श्रृंखला के विगत प्रसंग के अंतर्गत संगत (पाठकों) को भाई मुगलु जी के इतिहास से अवगत करवाया गया था। इस श्रृंखला के अंतर्गत हम जिस ग्राम का इतिहास जानने वाले हैं, वह ग्राम कनकवाल नामक ग्राम से 10 किलोमीटर और ग्राम गंडुआं से, यहां के भाई मुगलू जी निवासी थे। (विगत प्रसंग में हम सभी ने भाई मुगलू जी के इतिहास से अवगत हुए थे)। उस ग्राम गंडुआं से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस ग्राम को ग्राम बछोआना के नाम से संबोधित किया जाता है।
गुरु जी के समय में यह बहुत ही छोटा था, गुरु जी ने एक ढलान पर आकर पीपल के पेड़ के नीचे छांव में विराजमान हो गए थे। वर्तमान समय में वह ढलान भी नहीं है और ना ही पीपल का पेड़ मौजूद है। गुरु जी ने लगभग 7 दिवस इस स्थान पर निवास किया था और सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर सुंदर, विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं गुरु जी की स्मृति में सुशोभित है। इस गुरुद्वारे का प्रबंधन एवं संचालन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से किया जाता है।
इस स्थान के बिल्कुल समीप ही स्थित ग्राम खीवां कला है। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम खीवां कला में पधारे थे। सभी संगत एकजुट होकर गुरु जी के दर्शन-दीदार को पहुंची थी और दीवान भी सजाया गया था। सजे हुए दीवान में से एक भाई संघा जी नामक सज्जन जब दीवान से उठकर जाने लगे तो उस समय ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने बड़े प्यार व स्नेह से पूछा कि सजे हुए दीवान में आपका मन नहीं रमा क्या? ऐसी क्या बात हो गई? आप दीवान में से उठ कर कहां जा रहे हो? उस समय भाई संघा जी ने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि गुरु पातशाह जी हमारे ग्राम के चौधरी के निवास पर विवाह का आयोजन किया जा रहा है। सुबा पंजाब की रवायत है कि जब किसी के निवास पर विवाह का आयोजन किया जाता है तो उस विवाह वाले घर से वरतावा, वरताया जाता है अर्थात यह सुबा पंजाब का पुराना सभ्याचार है कि विवाह के आयोजन पर संपूर्ण ग्राम वासियों को मीठा प्रसाद जैसे कि पुरियों के ऊपर कड़ाह प्रसाद भी रख कर देते हैं, जिसे वरतावा शब्द से संबोधित किया जाता है। भाई संघा जी ने गुरु जी से कहा कि आज ग्राम के चौधरी के निवास से वरतावा, वरताया (मीठा प्रसाद) जाना है। सभी को अपेक्षा है कि ग्राम का चौधरी बहुत अच्छा किस्म का वरतावा देगा। गुरु पातशाह जी उस वरतावे को प्राप्त करने हेतु मैं कहीं पीछे ना रह जाऊं इस कारण से मैं दीवान में से उठकर वह वरतावा लेने जा रहा था।
भाई संघा जी को गुरु जी ने वचन किये कि तुम मत जाओ, तुम्हें वहां जाने की कोई जरूरत नहीं है। तुम प्रभु-परमेश्वर की बंदगी से जुड़ जाओ और दीवान में बैठकर संगत करो। वरतावे की कोई बात नहीं है, वरतावा को छोड़ो, तुम्हारे घर में तो एक क्या, दो-दो वरतावे हमेशा पहुंच जाया करेंगे। भाई संघा जी ने गुरु जी के वचनों को मान कर दीवान से जुड़कर अपनी हाजिरी लगाई थी।
सच जानना. . . . इस घटित घटना को किसी व्यक्ति ने ग्राम के चौधरी को बताया और कहा कि चौधरी साहिब जी आज ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का दीवान सजा हुआ था। गुरु जी स्वयं दीवान में उपस्थित थे और वहां पर यह घटना घटित हुई है। जब ग्राम के चौधरी को ज्ञात हुआ तो उस चौधरी ने एक नहीं दो-दो वरतावे भाई संघा जी के निवास पर भिजवा दिए थे। भाई संघा जी पर एवं उनके परिवार पर ऐसी कृपा हुई कि वर्तमान समय तक ग्राम के जिस घर में भी विवाह का आयोजन होता है भाई संघा जी के नाम से दो वरतावे को विशेष रूप से उनके परिवार में पहुंचाया जाता है। यह भाई संघा जी का परिवार गुरुद्वारे के समीप ही निवास करता है। यहां तक ज्ञात हुआ है कि आसपास के ग्रामीण इलाकों से भी दो-दो वरतावे वर्तमान समय तक भी भाई संगा के परिवार को श्रद्धा सहित पहुंचाए जाते हैं।
अफसोस इस बात का है कि गुरुद्वारे तो बहुत आलीशान और भव्य बन गये, इमारतें तो बहुत बड़ी-बड़ी बना ली गई परंतु उस भाई संघा का परिवार गुरमत से दूर जा चुका है। गुरमत से टूट चुका है, इन परिवारों को जोड़ने की आवश्यकता है। इन परिवारों पर गुरु जी ने अपनी रहमत भरी बक्शीश की थी।
वर्तमान समय में ग्राम खीवां कला में बहुत ही आलीशान, भव्य गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में सुशोभित है।