इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 66 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से संबंधित धमतान साहिब जी का विस्तार से इतिहास और क्या है? सिख इतिहास के कौन से ऐसे तथ्य है? जो इस इतिहास से जुड़े हुए हैं। इस संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने धमतान साहिब जी नामक स्थान को सिख धर्म प्रचार-प्रसार के केंद्र के रूप में निरूपित किया था। इस केंद्र से कई जत्थेदारों (प्रचार-प्रमुखों) की नियुक्ति की गई थी। साथ ही सिख धर्म का प्रचार-प्रसार आसपास के इलाकों में किया गया था। धमतान नामक स्थान पर गुरु पातशाह जी दो बार पधारे थे। प्रथम गुरु जी जब धमतान साहिब आये थे तो गुरु जी के द्वारा बैसाखी पर्व के जोड़ मेले को आयोजित किया था। यदि गुरु जी के भ्रमण मार्ग को समझ कर देखा जाए तो इस श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 24 के अंतर्गत जब गुरु पातशाह जी ने बकाला से प्रस्थान किया था तो 22 नवंबर सन् 1664 ई. के दिवस आप भी अमृतसर शहर में पहुंचे थे, आप जी अमृतसर से चलकर ग्राम वल्ला, ग्राम घुकेवाली, ग्राम खेमकरण से चोहला साहिब नामक स्थान से होते हुए गुरु जी पुनः कीरतपुर साहिब में पधारे थे। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ॰ सुखदियाल सिंह जी (पंजाबी यूनिवर्सिटी) के रचित इतिहास अनुसार और उनके आलेखित नक्शे से हमने जाना कि गुरु जी चोहला साहिब, जालंधर बंगा, नवांशहर और होशियारपुर से होते हुए पुनः कीरतपुर साहिब पधार गए थे।
इस श्रृंखला के पिछले प्रसंगों से हम अभी तक जान चुके हैं कि पिछले प्रसंगों के अनुसार गुरु पातशाह जी श्री आनंदपुर साहिब से चलकर विभिन्न स्थानों पर धर्म का प्रचार-प्रसार कर धमतान साहिब में पहुंचे थे। इस प्रसंग में हम उन सभी ऐतिहासिक तथ्यों को जानने का प्रयास कर रहे हैं। इन तथ्यों का जिक्र इतिहासकार प्रिंसिपल सतबीर सिंह जी, प्यारा सिंह जी ‘पदम’ (गुरु की साखियां) सरदार सरूप सिंह जी कौशिक के द्वारा रचित इतिहास का अध्ययन करने के पश्चात ज्ञात होता है कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ बठिंडा इलाके से धर्म का प्रचार-प्रसार कर धमतान साहिब में पहुंचे थे। सरदार राजींदर सिंह जी जाखड़ पटियाला निवासी विगत 25 वर्षों से गुरु जी के इन सभी भ्रमण मार्गों को आलेखित कर उस भ्रमण मार्ग का सही-सटीक और क्रमानुसार नक्शा बनाकर अपनी विशेष सेवाएं अर्पित कर रहे हैं। सरदार राजींदर सिंह जी इस इलाके के मूल निवासी हैं और इस इलाके मैं निरंतर खोज कर इस भ्रमण मार्ग के नक्शे को आप जी ने आलेखित किया है। इस विषय में पंथ के सभी इतिहासकारों और विद्वानों की सर्वसम्मति से राय बनाकर इस भ्रमण मार्ग को सही-सटीक कर, नक्शा बनाकर आलेखित किए जाने की आवश्यकता है। इस विशेष अवसर पर इस कार्य को करने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। जिससे कि आने वाली नई पीढ़ी और इस इतिहास पर पी.एचडी. करने वाले विद्यार्थियों को सहूलियत हो सकें। साथ ही विद्वानों के लिए इस इतिहास को जानना सरल और सटीक होगा।
यदि हम गुरु पातशाह जी के धमतान साहिब जी के प्रथम दौरे को दृष्टिक्षेप करे तों इस श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 31 एवं 32 के इतिहास अनुसार गुरु पातशाह जी चोहला साहिब जी से चलकर भाई की ड़रौली नामक स्थान से तलवंडी साबो नामक स्थान पर पहुंचे थे। वर्तमान समय में तलवंडी साबो को तख़्त ‘श्री दमदमा साहिब जी’ के नाम से जाना जाता है। जब गुरु पातशाह जी का इस स्थान पर आगमन हुआ था तो आप जी ने अपने निवास का समुचित प्रबंध इसी स्थान पर किया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा मंजी साहिब जी पातशाही नौवीं एवं दसवीं सुशोभित है। इस गुरुद्वारा मंजी साहिब के नीचे की और एक भौरा (बाड़ा) बना हुआ है। इस भौरा (बाडे़) के गर्भगृह में यदि प्रवेश करें तो वर्तमान समय में पुरातन बेरी के वृक्ष का तना इस स्थान पर स्थापित किया हुआ है। उस समय इस बेरी के वृक्ष की छांव में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ विराजमान हुए थे। आसपास के स्थानों पर आप जी के सेवादारों के तंबुओं को लगवाया था।
इस ग्राम साबो की तलवंडी के स्थानीय निवासियों ने गुरु पातशाह जी को विनम्र निवेदन किया था कि गुरु पातशाह जी इस स्थान पर स्वच्छ पानी की बहुत कमी है। इस कारण आसपास के निवासियों को अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सिख धर्म के प्रसिद्ध इतिहासकार भाई कान्ह सिंह जी ‘नाभा’ के रचित इतिहास के पृष्ठ क्रमांक 620 के अनुसार गुरु पातशाह जी ने स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से एक कही (कुदाल) को मंगवाया था। साथ ही इस कही (कुदाल) से उस स्थान पर सूखी हुई झपड़ी (तलाव) में उतर कर स्वयं के कर-कमलों से प्रथम पांच टको (पांच समय लगातार कुदाल मारकर गड्ढा खोदना) को लगाया था और स्वयं के दुशाले में खोदी हुई मिट्टी को डालकर उस मिट्टी को बाहर निकाला था। गुरु जी की इस पहल से स्थानीय ग्राम वासियों में एक नव चेतना का संचार हुआ और सभी ग्रामवासी एवं उपस्थित सिख सेवादारों ने खुदाई प्रारंभ कर ‘कार सेवा’ को अंजाम दिया था। इस कार सेवा में आसपास के ग्रामीण इलाकों के स्थानीय निवासियों ने अपना तन-मन-धन से पूरा सहयोग दिया था। देखते ही देखते या तलाव एक बहुत गहरे स्वच्छ पानी के स्त्रोत के रूप में परिवर्तित हो चुका था। इस संपूर्ण ‘कार सेवा’ के पश्चात स्थानीय ग्राम वासियों को कभी भी पानी की कमी की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा था। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरु जी की स्मृति में भव्य सरोवर सुशोभित है। वर्तमान समय में यह स्थान तख़्त दमदमा साहिब जी के पिछले भूभाग पर भव्य गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं एवं दसवीं विलोभनीय सरोवर के साथ सुशोभित है।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में तख़्त दमदमा साहिब जी में दो स्थान सुशोभित हैं। प्रथम गुरुद्वारा मंजी साहिब और साथ ही सरोवर सुशोभित है। साथ ही निकट में एक अन्य गुरुद्वारा मंजी साहिब जी भी सुशोभित है। इस स्थान पर भी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ विराजमान हुए थे।
प्रसिद्ध सिख इतिहासकार प्रिंसिपल सतबीर सिंह जी रचित इतिहास अनुसार गुरु पातशाह जी साबो की तलवंडी से चलकर कोट धरमु नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस कोट धरमु का इतिहास ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से कैसे जुड़ा हुआ है? यह वह ही स्थान है जहां पर गुरु पातशाह जी का घोड़ा चोरी हुआ था। इस स्थान पर एक चोर ने आत्महत्या (सूली) की थी। इस समस्त इतिहास से श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 67 में संगत (पाठकों) को रूबरू कराया जायेगा।