प्रसंग क्रमांक 7 : वैराग्य से अभिभूत श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी की विस्मय बोध युक्त जीवन यात्रा का इतिहास ।

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भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ से आयु में दो वर्ष बड़े भ्राता का अचानक अकाल चलाना (निधन) कर गये थे। इस आकस्मिक घटित घटना का आपके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। सन् 1628 ई. में सिक्ख  धर्म के पांचवे गुरु ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के ‘महल’ (सौभाग्यवती शब्द को गुरुमुखी भाषा में सम्मान पूर्वक ‘महल’ कहकर संबोधित किया जाता है)  और सिक्ख धर्म के 6 वें  गुरु ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’  की माता एवं भावी गुरू ‘श्री तेग बहादर साहिब जी’ की दादी जी अर्थात् ‘माता गंगा जी’ की स्नेहित गोद में भावी गुरू ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ का  बड़े ही लाड़-दुलार से पालन-पोषण हुआ था।  (उस समय तक सिक्ख धर्म के पांचवे गुरु ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ शहीदी का जाम पी चुके थे)।  ‘माता गंगा जी’ अपने पौत्र  अर्थात गुरु पुत्रों को बहुत ही लाड़-दुलार करती थी। सन् 1628 ई. में बड़े भ्राता ‘बाबा अटल जी’ भी अकाल चलाना  (निधन) कर गये थे और इसी समय  में ‘माता गंगा जी’ भी अकाल चलाना (स्वर्गवास) कर गई थी। परिवार में अपने अत्यंत निकटवर्ती दो पारिवारिक सदस्यों के स्वर्गवास से  आपका जीवन वैरागमयी हुआ  था।

 ‘बाबा श्री चंद जी’ जिनकी आयु 100  वर्षों से भी अधिक थी। आप भी का भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ से अत्यंत स्नेह था। आप जी भी उसी समय ज्योति-ज्योत समाये थे। भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’, ‘बाबा श्री चंद जी’ का अत्यंत आदर और सत्कार करते थे और उनके ज्योति-ज्योत समाने से भावी गुरु ‘श्री तेग गुरु बहादर साहिब जी’ की जीवन शैली वैराग से अभिभूत हो चुकी थी । इन संवेदनशील घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी भावी गुरु ‘श्री तेग बहादर साहिब जी’ के जीवन पर इसका  बहुत अधिक  प्रभाव पड़ा था।  जब भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ की आयु 10 वर्ष की थी तो उस समय 17 नवंबर सन् 1631 ई. के दिवस ‘बाबा बुड्ढा जी’ भी परलोक गमन कर गए थे। सिक्ख धर्म और सिक्ख  इतिहास में ‘बाबा बुड्ढा जी’ का अत्यंत विशिष्ट स्थान है। ‘बाबा बुड्ढा जी’ वो महान शख्सियत थे जिन्होंने सिक्ख धर्म के पहले गुरु ‘श्री गुरु नानकदेव साहिब जी’ से लेकर वर्तमान समय तक सिक्ख  धर्म के 6 गुरुओं के दर्शन किए थे। आप जी ने केवल 6 गुरुओं के दर्शन ही नहीं किए थे अपितु गुरु ‘तेग बहादर जी’ और बाबा गुरदित्ता  जी के सुपुत्र सिक्ख  धर्म के गुरु ‘श्री हर राय जी’  का प्रकाश भी आपके जीवन काल में हुआ था। आप जी ने गुरु ‘श्री हर राय जी समेत सिक्ख धर्म के 10 गुरुओं में से 8 गुरुओं के दर्शन-दीदार अपने जीवन काल में किए थे।

उस समय तक सिक्ख धर्म के 6 गुरुओं को गुरु गद्दी प्राप्त हो चुकी थी।  ‘बाबा बुड्ढा जी’ ने सिक्ख  धर्म के पहले गुरु ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के जीवन काल से लेकर वर्तमान समय तक सिक्ख  धर्म के 5 गुरुओं को क्रमानुसार ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’, ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’, ‘श्री गुरु राम दास साहिब जी’, ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ और ‘श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी’ को अपने कर-कमलों से स्वयं तिलक लगाकर गुरु गद्दी पर विराजमान किया था।  साथ ही आप जी ने सिक्ख  धर्म के 6वें  गुरु ‘श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी’ को मिरी-पिरी की दो कृपाणे अर्पित कर उन्हें सुशोभित भी किया था। ‘बाबा बुड्ढा जी’ अत्यंत महान और सौभाग्यशाली थे। आप जी गुरु घर के प्रथम हेड ग्रंथि के रूप में भी निरूपित हुए थे।

 ब्रह्मज्ञानी ‘बाबा बुड्ढा जी’ ने ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ से लेकर वर्तमान समय में ‘श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी’ तक आपने अपनी महान सेवाएं तो अर्पित की ही थी अपितु  आप जी ने भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग  बहादर साहिब जी’  की शिक्षा का दायित्व भी बखूबी निभाया था। साथ ही भविष्य में होने वाले गुरु ‘श्री हर राय साहिब जी’ के भी दर्शन किए थे। ‘बाबा बुड्ढा जी’ ने अपना संपूर्ण जीवन गुरसिक्खी के लिए समर्पित किया था। 125 वर्ष की आयु में ‘बाबा बुड्ढा जी’  परलोक गमनवासी हो चुके थे। आप का अंतिम संस्कार ‘श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी’  ने स्वयं किया था।

 भावी गुरु ‘श्री तेग बहादर साहिब जी’ ने 7 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की आयु में इन सभी  प्रसंगों को अकाल पुरख का बहाना मानकर इसे इन 4 वर्षों  में अत्यंत संजीदगी से लिया था। इन सभी प्रसंगों के कारण उस समय में ‘बाबा तेग बहादुरजी’  के  ‘त्यागी  और बैरागी’  स्वरूप के दर्शन होते हैं। त्याग की मूरत ‘बाबा तेग बहादुर जी’ की विस्मय बोध युक्त जीवन यात्रा वैराग्य से अभिभूत थी।  जब हम  गुरु ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ की रचित वाणीयों का अध्ययन करते हैं तो हम आप जी की वैरागमयी  वाणी के उन श्लोकों से भी रूबरू होते हैं जो अत्यंत वैराग  के भाव में रचित की गई थी।

 गुरुवाणी में अंकित है —

चिंता ता कि किजीऐ जो अनहोनी होइ।

इहु  मारगु संसार को नानक थिरु  नहीं कोइ।।

(अंग क्रमांक 1429)

प्रसंग क्रमांक 8 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के परिणय बंधन का इतिहास।

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