इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 92 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु ग्राम बनी-बदरपुर नामक स्थानों पहुंचे थे। इस ग्रामों के संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
सलेमपुर से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम खानपुर में पहुंचे थे। इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम जब खानपुर नामक ग्राम में पहुंची तो खानपुर की (फिरनी) सीमा के बाहरी इलाके में ही गुरु पातशाह जी की स्मृति में भव्य, विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस गुरुद्वारा साहिब जी की दीवार पर अंकित है कि–
‘गुरु साहिब जी ने इस स्थान पर दोपहर का समय व्यतीत किया था’ अर्थात आराम किया था। इस गुरुद्वारा परिसर में एक (बोहड़) बरगद का वृक्ष भी मौजूद है। जब गुरुद्वारा साहिब जी के दर्शन कर इतिहास जानने का प्रयत्न किया तो पता चला कि इस गुरुद्वारे का प्रबंध पुरातन समय से ही गुरु जी के सेवक परिवार के पास ही है। वर्तमान समय में इस सेवक परिवार के प्रमुख सरदार जसबीर सिंह जी और सरदार जगत सिंह जी इसका प्रबंधन-संचालन कर रहे हैं। इन सेवक परिवार के प्रमुखों ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे पूर्वज तरनतारन नामक स्थान से आकर इस ग्राम में बस गए थे। हमारे पूर्वजों ने इस स्थान पर निवास करने वाले खानों से एक किला खरीदा था। इस पुरातन किले के अवशेष के रूप में वर्तमान समय में केवल एक पुरानी दीवार इस स्थान पर स्थित है।
इसी स्थान के समीप गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ सुशोभित है। इस स्थान पर वर्तमान समय में बरगद का वृक्ष है। इसी स्थान पर पुरातन समय में पीपल का वृक्ष भी स्थित था। इस परिवार के पूर्वजों में से भाई खुशाला जी चौधरी को जब ज्ञात हुआ कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान से गुजर रहे हैं तो उन्होंने गुरु जी को विनम्र निवेदन कर इस स्थान पर गुरु पातशाह जी के विश्राम की व्यवस्था की थी। भाई खुशाला जी ने गुरु जी की सेवा में समर्पित होकर लंगर की सेवा भी की थी। गुरु पातशाह जी ने भी भाई खुशाला जी पर अनेक बक्शीश की थी। गुरु जी की बक्शीशों का आनंद वर्तमान समय में भी भाई खुशाला जी का परिवार मान रहा है। इस परिवार ने ही वर्तमान समय में इस स्थान पर सुशोभित गुरुद्वारा साहिब जी का निर्माण किया है और गुरुद्वारा साहिब का प्रबंधन-संचालन भी यही परिवार कर रहा है। पुरातन समय का पीपल का वृक्ष वर्तमान समय में मौजूद नहीं है परंतु वर्तमान समय में गुरुद्वारा परिसर में (बोहड़) बरगद का वृक्ष मौजूद है।
इस स्थान खानपुर से चलकर गुरु पातशाह जी 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम बनी, बदरपुर पहुंचे थे। बनी और बदरपुर दो अलग-अलग ग्रामों के नाम है। इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम ने वहां पहुंचकर स्थानीय ग्रंथी सिंह जी से इस स्थान के इतिहास की जानकारी प्राप्त हुई’ वह इस प्रकार से है–
जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का इस स्थान पर आगमन हुआ था तो स्थानीय संगत उनके दर्शन-दीदार करने हेतु पहुंची थी। गुरु जी ने स्थानीय संगत को नाम-वाणी से जोड़ कर, उपदेशित किया था। स्थानीय निवासियों ने गुरु पातशाह जी को अपनी कठिनाई बताते हुए कहा कि इस स्थान पर पीने के पानी की बहुत ज्यादा कमी है। जिस के कारण हमें अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गुरु पातशाह जी ने इस इलाके के मुखिया रामबख्श को अपने सम्मुख बुलाकर संगत के सामने भरी सभा में धन की एक थैली (जिसे माया की बदर) भी कहा जाता है को रामबक्श को दे दी और वचन करते हुए कहा कि लोक-कल्याण के लिए इस स्थान पर कुओं का निर्माण कर सुंदरबाग भी स्थापित किया जाए। साथ ही नाम-वाणी के प्रवाह को चलाते हुए स्थानीय संगत को नाम-वाणी से जोड़ कर रखें। इस स्थान पर संगत के साथ पंगत भी चलती रहना चाहिए अर्थात गुरु के अटूट लंगर निरंतर चलते रहना चाहिए। साथ=साथ सभी प्रकार के लोक-कल्याण के कार्य संगत के लिए निरंतर चलते रहना चाहिए। ऐसा वचन कर गुरु पातशाह जी ने वह धन की थैली सेवादार रामबख्श के सुपुर्द कर दी थी। इस धन की थैली को रामबक्श को प्रदान कर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ दिल्ली के रास्ते से मथुरा नगर की ओर प्रस्थान कर गए थे।
गुरु जी जब पटना साहिब से पुन: सुबा पंजाब में पधारे तो दूसरे समय इस स्थान की यात्रा करते हुये आप जी बनी और बदरपुर नामक स्थानों पर भी पधारे थे तो गुरु जी को ज्ञात हुआ था कि रामबक्श चौधरी को दी हुई माया को उसने स्वयं के निजी कार्यों के लिए उपयोग कर लिया था और किसी भी प्रकार के कोई कुएं और बाग का निर्माण नहीं किया था। गुरु जी ने राम बक्श के इस कार्य की निंदा भी की थी और गुरु पातशाह जी ने पुनः एक बार स्थानीय संगत को जोड़कर प्रेरणा दी थी और स्वयं के कर-कमलों से इस स्थान पर सात कुओं का निर्माण किया था। वर्तमान समय में गुरुद्वारा साहिब के पीछे वाले हिस्से में से एक कुआं आज भी सुस्थिति में मौजूद है। इस कुएँ को संगत की और से पुनः पुनर्जीवित कर, पुनर्निर्माण भी किया जा रहा है। मिली जानकारी अनुसार इस स्थान पर स्थित एक कुआं जमींदोज हो चुका है परंतु पुरातन पांच कुओं के संबंध में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। ग्राम के इसी स्थान पर पुरातन समय में गुरु का बाग स्थित था। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारे की सीमा की दीवार है और निशान साहिब भी शान से झूल रहा है। इस स्थान पर पुरातन समय में एक छोटे कमरे में एक छोटी मंजी (आसन) साहिब भी थी परंतु इस समय कुछ नहीं है, हां इस स्थान पर शीघ्र ही भव्य गुरुद्वारा साहिब की इमारत का निर्माण (उसारी) होने जा रहा है।
इस स्थान का एक और इतिहास है कि वर्तमान समय से 15 वर्ष पूर्व जहां गुरुद्वारा बनी और बदरपुर सुशोभित है, उस स्थान पर नवीन गुरुद्वारे का जब निर्माण किया जा रहा था तो इस स्थान की जमीन को जब खोदा गया तो जमीन में से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की मंजी (आसन) प्रकट हुई थी। वर्तमान समय में जिस स्थान पर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश होता है, उस स्थान पर चबूतरा बना है और उसी स्थान पर पत्थर से बनी हुई मंजी (आसन) को जैसा का तैसा स्थानीय नगर वासियों ने सुशोभित कर, संभाल कर रखा हुआ है। बनी-बदरपुर नामक स्थान पर इस मंजी साहिब जी के भी दर्शन किए जा सकते हैं।
इस स्थान से चलकर, पंथ के महान विद्वानों के अनुसार गुरु पातशाह जी किस मार्ग की ओर गए हुए थे? इस पूरे इतिहास को श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 93 में संगत (पाठकों) को रूबरू कराया जायेगा|