इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 93 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु सोनिपत नामक स्थान पहुंचे थे। इस सोनिपत नामक स्थान के संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ बनी-बदरपुर से चलकर अपने संपूर्ण परिवार और सेवादारों के साथ पानीपत के मार्ग से, सोनीपत नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्वर्णिम इतिहास को डॉ॰ गंडा सिंह जी (प्रसिद्ध सिख इतिहासकार) ने भी स्वयं लिखित इतिहास में रचित किया है। सोनीपत नामक स्थान पर एक मिश्रा नामक व्यापारी निवास करता था, जिसका की घोड़ों की खरीद-फरोख्त का भी व्यवसाय था। स्थानीय व्यापारी मिश्रा जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की छत्रछाया में आया तो एक उत्तम इंसान और सेवादार ही नहीं बना अपितु स्थानीय ग्रामीणों को भी नाम-बंदगी और इंसानियत के जीवन मूल्य से जोड़कर उत्तम जीवनयापन का मार्ग इस गुरु जी के भक्त मिश्रा जी लोगों को बताया था। साथ ही इस स्थान पर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के नाम से एक धर्मशाला भी स्थापित की थी। गुरु जी की यात्रा के पश्चात इस धर्मशाला में संगत का आवागमन प्रारंभ हो गया और सभी स्थानीय संगत नाम-वाणी से जुड़ने लगी थी। कुछ समय के अंतराल के पश्चात भाई मिश्रा जी का यह निवास स्थान ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की संगत के रूप में प्रस्थापित हो चुका था। जब इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम सोनीपत नामक स्थान पर पहुंची तो इस स्थान पर स्थानीय नागरिकों से प्राप्त जानकारी अनुसार ज्ञात हुआ कि शहर सोनीपत में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में अत्यंत विशाल और विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है।
इस स्थान के स्थानीय बुजुर्गों से ज्ञात हुआ कि इस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के चरण-चिन्हों से अंकित पुरातन ऐतिहासिक गुरुद्वारा सब्जी मंडी के पास राज मोहल्ले की गलियों में सुशोभित है। जब हम इस ऐतिहासिक वास्तु के रूप में सुशोभित गुरुद्वारा साहिब जी में प्रवेश करते हैं तो इस स्थान पर दाहिने हाथ पर एक पुरातन कुआं स्थित था। कालांतर में यह कुआं जमींदोज हो गया और इस स्थान पर एक कमरे का निर्माण कर दिया गया, इसी स्थान पर दाहिने हाथ पर स्थित इस वास्तु में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश भी है और इसी स्थान पर ही भाई मिश्रा जी भी निवास करते थे।
सन् 1974 ई. में जब इस वास्तु की दीवार को तोड़ा गया था तो इस दीवार से कुछ पुरातन शस्त्र प्राप्त हुए थे। इन शास्त्रों में दो श्री साहिब (कृपाण) एक गेंडे़ के चमड़े से बना हुआ ढाल और शीश पर बांधे जाने वाली दस्तार (पगड़ी) पर सुशोभित होने वाले चार चक्र इस दीवार के तोड़ने पर प्राप्त हुए थे। वर्तमान समय में भी इन प्राप्त शस्त्रों को एक सुंदर अलमारी में सजा कर रखा हुआ है। इस स्थान पर स्थानीय बुजुर्गों ने पुरातन गुरुद्वारा साहिब के दरवाजे को भी इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम को दर्शन करवाए थे। यह पुरातन ऐतिहासिक महत्व के दरवाजों को भी उत्तम स्थिति में स्थानीय प्रबंधक कमेटी ने सहजकर, संभाल कर रखा हुआ है।
स्थानीय संगत ने इस शहर में गुरु जी की स्मृति में विशाल, विलोभनीय गुरुद्वारे का निर्माण किया है परंतु इस पुरातन ऐतिहासिक गुरु जी के चरण-चिन्हों से चिन्हित स्थान पर भी संगत बहुत ही प्रेम व श्रद्धा पूर्वक जुड़कर दर्शन करती हैं। इस स्थान से संगत की अत्यंत आस्था जुड़ी हुई है, जो भी संगत इस स्थान पर उपस्थित होकर श्रद्धा से और सच्चे दिल से अरदास (प्रार्थना) करती है वह निश्चित ही पूर्ण होती है। यह पुरातन गुरुद्वारा साहिब सोनीपत नामक स्थान पर सब्जी मंडी के निकट स्थित राज मोहल्ले की गलियों में सुशोभित है।
इस स्थान सोनीपत को ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपने चरण कमलों से पवित्र करते हुए असम की यात्रा की और इस स्थान से चलकर, दिल्ली से यात्रा करते हुए, कौन से पवित्र एवं ऐतिहासिक स्थान पर गुरु पातशाह जी पहुंचे थे? इस संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 94 में रूबरू कराया जाएगा।