सफर-ए-पातशाही नौवीं के सफर को निरंतर जारी रखते हुए हम इस श्रृंखला में ग्राम ख्याला कला के इतिहास से अवगत हो रहे हैं। इस ख्याला कला ग्राम में गुरु जी की स्मृति में तीन भव्य गुरुद्वारा साहिब सुशोभित हैं। विगत प्रसंग में हमने ऐतिहासिक गुरुद्वारा बैरी साहिब के इतिहास को जाना था। वर्तमान समय में भी ऐतिहासिक बैरी का वृक्ष मौजूद है। दूसरा गुरुद्वारा गुरुसर जहां पर पुरातन बोहड़ (बरगद) का वृक्ष भी मौजूद है। साथ ही पुरातन कुआं भी सुशोभित है।
इस ग्राम ख्याला कला में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ संगत को नाम-वाणी से जोड़कर संगत के दुख दर्द को भी दूर कर रहे थे। इस ग्राम के कुछ ग्रामवासियों ने आकर निवेदन किया कि ग्राम की दूसरी दिशा में जहां हम निवास करते हैं, स्वच्छ पीने के पानी की अत्यंत आवश्यकता है। इस कठिनाई को दूर करने हेतु हम लोगों ने कई कुओं को खुदवाया परंतु खोदे हुए हर कुओं से हमें खारा पानी ही जमीन में से मिला। इन कुओं से प्राप्त पानी को पीने के उपयोग में नहीं लिया जा सकता है।
गुरु जी ने इन संगत की कठिनाइयों को समझ कर इन के दुख दूर करने हेतु अपने कमान पर तीर को चढ़ाया था। सच जानना. . . . हमें वैराग की मूरत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का माला पकड़े ही का चित्र आज तक देखा है। कभी हमने शस्त्रों से सजे हुए गुरु जी के चित्र के दर्शन नहीं किए है। ना ही कोई ऐसा चित्र हमने देखा है जिसमें ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को तीर चलाते हुए दिखाया गया हो। गुरु जी शस्त्र विद्या के अत्यंत धनी थे, उस समय गुरु जी ने कमान पर तीर चढ़ा कर, कमान की प्रत्यंचा को खींचकर तीर चलाया था और वचन किए जिस स्थान पर यह तीर जाकर लगेगा उसी स्थान पर आप संगत जाकर कुआं खुदवाने का कार्य प्रारंभ करो।
जिस स्थान पर तीर गिरा था उस स्थान पर संगत ने पहुंचकर गुरु जी को सूचित किया। गुरु जी स्वयं संगत के साथ उस स्थान पर उपस्थित हुए थे। ग्राम वासियों ने निवेदन किया कि इस स्थान पर तो हम पहले भी कुआं खुदवा कर देख चुके हैं परंतु इस स्थान पर जमीन से निकलने वाला पानी खारा ही है। गुरु जी ने वचन किए कि उस अकाल पुरख पर भरोसा रखो। गुरु जी के वचनों का सम्मान करते हुए ग्राम वासियों ने जब इस स्थान पर कुआं खुदवाया तो निकला हुआ पानी बहुत ही मीठा था। साथ ही पानी पीने के योग्य भी था। उस समय गुरु जी के कर-कमलों से खुदवाये हुए इस कुएं से वर्तमान समय में भी मीठा पानी प्राप्त हो रहा है। इस स्थान पर सुशोभित गुरुद्वारा साहिब जी के लंगरों के लिए इसी कुएं के पानी का उपयोग किया जाता है। गुरु जी के द्वारा किए हुए वचन पूरे हुए थे।
जब हम इस ग्राम ख्याला कला के इस स्थान पर पहुंचे और पुराने बुजुर्गों से वार्तालाप किया तो ज्ञात हुआ कि इस गुरुद्वारा तीर साहिब में वर्तमान समय में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रत्येक महीने में एक बार एकजुट होकर नाम-वाणी से जुड़कर गुरु जी की स्मृतियों को संजोते हैं। संगत के लिए अरदास (प्रार्थना) की जाती है। वाणी में अंकित है–
घट घट के अंतर की जानत॥
भले बुरे की पीर पछानत॥
(काब्यो बाच बेनती)
गुरबाणी के इस महावाक्य अनुसार संगत के दुख दर्द दूर होते हैं।
स्थानीय संगत के बुजुर्गों ने बताया कि इस स्थान पर दो कुएं मौजूद है। एक में से खारा पानी प्राप्त होता है एवं दूसरे में से मीठा पानी प्राप्त होता है। सच जानना. . . . मीठे कुएं का पानी वर्तमान समय में भी निरंतर उपलब्ध है। गुरु जी की कैसी रहमत है? एक और स्थानीय ग्रामवासी कुआं खोदते हैं तो खारा पानी प्राप्त होता है एवं दूसरी और गुरु जी के कर-कमलों से खुदवाये हुए कुएं से मीठा पानी प्राप्त होता है।
इस स्थान पर स्थानीय निवासियों के द्वारा इस श्रृंखला के रचयिता सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ (इतिहासकार) को एक तीर के दर्शन करवाए गए थे। यह वह तीर है जो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ हमेशा अपने हाथों में पकड़े रहते थे। इस तीर को गुरु जी ने स्वयं ग्राम वासियों को बक्शीश किया था। वर्तमान समय में भी इस तीर के संगत को दर्शन करवाये जाते है। यह वह तीर नहीं है जो कमान के ऊपर चढ़ाया जाता है अपितु वह तीर है जो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ हमेशा अपने हाथों में पकड़ कर रखते थे।
वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा तीर साहिब जी सुशोभित है।