‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ धमतान साहिब से चलकर ग्राम टेक नामक स्थान पर पहुंचे थे। पुरातन ग्रंथ और पुरातन ऐतिहासिक स्रोतों में इस ग्राम को टेक के नाम से ही संबोधित किया गया है परंतु नवीन इतिहास में इस ग्राम को ग्राम बैहर के नाम से संबोधित किया गया है। जब गुरु जी ग्राम बैहर पहुंचे तो इस ग्राम में एक तरखान (सुतार) भाई मल्ला जी, गुरु जी की सेवा में उपस्थित हुआ था। जब गुरु जी ने इस स्थान पर डेरे डालकर पड़ाव किया तो भाई मल्ला जी ने गुरु जी की समर्पित भाव से सेवा की थी। गुरु जी ने स्वयं धर्म प्रचार-प्रसार कर बड़ी संख्या में इस स्थान पर संगत को नाम-बंदगी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। स्थानीय ग्रामीण संगत ने गुरु जी के सम्मुख उपस्थित होकर निवेदन किया कि हमारी माली हालत ठीक नहीं है। हम सभी बहुत गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, आप जी कृपा करके हमारी गरीबी को दूर करो।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने वचन कर कहा कि तुम्हारे ऊपर निश्चित ही प्रभु-परमेश्वर की अपार कृपा होगी परंतु तुम सभी लोग अत्यधिक तंबाकू का सेवन करते हो, जब तक तुम अपने जीवन से इस तंबाकू के कोड़ को दूर नहीं करते, तब तक तुम्हारी माली हालत ठीक नहीं होगी और गरीबी की अवस्था बरकरार रहेगी। गुरु जी ने वचन कर कुछ परिवारों को कहा कि यदि तुम आज से अभी से तंबाकू का सेवन त्याग देते हो तो ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की अपार कृपा आप जी को तुरंत प्राप्त होना प्रारंभ हो जाएगी। इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब जी के इतिहास की लिखित तख्ती से भी ज्ञात हुआ कि इस स्थान पर पहुंचकर गुरु पातशाह जी ने त्रिलोका नाम के साधु को भी नाम-वाणी से जुड़ा था और गुरबाणी के उपदेशों से उपदेशित किया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा बैहर साहिब जी सुशोभित है। इस रमणीक स्थान पर सरोवर भी मौजूद है और संगत के लिए 24×7 गुरु के लंगरों का अति उत्तम प्रबंध किया गया है।
इस स्थान से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ 57 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम बारना नामक स्थान पर पहुंचे थे। मार्ग में स्थित ग्राम कैंथल नामक स्थान पर भी गुरु जी की स्मृति में दो भव्य गुरद्वारा साहिब जी सुशोभित है परंतु इन दोनों गुरुद्वारों के इतिहास का वर्णन जब गुरु जी के शहादत के मार्ग के इतिहास को जानेंगे तो उस समय में इन दोनों गुरुद्वारों के इतिहास के प्रसंगों से संगत (पाठकों) को अवगत करवाया जाएगा। जब गुरु पातशाह जी ग्राम बारना पहुंचे और जानकारी प्राप्त करके जानना चाहा कि इस स्थान पर ‘श्री गुरु नानक देव जी’ की सिक्खी को मानने वाला कोई सिख निवास करता है क्या?
उस समय गुरु पातशाह जी को ज्ञात हुआ कि इस स्थान पर एक ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ का सिख निवास करता है। वह सिख अभिवादन कर गुरु जी की सेवा में तुरंत उपस्थित हुआ था। जब गुरु जी ने उसको वचन कर कहा कि हम इस स्थान पर कुछ दिन निवास कर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार करना चाहते हैं। इस स्थान पर हमारे निवास का प्रबंध किया जाए तो उस समय उस सिख ने विनम्रता से निवेदन कर कहा कि गुरु पातशाह जी मेरे धन्य भाग्य है, आप मेरे निवास स्थान पर पधारे परंतु मेरे खेतों की पटवारी के द्वारा माप-तोल की जा रही है। मैं खेतों जाकर पटवारी द्वारा किए जा रहे माप-तोल को करवा कर तुरंत आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगा। गुरु पातशाह जी ने वचन किए की माप-तोल का कार्य तो चलता ही रहेगा। आप जी अपना मन सेवा में लगाएं परंतु इस सिख ने गुरु जी के वचनों को अनदेखी कर कहा कि यदि मैं खेतों में उपस्थित नहीं हुआ तो ऐसा ना हो कि पटवारी अपनी मर्जी से मेरे खेतों की माप-तोल अधिक कर देवें। इस कारण से सरकार को अधिक लगान कर के स्वरूप में देना पड़ सकता है।
गुरु पातशाह जी ने वचन किए की कोई बात नहीं उस प्रभु-परमेश्वर पर भरोसा रखो, तुम जाकर अपने खेतों की माप-तोल कराओ परंतु वहां जाकर एक निश्चित स्थान पर खड़े होकर उस करतार का स्मरण करते रहना और पटवारी अपने कार्य को स्वयं करते रहेंगे। इस सिख ने गुरु जी के वचनों का सम्मान किया और प्रभु-परमेश्वर पर भरोसा कर एक ही स्थान पर खड़ा रहा एवं जब पटवारी ने माप-तोल समाप्त किया तो 200 बीघा की जमीन कम-ज्यादा होकर 100 बीघा की माप-तोल में गणना कर प्राप्त हो रही थी। पटवारी ने दो से तीन समय माप-तोल किया पर गणना करने पर 100 बीघा ही जमीन प्राप्त होती थी। पटवारी के द्वारा लगान के रूप में केवल 100 बीघा जमीन पर ही कर लगाया गया था। इस अचरज भरी घटना को जब उस सिख ने गुरु जी के सम्मुख उपस्थित होकर बयान किया तो गुरु पातशाह जी ने वचन किए थे कि यदि तुम उस अकाल पुरख पर भरोसा रखते तो तुम्हें यह लगान भी कर स्वरूप में नहीं देना पड़ता था।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने इस सिख सेवादार के निवास को ही अपना निवास बनाया था और वचन किए कि तुम सभी पर प्रभु-परमेश्वर की असीम कृपा बनी रहेगी, केवल तंबाकू के सेवन को अपने जीवन से वर्जित कर देवें। यदि तुम तंबाकू का सेवन करोगे तो ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की कृपा दृष्टि से वंचित रहोगे एवं हमेशा ग्लानि महसूस होगी।
श्रृंखला को रचित करने वाली हमारी टीम इस स्थान पर पहुंची तो ऐतिहासिक पुस्तकों और स्रोतों के अतिरिक्त एक और इतिहास ज्ञात हुआ कि एक माई (महिला सेवादार) ने अपने हाथों से बना हुआ कीमती दुशाला ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को भेंट स्वरूप अर्पित किया था। इस इलाके में गुरु पातशाह जी ने दूर दराज से जुड़ी हुई सभी संगत को नाम-वाणी से जोड़ा था। केवल और केवल तंबाकू के सेवन को जीवन में वर्जित करने के लिए उपदेशित किया था और वचन किए थे कि यदि संगत तंबाकू का सेवन नहीं करेंगी तो उन पर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की अपरंपार कृपा बनी रहेगी।
‘गुरु पंथ खालसा’ के महान इतिहासकार भाई संतोख सिंह जी जिन्होंने सूरज-प्रकाश ग्रंथ की रचना की है उन्होंने स्वयं लिखा है कि मैं इस ग्राम में आया था और सिक्खी का प्रचार-प्रसार भी किया था। साथ ही उन्होंने उस परिवार से भी मुलाकात की जो गुरु पातशाह जी से जुड़ा हुआ था। उन्होंने भी सख्ती से इस परिवार की ताड़ना की थी और कहा था कि तुम्हारे परिवार ने गुरु जी की रहमतों को भुला दिया है और तंबाकू का सेवन करना आरंभ कर दिया है। इसलिए ही तुम्हारे परिवार को गुरु जी की रहमतें, बक्शीश प्राप्त नहीं हो रही है। कवि संतोख सिंह जी ने अपने इतिहास में यह भी लिखा था कि इस स्थान पर एक इमली का विशाल वृक्ष है। जिसका उन्होंने स्वयं निरीक्षण किया था। वर्तमान समय में जब इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम ने इस स्थान का निरीक्षण किया तो कोई पुरातन इमली का वृक्ष इस स्थान पर मौजूद नहीं है। वर्तमान समय में इस ग्राम बारना में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में भव्य, विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है।