इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 70 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु ग्राम मोड़ कला नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस समस्त इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत करवाया जाएगा।
इस ग्राम मोड़ कला को एक जमींदार ने बसाया था। ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने अपने समय में इस ग्राम में सिख धर्म के बूटे को रोपित कर दिया था। इस जमींदार के परिवार के पारिवारिक सदस्य जिन्होंने ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ से सिक्खी को ग्रहण किया था उनका नाम था भाई नत्थू जी, भाई रघु जी, भाई लोला जी, भाई मिर्जा जी और भाई आसा जी। अर्थात जिस जमींदार ने इस नगर को बसाया था उसके परिवार ने ही सिख धर्म को ग्रहण कर लिया था। इस ग्राम के निकट एक (टिब्बा) टीला था। जिस के कारण स्थानीय ग्रामीणों में एक भय का माहौल बना हुआ था कारण कोई भी स्थानीय ग्राम वासी डर के कारण इस इलाके में इस टीले के पास नहीं जाता था। विशेषकर के लोग भय से रात में कभी भी इस स्थान पर नहीं जाते थे। लोगों को भय था कि इस स्थान पर कोई बहुत ही खतरनाक प्रेतात्मा या कोई बहुत बड़ा जिन्न निवास करता है, हो सकता है कि उस समय इस स्थान पर कोई काले धंधे होते हों, इस कारण से भी लोगों को डरा कर रखा गया हो।
जब इस स्थान के संबंध में गुरु जी को ज्ञात हुआ तो गुरु जी ने लोगों के मन से भय एवं डर को दूर करने के लिए इसी स्थान पर अपना डेरा डालते हुए निवास स्थान हेतु तंबू स्थापित किए थे। लगभग 300 के करीब संगत ने इस स्थान पर गुरु जी के साथ डेरे लगाए थे और शाम को दीवान सजाकर कीर्तन का भी आयोजन किया था।
दूसरे दिन स्थानीय ग्राम वासियों को जब यह ज्ञात हुआ तो स्थानीय ग्राम वासियों ने आपस में वार्तालाप प्रारंभ कर दिया था कि जिस स्थान पर जिन्न का निवास है, उस स्थान पर कोई साधु-संत आकर विराजमान हो गए हैं। ग्राम के प्रमुख लोग एकजुट होकर गुरु जी के डेरे पर उपस्थित होकर सिक्खों को पूछने लगे कि तुम विगत रात से इस स्थान पर मौजूद हो, तुम्हें किसी प्रकार का भय नहीं लगा क्या? इस स्थान पर तुम्हें कोई प्रेतात्मा नहीं मिली क्या? तुम्हें किसी जिन्न ने डराया नहीं क्या? डेरे पर उपस्थित सिखों ने जवाब दिया कि इस संबंध में गुरु जी ज्यादा जानते हैं। सभी ग्राम वासी गुरु जी के सम्मुख उपस्थित हुए थे और उन्होंने जब इस प्रश्न को गुरु जी से पूछा तो गुरु जी ने इस ग्राम वासियों के मन के वहम को दूर करने हेतु एक विशेष प्रयास का सहारा लेते हुए जवाब दिया कि उस जिन्न को तो हमने मार कर भगा दिया है। उपस्थित सेवादारों ने भी इन ग्राम वासियों को वहम को दूर करने हेतु कहा कि गुरु जी ने स्वयं उस जिन्न को मार के भगा दिया है।
उस दिन शाम को जब गुरु जी ने दीवान सजाया तो स्थानीय ग्रामवासी भी इस दीवान में शामिल हुए थे। गुरु जी ने स्वयं उपदेशित कर ग्राम वासियों के वहमों को दूर किया था। गुरु जी ने गुरबाणी के आधार पर इन ग्राम वासियों का प्रबोधन कर उपदेशित किया था कि सच में जिन्न, भूत-प्रेत क्या होते हैं? जिसे इस तरह से गुरबाणी में अंकित किया गया है–
माइआ मोहु परेतु है कामु क्रोधु अंहकारा॥ (अंग क्रमांक 513)
अर्थात माया का मोह सबसे बड़ा प्रेत है और कहा–
कलि महि प्रेत जिनी् रामु न पछाता सतजुगि परम हंस बीचारी॥
(अंग क्रमांक 1131)
अर्थात इस वर्तमान समय में वह सबसे बड़े प्रेत हैं, जिन्होंने परमात्मा के राम को नहीं पहचाना है, जो परमात्मा के राम का स्मरण नहीं करते हैं। गुरु जी ने उपदेशित किया कि सबसे बड़ा जिन्न तो हमारे घर में मौजूद है। जिसे गुरबाणी में इस तरह अंकित किया गया है–
कली अंदरि नानका जिंनाँ दा अउतारु॥
पुतु जिनुरा धीअ जिंनूरी जोरु जिंना दा सिकदारु॥
(अंग क्रमांक 556)
अर्थात पुत्र भी जिन्न है, पुत्री भी जिन्न है, और मां तो सबसे बड़ी जिन्न है। यदि यह सभी परमात्मा की बंदगी नहीं करते और ना ही सच्चे मार्ग पर चलते है। इनसे बड़ा जिन्न कौन हो सकता है? इन से डरने की आवश्यकता है एवं शेष किसी और से तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं है।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने इस तरह से स्थानीय ग्राम वासियों के वहम को दूर किया था। वर्तमान समय में इस स्थान ग्राम मोड़ कला (जिला भटिंडा) में पुरातन गुरुद्वारा साहिब जी, सरोवर के साथ सुशोभित है। इस स्थान पर गुरुद्वारे के नूतन भवन का निर्माण का कार्य जोर-शोर से चल रहा है। इस स्थान पर गुरु के लंगर भी निरंतर चल रहे हैं।