प्रसंग क्रमांक 79: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम समाउ एवं ग्राम कनकवाल का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम धलेवां से चलकर आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम समाउ नामक स्थान पर पहुंचे थे। दूसरी और गुरु जी जब अपना धर्म प्रचार-प्रसार का दौरा सुबा प्रांत के मालवा प्रदेश में कर रहे थे तो वह अपने साथी-सेवादारों को अपने गृह नगर ‘चक नानकी’ पर भेज कर वहां का हाल-चाल जानते रहते थे। जब कुछ सिख सेवादार हाल-चाल जानने ‘चक नानकी’ नगर में पहुंचे तो ज्ञात हुआ कि अफगानिस्तान के काबुल-कंधार से कुछ संगत गुरु जी के दर्शन-दीदार करने हेतु ‘चक नानकी’ नगर में पहुंची हुई थी। काबुल-कंधार से लगभग 1100 किलोमीटर दूरी पर ‘चक नानकी’ नगर स्थित है। यह सभी संगत घोड़ों पर सवार होकर गुरु जी के दर्शनों को ‘चक नानकी’ नगर में पधारे थे। जब इन अफगानिस्तान की संगत को ज्ञात हुआ की ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ मालवा प्रांत के ग्रामीण अंचलों में अपने धर्म प्रचार-प्रसार का दौरा कर रहे हैं तो काबुल-कंधार से लगभग 1100 किलोमीटर का सफर कर आई संगत ने निश्चित किया कि हम मालवा के ग्रामीण अंचलों में जाकर ही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के दर्शन-दीदार करेंगे। यह सारी संगत गुरु जी के प्यार में, उनके स्नेह-बंध में सराबोर होकर काबुल-कंधार से ‘चक नानकी’ (श्री आनंदपुर साहिब) नगर में लगभग 1100 किलोमीटर का सफर तय कर आई थी तो मालवा के ग्रामीण अंचलों में 100-150 किलोमीटर का सफर करना इन संगत के लिए कोई मुश्किल कार्य नहीं था।

काबुल-कंधार की संगत ‘चक नानकी’ नगर से यात्रा कर ग्राम धलेवां नामक स्थान पर पहुंची थी। जब ग्राम धलेवां की स्थानीय संगत को ज्ञात हुआ कि इतनी दूर से संगत गुरु जी के दर्शन-दीदार करने आ रही हैं तो स्थानीय ग्राम वासियों ने इन काबुल-कंधार से आई संगत के स्वागत के लिए कालीन बिछा कर उनका भावभीना स्वागत किया था। आगंतुक संगत के निवास की उत्तम-समुचित व्यवस्था की गई थी। गुरु जी के दीवान सजना प्रारंभ हो गए थे।

इस ग्राम समाउ में गुरु जी की वाणी से प्रभावित होकर, उनके वचनों से प्रभावित होकर, ग्राम के स्थानीय निवासी भाई जीउना जी ने सिक्खी को धारण किया था।

वर्तमान समय में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस स्थान पर आसपास की संगत एकत्रित होकर नाम-वाणी से जुड़कर अपना जीवन सफल कर रही है।

समाउ ग्राम से गुरु जी चलकर थोड़ी दूर पर स्थित ग्राम कनकवाल नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस कनकवाल ग्राम में भी एक वन का वृक्ष मौजूद है। इसी वृक्ष के नीचे गुरु जी विराजमान हुए थे और इसी वृक्ष से अपने घोड़े को भी गुरु जी ने बांधा था।

वर्तमान समय में इस ग्राम कनकवाल में भी गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस कनकवाल ग्राम की एक विशेष, विशेषता है कि इस स्थान पर एक धार्मिक विद्यालय सुचारू रूप से चल रहा है। इस विद्यालय में विद्यार्थियों को गुरबाणी कंठस्थ कराई जाती है एवं साथ ही गुरमत संगीत का उत्तम ज्ञान भी इन विद्यार्थियों को प्रदान किया जाता है। इस विद्यालय से बहुत से सिख सेवादार आसपास के इलाकों में निरंतर धर्म प्रचार-प्रसार के लिए जाते हैं। साथ ही दूर-दूर से इस स्थान पर विद्यार्थी पहुंचकर अपनी धार्मिक शिक्षाओं को भी ग्रहण करते हैं। इस स्थान पर खाने-पीने की एवं निवास की उत्तम व्यवस्था है। जो विद्यार्थी धार्मिक शिक्षाओं को ग्रहण करना चाहते हैं, वह निश्चित ही इस ग्राम कनकवाल में आकर धार्मिक शिक्षाओं को ग्रहण कर सकते हैं।

वर्तमान समय में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में सुशोभित गुरुद्वारा साहिब जी इस ग्राम के बाहरी हिस्से में सुशोभित है। ग्राम के भीतर एक सरोवर साहिब भी सुशोभित है। जिसका नाम कपूरसर है। दूरदराज के इलाके से संगत इस स्थान पर उपस्थित होकर स्नान भी करती हैं। इन संगत की आस्था है कि इस सरोवर में स्नान करने से कई दुर्गम रोग ठीक हो जाते हैं।

स्थानीय ग्राम वासियों की और से गुरु जी की स्मृति में प्रत्येक वर्ष श्री अखंड पाठ साहिब जी के पाठ का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक वर्ष लंगरों का आयोजन कर छबील (ठंडे शरबत के प्रसाद का स्टॉल) भी लगाई जाती है।

ग्राम कनकवाल में गुरु जी की स्मृति में दो स्थान है। ग्राम के बाहरी इलाके में गुरुद्वारा साहिब जी स्थित है। इस गुरुद्वारा साहिब जी के परिसर में धार्मिक विद्यालय भी चलता है और ग्राम के भीतर सरोवर कपूरसर भी सुशोभित है।

इस श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 80 के अंतर्गत हम उस सिख सेवादार के इतिहास को जानेंगे जो छठी पातशाही ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के समय में युद्धों में अपनी वीरता का पराक्रम दिखा चुका था। उस सिख सेवादार की एक मनोकामना थी। वह कौन सी मनोकामना थी? और वह सिख सेवादार कौन था? जिसे  ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ मिलने के लिए स्वयं पहुंचे थे। वह कौन से ग्राम में निवास करता था? इस संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को रूबरू करवाया जायेगा।

प्रसंग क्रमांक 80: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम गंडुआं (मानसा) का इतिहास।

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