प्रसंग क्रमांक 62: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबंधित मालवा प्रांत के ग्राम कमालपुर, ग्राम खनाल, ग्राम दिड़बा, ग्राम शामली और ग्राम गागा का इतिहास।

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इस प्रस्तुत श्रृंखला के अंतर्गत श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु मालवा प्रांत के ग्राम कमालपुर, ग्राम खनाल,ग्राम दिड़बा, ग्राम शामली और ग्राम गागा नामक स्थानों पर पहुंचे थे। इस पूरे इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ मालवा प्रांत के विभिन्न ग्रामों में धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। इस धरती को ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ और गुरु “श्री हरगोविंद साहिब जी’ ने भी अपने चरण-चिन्हों से पवित्र किया था। इस यात्रा के तहत गुरु पातशाह जी ग्राम कमालपुर नामक स्थान पर पहुंचे थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। इसी स्थान पर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ एवं  श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी भी पधारे थे। इस तरह से सिख धर्म के 3 गुरुओं ने इस धरती को अपने चरण-चिन्हों पवित्र किया था। गुरु पातशाह जी ने इंहे नाम-वाणी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। ग्राम कमालपुर से चलकर गुरु जी ग्राम खनाल नामक स्थान पर पहुंचे थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा दुख भंजन साहिब जी सुशोभित है। इस स्थान पर गुरु पातशाह जी ने सिखों को एकजुट कर लामबंद किया था और नाम-वाणी से भी जोड़ा था। इस स्थान पर गुरु जी ने स्थानीय ग्राम वासियों को वचन किए थे कि तुम्हारे अधुरे और बिगड़े हुए सभी काम संवर जाएंगे।

ग्राम खनाल से चलकर गुरु जी ग्राम दिड़बा नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्थान पर स्वच्छ पानी का स्रोत उपलब्ध होने के कारण गुरु जी ने यहां अपना डेरा लगाया था। जब गुरु जी इस स्थान पर आए थे तो छोटे-छोटे टीला नुमा पहाड़ों पर जल प्रपात थे। इन जलप्रपातों को पंजाबी भाषा में दैड़ कहकर भी संबोधित किया जाता है। इस दैड़ शब्द का अपभ्रंश होकर इस ग्राम को दिड़बा कहकर संबोधित किया जाने लगा। अब यह ग्राम एक नगर के रूप में परिवर्तित हो चुका है। वर्तमान समय में इस स्थान पर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की स्मृति में भव्य गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है।

जब आसपास के ग्रामों की संगत को ज्ञात हुआ कि ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की नौवीं ज्योत और छठी पातशाही ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के सुपुत्र ‘श्री गुरु तेग बहादुर जी’ इस स्थान पर पधारे हैं तो दूर-दराज के इलाकों की संगत ने उपस्थित होकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के दर्शन-दीदार किए थे और गुरु जी ने इन संगत को नाम-वाणी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया था।

यदि हम इतिहास को परिप्रेक्ष्य कर विचार करें कि गुरु जी क्रमानुसार कौन-कौन से ग्रामों में धर्म प्रचार-प्रसार की यात्रा के लिए गए थे? तो बहुत कठिनाई होगी कारण विभिन्न ग्रंथों और स्रोतों में विभिन्न प्रकार की जानकारियां प्राप्त होती है परंतु गुरु जी की कृपा से पटियाला निवासी सरदार राजिंदर सिंह जी जाखर जी के पास इस संबंध में सही-सटीक और प्रमाणित जानकारी उपलब्ध है। कारण सरदार राजिंदर सिंह जी जाखर विगत 25 वर्षों से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के द्वारा की गई धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा का आप जी नक्शा तैयार कर रहे हैं। उन्होंने विगत 25 वर्षों से प्रत्येक तारीख और स्थानों की जानकारियों को क्रमानुसार एकत्र करने का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण कार्य किया है।

श्रृंखला के रचयिता सरदार भगवान सिंह जी खोजी ने स्वयं पटियाला में सरदार राजिंदर सिंह जी जाखर से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात कर इस यात्रा के पूरे ब्यूरो की जानकारी को उनसे प्राप्त किया है। भविष्य में हम इस श्रृंखला के सभी प्रसंगों को उपरोक्त प्राप्त विवरण के आधार पर ही क्रमानुसार इस इतिहास की जानकारी संगत (पाठकों) को प्रदान करेंगे। सरदार राजिंदर सिंह जी जाखर के बनाए हुए इस यात्रा के नक्शे अनुसार गुरु पातशाह जी ग्राम दिड़बे से चलकर ग्राम शाजली नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम शाजली से चलकर गुरु पातशाह जी ग्राम गागा नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम गागा में गुरु जी की स्मृति में भव्य गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। गुरुद्वारा परिसर में जंड (बेशर्म) के वृक्ष मौजूद है। इन वृक्षों के तने से ही गुरु पातशाह जी ने स्वयं के घोड़ों को बांधा था। इस स्थान पर गुरु जी ने डे़रा डालकर साथी संगत के साथ निवास किया था। इस डेरे में अनेक ऊंट और घोड़े भी शामिल थे।

डेरे में कुछ सिख सेवादारों की सेवा लगी हुई थी कि वह डे़रे में मौजूद घोड़ों और ऊंटों के चारा-पानी का इंतजाम करें। जब यह सिख सेवादार घास और चारा-पानी लाने के लिए समीप के खेतों में गए थे तो स्थानीय खेतों के मालिकों ने इन सिख सेवादारों के साथ अभद्र व्यवहार किया था और अभद्र शब्दावली का उपयोग भी किया था।

जब इन खेतों के मालिकों को ज्ञात हुआ कि यह सिख सेवादार गुरु पातशाह जी की सेवा में अपनी सेवाएं अर्पित कर रहे हैं और गुरु जी के साथ इस यात्रा में चल रहे घोड़ों एवं ऊंटों के लिए चारा-पानी का इंतजाम करने आए थे। इन खेत मालिकों को अपनी गलती का एहसास हुआ था और वह सभी गुरु जी से क्षमा मांगने हेतु ग्राम गागा में पहुंचे थे। तब तक ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी भविष्य की यात्रा हेतु चलकर इस यात्रा में आने वाले अगले ग्राम में पहुंच चुके थे।

प्रसंग क्रमांक 63: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबंधित ग्राम गुरना, ग्राम लेहल कला, ग्राम मकरोंड और ग्राम महासिंह वाला का इतिहास।

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