प्रसंग क्रमांक 69: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबंधित गुरूद्वारा टाहला साहिब जी का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ सुबा पंजाब के मालवा प्रांत में ग्राम बठिंडा के आसपास धर्म प्रचार-प्रसार हेतु यात्राएं कर रहे थे, इस यात्रा के दरमियान आप जी टाहला साहिब नामक ग्राम में पहुंचे थे। उस समय आप जी संगत को सिक्खी से जोड़कर संगत की मुश्किलों को भी हल कर रहे थे। जब गुरु पातशाह जी इस इलाके में पधारे थे तो उस समय इस स्थान पर एक छोटा सा जंगल था। कई वृक्षों के झुंड ने इस स्थान को जंगल का रूप देकर रखा था। गुरु जी ने अपना डेरा इस छोटे से जंगल में स्थापित कर आसपास के ग्रामों में सिख धर्म का प्रचार-प्रसार प्रारंभ कर दिया था। इस स्थान पर वर्तमान समय में एक सरोवर एवं एक कुआं स्थित है। पास ही पुरातन बैरी का वृक्ष भी मौजूद है। इस बैरी के पेड़ पर वर्ष में दो बार फल लगते हैं।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान पर टाली (शीशम) के वृक्ष के नीचे विराजमान हुए थे। पाठकों की जानकारी के लिए टाली (शीशम) के वृक्ष को सुबा पंजाब में राज वृक्ष के दर्जे से सम्मानित किया गया है। इस शीशम के वृक्ष को मालवा प्रांत की सागवान के नाम से भी संबोधित किया जाता है। यदि शीशम के वृक्ष को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी परिपेक्ष्य करें तो वृक्ष से महत्वपूर्ण टॉनिक प्राप्त होते हैं। जिससे कई बीमारियों के लिए देसी दवाइयां बनाई जाती है। इस शीशम के पेड़ के कई औषधीय गुणों से कई दुर्घर रोग जैसे कि कोड़, पेट के कीड़े, बलगम, उल्टियां, पीलिया और अनेक बीमारियों का इलाज किया जाता है। श्रृंखला के रचियता ने स्वयं बचपन में इस शीशम के वृक्ष के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से अपने केशों को धोया है। जिससे केसों की सीकरी (डैंड्रफ) दूर हो गई थी। इस सुबा पंजाब के राज वृक्ष को (Rosewood) के नाम से भी जाना जाता है। समयानुसार पुराना शीशम का पेड़ इस स्थान पर समाप्त हो चुका था परंतु इस ग्राम टाहला साहिब जी के स्थानीय लोगों ने अत्यंत समझदारी का परिचय देते हुए वर्तमान समय में इस स्थान पर सुशोभित गुरुद्वारा टाहला साहिब के दरवाजे की चौखट को उस पुरातन शीशम के पेड़ के तने से बनाया हुआ है।

इस गुरुद्वारे की मंजी साहिब (पालकी साहिब) को भी उस पुरातन शीशम के पेड़ की लकड़ी से निर्मित किया गया है। इस स्थान पर जो लकड़ी के पाए को बनाकर सुशोभित किया है उसकी कारीगरी देखते ही बनती है। पंजाब के हस्तकला कारीगरों की बेमिसाल कला के दर्शन इन वस्तुओं के निर्माण से होते हैं। इन ग्राम वासियों से हमें सीखना चाहिए कि पुरातन वस्तुओं को किस तरह से संभाल कर, संजोकर रखा जा सकता है।

इस स्थान पर एक माता जी ने गुरु जी को निवेदन कर अपनी गोद भरने के लिए विशेष आग्रह किया था कारण माताजी ने दुखी मन से गुरु जी को बताया था कि मेरे बांझपन से लोग मुझ से दूरी बनाकर रखते हैं। गुरु जी ने वचन किए थे कि समय पर तुम्हारी गोद जरूर भरेगी। सच जानना गुरु जी के वचनों अनुसार उस माता जी को पांच पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई थी। भविष्य में इन पांच पुत्र रत्नों के नाम से उसी स्थान पर पांच खाने निर्मित हुए अर्थात् पांच गांव के नामों को उस माता के पुत्रों के नाम से जाना जाता है जो इस प्रकार है– 1. मैसर खाना 2. मानक खाना 3. धन सिंह खाना 4. राय खाना और 5.चनालथन खाना। वर्तमान समय में भी उस माता का भरा-पूरा परिवार इन पांचों खानों के इन पांच ग्रामों में बसता है और गुरु जी के वचन वर्तमान समय में भी लगातार पूरे हो रहे हैं।

प्रसंग क्रमांक 70: श्री तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबंधित ग्राम मोड़ कला का इतिहास।

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