‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु ग्राम फरवाही नामक स्थान पर पहुंचे थे। जब गुरु पातशाह जी का इस स्थान पर आगमन हुआ तो उस समय इस स्थान पर हैजे की बीमारी से स्थानीय निवासी भयानक रूप से संक्रमित थे। हम सभी जानते हैं कि हैजे का संक्रमण दूषित पानी पीने के कारण से होता है। इस भयानक बीमारी से व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने इस भयानक बीमारी से निजात दिलाने हेतु स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था भी की थी। वर्तमान समय में गुरु जी की स्मृति में इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस गुरुद्वारा परिसर में एक स्वच्छ जल का सरोवर भी स्थित है।
इस ग्राम फरवाही से गुरु जी चलकर ग्राम सेखां नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्थान पर गुरु जी कुछ दिनों तक रुक कर धर्म का प्रचार-प्रसार भी किया था। इस स्थान पर आसपास के छोटे-छोटे ग्रामों का एक चौधरी था, जिसका नाम भाई त्रिलोका जी था। भाई त्रिलोका जी धनवान व्यक्ति था और जब भी गुरु जी का दीवान सजता था तो उस दीवान में भाई त्रिलोका जी उपस्थित होकर अपनी देह बोली से धनवान होने के घमंड को सभी को दर्शाता था। उस समय गुरु पातशाह जी ने भाई त्रिलोका जी को संबोधित करते हुए वचन किए–
धन भूमि का जो करै गुमानु॥
सो मूरखु अंधा अगिआनु॥
(अंग क्रमांक 278)
उपरोक्त गुरबाणी की पंक्तियों ने भाई त्रिलोका जी के जीवन में गहरा प्रभाव डाला था।
भाई त्रिलोका जी किसी साधु बैरागी का चेला भी था। भाई त्रिलोका जी ने गुरु जी द्वारा उपदेशित की गई उपरोक्त गुरबाणी की पंक्तियों को उस साधु, बैरागी को भी बताया था। उस बैरागी जी ने भाई त्रिलोका जी को समझाया कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ स्वयं ‘श्री गुरु नानक देव जी’ कि नौवीं ज्योत है। आप जी गुरु पातशाह जी की शरण में रहो और गुरु दरबार में किसी भी किस्म का दिखावा करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
जब चौधरी भाई त्रिलोका जी गुरु जी के सम्मुख उपस्थित हुआ तो गुरु जी ने विशेष स्नेह और प्यार दर्शाते हुए भाई त्रिलोका जी को अपने निकट बुलाकर बिठाया था। कारण गुरु जी का तो स्वभाव ही जोड़ने वाला है जिसे गुरबाणी में इस तरह से अंकित किया गया है-
जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै इहु बिरदु सुआमी संदा॥
(अंग क्रमांक 544)
गुरबाणी की उपरोक्त पंक्तियों से ज्ञात होता है कि यह तो गुरु पातशाह जी का स्वभाव है कि जो उनकी शरण में आ जाता है तो गुरु जी उसे आगोश में लेकर ह्रदय में बसा लेते हैं। सच जानना. . . . गुरु जी के स्नेह और प्यार का आगोश इतना विशाल है कि उसमें पूरा विश्व समाहित हो सकता है।
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी को हमें जन-जन तक पहुंचानी चाहिये। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का उपदेश ही अति विशाल है। इस गुरबाणी का आगोश इतना विशाल है कि इसमें पूरा संसार समाहित हो सकता है परंतु वर्तमान समय में हमारे कट्टरपन के स्वभाव के कारण हमारे स्वयं का दृष्टिकोण ही इतना संकुचित है कि हम ही ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी से जुड़ नहीं पा रहे हैं तो दूसरों को कैसे जोड़ेंगे?
उस समय ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से भाई त्रिलोका जी ने सिक्खी को ग्रहण किया था। विशेष भाई त्रिलोका जी ने स्वयं तो सिक्खी को ग्रहण किया ही अपितु आसपास के सभी 22 ग्रामों के स्थानीय ग्रामीणों को भी सिक्खी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। पश्चात दशम पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के समय तक इस इलाके में सिखी का बूटा पूर्ण रूप से प्रफुल्लित हो चुका था।
उस समय गुरु पातशाह जी ने प्रमुख रूप से विभिन्न ग्रामों में यात्रा कर, लोक-कल्याण करते हुए लोगों को सिक्खी की मुख्यधारा से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया और उपदेशित किया–
भै काहू को देत नहि नहि भै मानत आन॥
(अंग क्रमांक 1427)
उपरोक्त गुरबाणी की पंक्तियों के अनुसार उपदेशित कर आम लोगों को गुरबाणी से जोड़ा था।
इस श्रृंखला के रचयिता ने जब प्रिंसिपल सतबीर सिंह जी रचित पुस्तक ‘इति जनकारी’ का अध्ययन किया तो ज्ञात हुआ कि इस पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 84 पर अंकित है कि जब चौधरी भाई त्रिलोक जी जीवित थे तो उस समय इनके खानदान की अगली पीढ़ियां बल्लभगढ़ के इलाकों में जाकर बस गई थी। साथ ही इनका परिवार कासमगढ़ और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और उसके आसपास के इलाकों में बस गए थे। गुरु जी के आशीर्वाद से इन सभी स्थानों पर इस परिवार की सरदारी कायम हुई थी। ‘गुरु पंथ खालसा’ के पांच प्यारों में से एक प्यारा भाई धर्म सिंह जी इसी खानदान से संबंधित थे। इस विषय पर हमारी टीम की खोज जारी है जो भी जानकारी हमें प्राप्त होगी वह संगत तक निश्चित ही पहुंच जाएगी।
इस ग्राम सेखां में एक और कीर्तिमान सिख भाई मुकुल जी के निवास को भी गुरु जी ने अपने चरण कमलों से पवित्र किया था। इस ग्राम सेखां में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में भव्य, विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है।