‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्राओं के तहत सूबा पंजाब के मालवा प्रांत के मध्य अपना प्रचार दौरा करते हुए ग्राम भीखी नामक स्थान पर पहुंचे थे। ग्राम भिखी भटिंडा से 70 किलोमीटर की दूरी पर एवं संगरूर नामक स्थान से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस ग्राम में भाई देसू जी निवास करते थे। इस ग्राम भिखी को भीखा नामक एक चहल गोतर के जमीदार ने बसाया था।
इस ग्राम के स्थानीय निवासी भाई देसू जी इस ग्राम के चौधरी भी थे एवं जो वह कब्रों को भी पूजते थे। जब भाई देसू जी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के सानिध्य (संगत) में आए तो गुरु जी ने गुरबाणी के द्वारा भाई देसू जी को उपदेशित किया था। जिसे इस तरह से अंकित किया गया है–
दुबिधा न पड़उ हरि बिनु होरु न पूजउ मड़ै मसाणि न जाई॥
(अंग क्रमांक 634)
अर्थात् दुविधा में ना रहते हुए मढ़ी-मसान की पूजा नहीं करनी चाहिए। गुरु जी ने उपदेशित किया–
खसमु छोडि दूजै लगे डूबे से वणजारिआ॥ (अंग क्रमांक 470)
अर्थात् जो एक परमपिता, परमेश्वर/अल्लाह को छोड़कर कब्रों को पूजते हैं, वह हमेशा डूबते हैं। ग्राम के चौधरी भाई देसू जी गुरु जी की वाणी से अत्यंत प्रभावित हुए थे और उन्होंने कब्रों को पूजना बंद कर दिया था। साथ ही भाई देसू जी ने गुरु चरणों में स्वयं को समर्पित कर गुरु का सिख सज गया था। गुरु जी ने स्वयं के पांच तीरों की भी भाई देसू जी को बक्शीश की थी। गुरु जी ने भाई देसू को वचन किए थे, यदि तुम्हें जीवन में किसी भी वस्तु की जरूरत हो तो इन पांच तीरों में से एक तीर को छोड़ देना तो तुम्हारे सभी कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो जाएंगे।
ग्राम के चौधरी भाई देसू जी ने कब्रों का पूजन बंद कर सिखी को धारण कर लिया था और गुरबाणी का पाठ करने लगे थे तो उस समय, उस ग्राम के कब्रों को पूजने वाले प्रमुख लोग जो कब्रों की पूजा करते थे, उन्हें यह रास नहीं आ रहा था। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस ग्राम से प्रस्थान कर गए तो कब्रों को पूजने वाले लोगों ने भाई देसू जी की पत्नी जिसका नाम धाई था के कान भर दिए थे। साथ ही सिखाया था कि यदि तुमने कब्रों की पूजा को छोड़ दिया तो तुम्हारे ऊपर अनेक संकट (करूपी) आयेंगे। यदि तुम अपने परिवार को संकटों (करूपी) से बचाना चाहती हो तो तुम्हारे घर में गुरु जी के बक्शीश किए हुए जो तीर पड़े हैं उन्हें तोड़ दो। भाई देसू जी की पत्नी धाई ने इन कब्र पूजकों के कहने में आकर गुरु जी के बख्शीश किए हुए तीरों को तुड़वा दिया था।
जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम मोड़ में विराजमान थे तो उन्हें इस घटित प्रसंग की जानकारी मिली थी। उस समय गुरु साहिब जी ने दो बार पंचायत के प्रमुखों को ग्राम भीखी में भेजा था परंतु चौधरी देसू ने अपनी पत्नी के कहने में आकर सिखी से बेमुख हो चुका था। सच जानना. . . . भाई देसू जी ना इस ओर का रहा और ना ही दूसरी ओर का रहा। अपनी पत्नी और मनमतियों के कहने में आकर धर्म भ्रष्ट होकर अपने वंश (आने वाली पीढ़ी) को भी खो चुका था ।
दूसरी और इस ग्राम भीखी का स्थानीय बनिया परिवार भी गुरु जी की सेवा में समर्पित हुआ था। परंतु जब गुरु जी को ज्ञात हुआ कि यह बनिया परिवार तंबाकू का सेवन करता है तो गुरु पातशाह जी ने इन्हें वर्जित कर उपदेशित किया कि यदि तुम्हें बक्शीश प्राप्त करनी है तो कभी भी तंबाकू का सेवन नहीं करना है। इस पूरे बनिया परिवार ने गुरु जी के वचनों का सम्मान किया था। इस से खुश होकर गुरु जी ने एक और वचन किए कि भाई आप पूरा परिवार कभी भी केश और दाढ़ी मत काटना। तुम्हारे ऊपर उस अकाल पुरख की असीम बक्शीश होगी। परिवार के प्रमुख लोगों की ओर से वचन किए गए कि गुरु पातशाह जी हमारे परिवार में परंपरागत जो रीति-रिवाज, रवायतें चल रही है, उसके अनुसार तो मुंडन संस्कार भी किया जाता है। यदि हमने केश रख लिए तो हो सकता है कि हमारे परिवार से कोई रिश्ता ही ना जोड़े।
संगत जी सच जानना. . . . इस परिवार पर गुरु जी ने बहुत बड़ी कृपा की थी उस समय गुरु जी ने अत्यंत खुश होकर वचन किए कि तुम्हारे घरों में एक रिश्ता तो छोड़ो, दो-दो रिश्ते भी आएंगे। सच जानना श्रृंखला के रचयिता सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ को इस संपूर्ण परिवार से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। साथ ही ज्ञात हुआ कि गुरु जी के वचन सच साबित हुए थे।
इस परिवार के सम्मानित बुजुर्ग ने गुरु जी द्वारा प्राप्त असीम बक्शीशों की स्वयं जानकारी देते हुए 85 वर्षीय बुजुर्ग ने बताया कि हमारा संपूर्ण परिवार गुरु जी के चरणों में समर्पित है। परिवार के समस्त कार्यों को गुरु जी की बख्शीश लेकर ही आरंभ किया जाता है। पूरा परिवार आज भी गुरु जी के चरणों में समर्पित है। प्रतिदिन गुरु घर दर्शनों को जाते हैं, गुरबाणी का पठन करते हैं। साथ ही पूरे परिवार ने केश और दाढ़ी भी रखी हुई है। इनके 85 वर्षीय बुजुर्ग सेवा सिंह ने स्वयं जानकारी देते हुए वचन किए की–
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ जब साबो की तलवंडी में आए थे तो उस समय हमारे बुजुर्ग खेती करते हुए खेतों में हल चलाते थे। गुरु जी हमारे खेतों में बुजुर्गों के समीप विराजमान हो गए थे। जब हमारे बुजुर्गों ने उनकी लंगर-पानी से सेवा करनी चाही तो गुरु जी ने स्पष्ट शब्दों में इंकार कर कहा था की तुम लोग हुक्का पीते हो और केश-दाढ़ी भी नहीं रखते हो। उस समय बुजुर्गों ने गुरु जी से वचन किए थे कि यदि हमने केश-दाढ़ी रख ली तो हमारे बच्चों के रिश्ते होना बंद हो जाएंगे और हमारे साथ कोई संबंध नहीं जोडेगा। उस समय गुरु जी ने वचन किए थे तुम्हारे एक-एक नहीं अपितु दो-दो मंगल परिणय संपन्न होंगे। हम सभी दीवान सिंह जी के वंशज हैं, उन्हें चार पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई थी। गुलाब सिंह, महताब सिंह, नानू सिंह और बहाल सिंह जी उनके चार पुत्र रत्न थे। हम गुलाब सिंह, मेहताब सिंह के वंशज एवं नानू सिंह और बहाल सिंह जी के वंशज साबो की तलवंडी में निवास करते हैं। गुलाब सिंह जी को पांच पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई थी। हमारे परदादे का नाम खुशयाल सिंह था और खुशयाल सिंह जी को 8 पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई थी। हमारे दादा जी का नाम सरदारा सिंह जी था और सरदारा सिंह जी के 2 पुत्र थे। बुध सिंह और सोहन सिंह, मैं सोहन सिंह जी का पुत्र सेवा सिंह हूं। मेरा जन्म 12 अगस्त सन् 1935 ई. को हुआ था। विगत वर्ष सन् 2019 ई. के 12 अगस्त को मैं 85 वर्ष का हो गया था। मैंने अपनी इस 85 वर्ष की आयु में कभी भी धूम्रपान, मदिरापान नहीं किया है एवं ना ही तंबाकू जन्य वस्तुओं को छूकर देखा है। मैं पूर्णतया शाहाकारी हूं और ना ही मैंने कभी अपने केशों को काटा है। हमारे पूरे परिवार को गुरु जी से वर मिला हुआ है। हम पूरा परिवार ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के प्रकाश पर्व पर लंगर का आयोजन करते हैं और ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के शहीदी दिवस पर भी लंगरों का आयोजन करते हैं। इसे हमारा परिवार पिछले 200 वर्षों से आयोजित कर रहा है।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अनेक बक्शीश इस परिवार पर की हुई है। यह गुरु साहिब जी के आदि परिवार माने जाते है। जिन पर गुरु जी ने रहमत कर अपनी बक्शीश की हुई है।
वर्तमान समय में भी ग्राम भिखी में लगभग 58 बनिया परिवार हैं जिन्हें सिंहों के परिवार के नाम से संबोधित किया जाता है। यह सभी परिवार इस ग्राम में बसते हैं, ग्राम का पुराना बाजार जिसे सिंहों के मोहल्ले के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस स्थान पर इनकी दो पुरातन हवेलियां भी थी। ग्राम मानसा में भी इस बनिया परिवार के लगभग 50 परिवार और निवास करते हैं। इस परिवार ने गुरु जी की बख्शीश के साथ सिक्खी को भी संभाल कर रखा हुआ है। इन बनिया परिवारों को सिंहों के परिवार के नाम से संबोधित किया जाता है। यह सभी बनिया परिवार के लोग अपने नाम के साथ उपनाम सिंह जरूर जोड़ते हैं।
वर्तमान समय में इस ग्राम भीखी में गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस ग्राम में गुरु जी से जुड़े बनिया परिवारों के भी दर्शन होते हैं। गुरु जी कृपा करें, इसी प्रकार से गुरु जी के जीवन से जुड़े और परिवारों को खोज कर पाठकों के सम्मुख लाने का हमारा प्रयास निरंतर जारी रहेगा।