प्रसंग क्रमांक 65: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबंधित धमतान साहिब जी में भाई मींहा जी का इतिहास।

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इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 65 के अंतर्गत धमतान नगर में गुरु जी की सेवा में कौन गुरु का सिख हाजिर हुआ था? जिस पर गुरु पातशाह जी ने बक्शीश की थी। वर्तमान समय में इस सिख सेवादार को ‘गुरु पंथ खालसा” कौन से नाम से संबोधित करता है? इस पूरे इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।

धमतान साहिब में गुरु पातशाह जी के निवास करते हुए अनेकों सिख सेवादारों ने अहम का भाव त्याग कर सच्चे मन से अपनी सेवाएं अर्पित की थी। दूर-दराज के इलाकों से संगत के द्वारा जो गुरु घर में सेवाएं की जाती थी उन सभी सेवाओं को गुरु जी के द्वारा फल लगाए जाते थे।

इस स्थान के इतिहास को परिपेक्ष्य करें तो सम्मुख आता है कि भाई दगो जी ने गुरु जी से पूछा था कि वह सिख जो दिन रात आपकी सेवा में समर्पित रहता है। उस सिख को स्वयं की भी सुध नहीं है। जो हमेशा पानी की सेवा कर पानी का छिड़काव करता रहता है। कौन है वह सिख? गुरु जी ने वचन किए कि यह सिख ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ के समय का है। वह सिख भाई नंद लाल जी सोहणा के पुत्र भाई रामदेवजी हैं। सातवीं पातशाही के समय यह लोग फेरी लगाकर घी बेचते थे। इसलिए इन्हें भाई फेरू जी के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

साथ ही गुरु पातशाह जी ने वचन किए कि इस सिख ने जब से हमने श्री आनंदपुर साहिब से धर्म प्रचार-प्रसार की यात्रा आरंभ की है, उसी समय से हमारी सेवा में समर्पित है। इस सिख को पानी के इंतजाम की सेवाएं प्रदान की गई है परंतु इस स्थान पर इन्होंने अपनी सेवाओं से कमाल ही कर दिया है। इस स्थान पर पानी की कमी है परंतु इस सेवादार रामदेव जी ने दिन-रात एक कर के सभी के लिये पानी का उत्तम प्रबंध किया है और तो और इस स्थान पर यदि कहीं धूल-मिट्टी उड़ती है तो यह निरंतर पानी का छिड़काव करता रहता है। इसकी सेवा से प्रसन्न होकर गुरु पातशाह जी ने वचन किए थे कि भाई रामदेव जी आप जो पानी छोड़ने की ऐसी सेवा करते हो जैसे मींह (बारिश) बरस रहा हो। गुरु जी के इस वचन से इस सिख सेवादार को अन्य सिख भाई मीहां जी के नाम से संबोधित करने लगे थे।

जब गुरु जी ने इस स्थान से प्रस्थान किया तो इस स्थान के प्रमुख प्रचारक के रूप में गुरु जी ने भाई मीहां सिंह जी को मनोनीत किया था। गुरु पातशाह जी ने भाई मीहां सिंह जी को एक वलद (बैल), नगाड़ा और निशान साहिब जी की बख्शीश की थी। साथ ही आशीर्वाद वचन देकर कहा था कि भाई मीहां जी आप जिस भी ग्राम में जाकर सिखी का प्रचार-प्रसार करोगे तो उन्हें किसी भी प्रकार का कोई भी घाटा नहीं होगा। अर्थात जो सच्चे दिल से सेवा करते हैं गुरु पातशाह जी उन पर बक्शीश भी करते हैं। जब सातवीं पातशाही जी ने इन पर बक्शीश की थी और वचन किए थे कि–

 खिसा मेरा और हाथ तेरा॥

साथ ही उस समय ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने वलद (बैल) नगाड़ा और निशान साहिब जी की बख्शीश की और वचन किए कि जिस स्थान पर तुम नगाड़ा बजाते हुए चले जाओगे तुम्हारी फतेह ही फतेह निश्चित है। इस भाई मीहां सिंह जी ने बांगर (सुबा पंजाब के साथ सुबा हरियाणा का जुड़ा हुआ कुछ इलाका जिसमें कई ग्रामों का समावेश किया गया है, आप जी को इस बांगर इलाके का प्रचारक मनोनीत किया गया था) नामक स्थान पर भी सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया था।

जब गुरु गोविंद सिंह साहिब जी गुरु के रूप में सुशोभित हुए और गुरु जी स्वयं के दरबार में विराजमान थे तो यह मीहां सिंह वलद (बैल) के ऊपर चढ़कर नगाड़ा बजाते हुए ही दरबार में उपस्थित हो गया था। जब दरबार में अन्य सिखों ने पूछा कि गुरु पातशाह जी यह कौन सा सिख है? तभी गुरु जी ने स्वयं उठकर भाई मीहां सिंह को गले से लगाया था।

गुरु गोविंद सिंह साहिब जी महाराज ने इसे अफगानिस्तान में स्थित काबुल और कंधार नामक स्थान पर धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए भेजा था। गुरु पातशाह जी के इस सेवादार ने काबुल-कंधार में भी जाकर सिखी का प्रचार-प्रसार कर गुरु जी के अटूट लंगर चला दिए थे। इस मीहां सिंह को श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी ने काबुल-कंधार के मसंद के रूप में भी मनोनीत किया था।

इस मीहां सिंह ने पूरी ईमानदारी और सिख मान-मर्यादाओं के तहत अपनी सेवाओं को जारी रखा था। इन सेवाओं के तहत कार सेवा में और दसवंद (कीरत-कमाई के दसवां हिस्सा) के रूप में जो भी धन लाभ होता था उस धन को लोक-कल्याण एवं लंगरों के लिए उसी स्थान पर खर्च कर दिया जाता था। उस समय कुछ मसंद जो दसवंद के रूप में धन इकट्ठा होता था उस धन का स्वयं के लिए उपयोग करने लगे थे। ऐसे सभी मसदों को गुरु जी ने श्री आनंदपुर साहिब में एकत्रित किया था। उस समय कुछ सिख सेवादारों ने मसंद मीहां सिंह जी के ऊपर भी अपनी आशंका को प्रकट किया था एवं गुरु पातशाह जी को शिकायत की थी कि मसंद मीहां सिंह भी कार सेवा और दसवंद की माया को स्वयं के उपयोग के लिये खर्च कर रहा है। उस समय ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने भाई आलम सिंह के साथ 5 सिखों को काबुल-कंधार भेजा था और वचन किए थे कि भाई मीहां सिंह जी को दाढ़ी से पकड़कर हमारे सामने उपस्थित किया जाए।

जब यह पांच सिख काबुल-कंधार नामक स्थान पर पहुंचे और देखा कि जो हमने सुना था उसके बिल्कुल विपरीत है। यह मसंद बाकी के मसंदों की तरह नहीं है यह तो कार सेवा और दसवंद के माध्यम से एकत्र धन को पूरी तरह से लोक-कल्याण और लंगरों के लिए खर्च कर रहा है। इस मसंद ने तो पूरी ईमानदारी और श्रद्धा से सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया है। उन सिखों ने इस मसंद के नाम-सिमरन और बंदगी को देखकर, नमन कर गुरु जी के हुक्म अनुसार इस सिख के आचरण को देखकर इस की दाढ़ी पकड़ने से साफ इनकार कर दिया था।

उस समय भाई मीहां सिंह जी ने श्रद्धा और नम्रता में रहते हुए ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के हुक्म अनुसार इन सिख सेवादारों से कहा कि यदि तुम मुझे मेरी दाढ़ी पकड़कर नहीं ले गए तो मैं स्वयं अपनी दाढ़ी पकड़कर गुरु जी की चरणों के सम्मुख उपस्थित होऊंगा।

भाई मियां सिंह जी स्वयं की दाढ़ी पकड़कर ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के सम्मुख उपस्थित हुए थे। साथ ही उन्होंने गुरु जी के वचन का मान रखते हुए गुरु जी के हुक्म को भी तोड़ा नहीं था।  भाई मींहा सिंह स्वयं की दाढ़ी पकड़कर स्वयं गुरु दरबार में उपस्थित हुए थे। गुरु जी के चरणों में अपना शीश रखकर कहा कि गुरु जी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई हो गई है। आपने मुझे मसंद मनोनीत कर काबुल-कंधार की सेवाओं का जिम्मा सौंपा था परंतु मेरे द्वारा एकत्र दसवंद का धन में आपको भेज ना सका। कारण मैंने उस धन को वहां पर जो जरूरतमंद थे उनके लिए ही खर्च कर दिया।

‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ अंतर्यामी थे। उन्होंने भाई मीहां सिंह को अपने दोनों हाथों से उठाकर गले से लगा लिया था। गुरु पातशाह जी ने वचन किए कि हम सब जानते हैं तुम सजा के नहीं अपितु बक्शीश के हकदार हो। सातवीं पातशाही ने तुम्हारे ऊपर बक्शीश की थी। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने तुम्हारे ऊपर बक्शीश की थी। हम आज आपको साहिब की पदवी से नवाजते हैं। उस समय गुरु पातशाह जी ने भाई मीहां सिंह जी को भाई मीहां सिंह साहिब की पदवी से नवाजा था। 

उस समय गुरु पातशाह जी ने जो वचन किए थे, उन्हें इस तरह से अंकित किया गया है–

भाई फेरू तेरी सच्ची दाढ़ी॥

भाई फेरू तेरी सेवा गाढ़ी॥ 

भाई फेरू तेरी करनी सारी॥

भाई फेरु जग तुलहा भारी॥

भाई फेरू को सतगुरु बलहारी॥

भाई फेरू को सद्गुरु बलहारी॥

दोषी मसंदो को सजा के रूप में एक अंधे कुएं में डालकर जला दिया गया था। उसी समय भाई फेरु जी पर गुरु जी ने बक्शीशों का (मींह) बारिश को बरसा दिया था।

गुरु जी ने उस समय भाई मीहां सिंह साहिब जी को आशीर्वाद वचन देकर इस प्रकार से उपदेशित किया था कि–

नाम जपो, कीरत करो और वंड़ छकों एवं कहा कि–

भाई फेरू आज के पश्चात खिसा भी तेरा और हाथ भी तेरा॥

तुम्हें जीवन में किसी भी प्रकार का सेवा में कोई घाटा नहीं होगा। जो गुरु घर की सच्चे मन से सेवा करते हैं गुरु जी उन पर बक्शीश भी करते हैं। साथ ही जो मन में कपट रखकर सेवा करते हैं उन्हें गुरु जी सजा भी देते हैं। 

श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी पर बलहारी जाएं॥

प्रसंग क्रमांक 66: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की  धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबंधित गुरूद्वारा धमधान साहिब जी के प्रथम दौरे का संपूर्ण इतिहास।

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