प्रसंग क्रमांक ६ :गुरु श्री तेग बहादर साहिब जी के बडे़ भ्राता बाबा अटल जी की जीवन यात्रा का इतिहास।

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‘बाबा अटल जी’ का जन्म सन् 1621 ई. में ‘माता नानकी जी’ के कोख से हुआ था। आप जी आयु में भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से दो वर्ष बड़े थे। भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का जन्म भी ‘माता नानकी जी’ की कोख से ही हुआ था अर्थात दोनों ही सगे भ्राता थे। इन दोनों भ्राताओं का आपस में गहरा स्नेह था। भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ बचपन में अपने सहपाठी भ्राता के साथ ही खेलकूद कर बड़े हुए थे।

एक दिन की घटना है कि ‘बाबा अटल जी’ अपने मित्रों के साथ खेल रहे थे और खेलते-खेलते शाम ढल चुकी थी। आप जी का एक साथी ‘मोहन जी’ की इस खेल में क्रमानुसार खेलते हुए खेल की बारी आ चुकी थी परंतु शाम ढलने के कारण दोस्तों में आपस में निर्णय  हुआ कि ‘मोहन जी’ इस खेल में अपनी बारी दूसरे दिन सुबह आ कर देंगे। जब दूसरे दिन सभी मित्र खेलने के लिए एकत्रित हुए परंतु ‘मोहन जी’ खेलने के लिए अनुपस्थित थे। उस समय ‘बाबा अटल जी’ ने अपने मित्रों से पूछा कि मोहन जी क्यों नहीं आए?  कारण आज खेल को आरंभ करने के लिए उनका क्रम है। सभी मित्रों ने अफसोस से कहा कि कल रात ‘मोहन जी’ की सर्पदंश से मृत्यु हो गई। ‘बाबा अटल जी’ ने मित्रों से कहा कि यह झूठ है। ‘मोहन जी’ ने क्रमानुसार आज का खेल आरंभ करना था, इसलिए हो सकता है वह अनजाने में अपने घर पर सो रहे होंगे।

 ‘बाबा अटल जी’ तुरंत अपने साथियों सहित ‘मोहन जी’ को आवाज देते हुए उनके घर जा पहुंचे और कहने लगे कि खेल में आपका क्रम है। चलो उठो; खेल को प्रारंभ करो। उसी समय ‘मोहन जी’ की मां ने उपस्थित होकर अश्रूपूरित आंखों से कहा कि मेरा बेटा अब खेलने नहीं आ सकता कारण अब हमारे वश में नहीं है कि ‘मोहन जी’ को पुनः उठा सकें। ‘बाबा अटल जी ने कहा मैं स्वयं ‘मोहन जी’ को जाकर उठाता हूं और घर के अंदर मृत ‘मोहन जी’ को उठाकर गले से लगा लिया और कहने लगे ‘मोहन जी’ उठो आपको खेल में अपनी बारी देनी है। आप जी आंखें बंद कर क्यों सो रहे हो? चलो उठो! इतिहास में इस घटना का जिक्र आता है कि ‘मोहन जी’ उठकर ‘बाबा अटल जी’ के साथ खेलने चले गए थे।

इस घटना की चर्चा नगर में चारों ओर ‘जंगल की आग’ की तरह फैल चुकी थी। पूरे नगर में चर्चा थी कि ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के पुत्र ‘बाबा अटल जी’ ने एक मृत बालक को पुनः जीवनदान दिया था। अब इस प्रसंग की जानकारी ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ को हुई तो आप जी ने ‘बाबा अटल जी’ को अपने समक्ष बुलाया और नाराजी व्यक्त करते हुए कहा कि यह कौन ‘ईश्वर का स्वरूप’ गुरु घर में जन्मा है? जो मृत व्यक्ति को भी जीवन दान देने लगा है। ‘बाबा अटल जी’ को आपने उस समय कहा कि इन करामातों को दिखाने के लिए आपकी उतनी सहन शक्ति होनी चाहिए। गुरु घर में करामतों को दिखाना अच्छी बात नहीं है। गुरु पुत्र होने के नाते यदि आपको प्रभु-परमेश्वर की बख्शीश मिली है तो उन्हें सहजकर, संभालने की शक्ति होनी चाहिए परंतु आपने गुरु घर के सिद्धांतों के विरुद्ध जाकर करामात दिखाई है। जबकि गुरु घर में करामातों को कोई स्थान नहीं है। अब इस गुरु घर में या तो आप रहेंगे, या हम रहेंगे! एक म्यान में दो कृपाण नहीं रह सकती है, यह आपने बहुत बड़ी गलती की है। इतिहास गवाह है कि ‘बाबा अटल जी’ ने गुरु पिता जी से आज्ञा लेकर क्षमा मांगी और उन्हें गुरु जी के यह वाक्य कि या तो आप रहेंगे, या हम को सुनकर ‘हृदयाघात’ हुआ और आप जी ने कौलसर नामक गुरुद्वारे के स्थान पर अपनी श्वास  को चढ़ाते हुए ‘गुरु पूरी’ (स्वर्ग) सिधार गए थे।

इस घटित घटना का ‘लेशमात्र’ भी दुख गुरु ‘श्री हरगोविंद साहिब जी के मुख पर नहीं था। गुरु जी ने उस वक्त ‘बाबा अटल जी’ का 9 वर्ष की आयु में स्वयं अंतिम संस्कार किया था। इस पूरे प्रसंग के ‘चश्मदीद’ 7 वर्ष की आयु में भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ स्वयं थे और उन्होंने देखा कि इस दुखद प्रसंग का ‘लेशमात्र’ भी दुख गुरु जी के मुख पर प्रतीत नहीं हो रहा था।

डरौली नामक स्थान से ‘भाई साईं दास जी’ गुरु जी से मिलने आए और आपने गुरु जी से पूछा कि आपका पुत्र बाल्यावस्था में ही ‘गुरपुरी’ सिधार गया और आज आप के मुख पर इस दुखद प्रसंग का ‘लेशमात्र’ भी दुख दिखाई नहीं देता है। सुनकर गुरु जी ने ‘भाई साईं दास जी’ के हाथ में एक छड़ी दी और कहा कि जमीन पर आप इस छड़ी से एक लकीर खींच दो और ‘भाई सांई दास जी’ ने उस छड़ी से एक लंबी लकीर रेतीली जमीन पर खींच दी थी। तत्पश्चात गुरु जी ने आदेश दिया कि अब इस रेतीली लकीर को मिटा दो ‘भाई साईं दास जी’ ने तुरंत उस लकीर को मिटा दिया। श्री गुरु ‘हर गोविंद जी’ ने ‘भाई साई दास’ से कहा कि आपको यह रेतीली लकीर खींचने और मिटाने का कोई दुख लगा क्या? ‘भाई साई दास जी’ ने गुरु जी को उत्तर दिया कि गुरु जी मैंने तो केवल आपके हुक्म  का पालन किया है। गुरु जी ने ‘भाई साई दास जी से कहा कि यह सब हुकुमानुसार है। जिस प्रकार से आपको लकीर खींचने का और मिटाने का कोई दुख नहीं है उसी प्रकार से यह सब कुछ प्रभु के बहाने अनुसार घटित हुआ है। पुत्रों का आना-जाना उस ‘अकाल पुरख’ का बहाना है और हमें इस बहाने में विचरण करना चाहिए।

 इस बहुत ही दुखद घटना से भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ मात्र 7 वर्ष की आयु में रूबरू हुए थे। इस घटना ने भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के हृदय को ‘विस्मय बोध’ से सराबोर कर दिया था।

जब हम गुरुवाणी को पढ़ते हैं तो इस गंभीर घटना के एहसास को समझ सकते है। आप जी के जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग आए थे। इन सभी प्रसंगों का उल्लेख आगे के प्रसंगों में किया जायेगा।

प्रसंग क्रमांक 7 : वैराग्य से अभिभूत श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी की विस्मय बोध युक्त जीवन यात्रा का इतिहास ।

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