूबरू कराया जाएगा।