भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर जी’ की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा के लिए आपको दरबार साहिब के प्रथम हेड ग्रंथी ‘बाबा बुड्ढा जी’ के पास रमदास स्थित विद्यालय में भेजा गया था। इस स्थान पर ही ‘बाबा बुड्ढा जी’ ने सिख धर्म के पहले ‘श्री गुरु नानक देव जी’ से पांचवें ‘श्री गुरु अर्जुन देव जी’ के इतिहास के जीवन प्रसंगों को आप जी को बहुत ही सुंदर ढंग से अवगत कराये गये थे और गुरुवाणी को भी कंठस्थ करवाया था।
इसके साथ ही उस समय के सिख धर्म के महान विद्वान ‘भाई गुरदास जी’ जिन्होंने सिख धर्म के ‘वेद-व्यास’ के रूप में निरूपित किया गया था। (‘भाई गुरदास जी’ सिख धर्म के तीसरे ‘श्री गुरु अमर दास जी’ के भतीजे तो थे ही साथ ही साथ आप जी सिख धर्म के पांचवें गुरु “श्री अर्जन देव जी’ के रिश्ते में मामा जी थे)। भाई गुरुदास जी को भी भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की शिक्षा का दायित्व सौंपा गया था।
सन् 1601 ई. से लेकर सन् 1604 ई. तक जब ‘श्री आदि ग्रंथ जी’ की वाणीयों को संकलित किया जा रहा था उस समय सिख धर्म के पांचवे ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ ने ‘भाई गुरदास जी’ से ‘श्री आदि ग्रंथ जी’ की वाणीयों को लिखवाया था। सन् 1604 में “श्री आदि ग्रंथ जी’ को संपादित कर ‘प्रथम प्रकाश’ किया गया था। उस समय ‘बाबा बुड्ढा जी’ को प्रथम हेड ग्रंथि के रूप में नियुक्त किया गया था।
‘भाई गुरदास जी’ और ‘बाबा बुड्ढा जी’ को जो जवाबदारी मिली थी, उन जवाबदारियों को उत्तम रीति से निभा रहे थे। साथ ही आप जी भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को उत्तम ढंग से सिख रीति-रिवाजों और संस्कारों से शिक्षित भी कर रहे थे। ‘भाई गुरदास जी’ ने ब्रजभाषा के अतिरिक्त कई अन्य भाषाओं का ज्ञान भी भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को दिया था। अपने समय में ‘भाई गुरदास जी’ इन दायित्वों को बहुत ही अच्छे ढंग से निभा रहे थे। साथ ही बाबा बुड्ढा जी के निरीक्षण में ‘गतका विद्या’ (सिख योद्धाओं के द्वारा परंपरागत विधि से सीखने वाली शस्त्र विद्या) को सीखने का प्रारंभ भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने कर दिया था।
भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने समय में ‘भाई गुरदास जी’ से ‘आदि सिखों की साखियां’ (ऐतिहासिक प्रसंगों) का इतिहास और ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ महाराज की शहीदी तक के समस्त इतिहास को जान चुके थे। ‘भाई गुरदास जी’ और ‘बाबा बुड्ढा जी’ के निरीक्षण में आपको शस्त्रों के ‘सैन्य प्रशिक्षण’ हेतु ‘लोहगढ़’ के किले में भेजा गया था। इस किले में सिख धर्म के छठें ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ की और से ‘सैन्य प्रशिक्षण’ दिया जा रहा था और शस्त्र विद्या का परीक्षण देकर आप जी को युद्ध कला में ‘पारंगत’ किया गया था।
इस ‘सैन्य प्रशिक्षण का पूर्ण दायित्व ‘भाई जेठा जी’ संभाल रहे थे। ‘भाई जेठा जी’ वो ‘शूरवीर योद्धा’ थे जब सिख धर्म के पांचवे ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने ‘शहादत’ का जाम पिया था तो उस समय भाई जेठा जी, भाई प्राणा जी और अन्य तीन सिख ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के साथ प्रत्यक्षदर्शी थे। ‘भाई जेठा जी’ वो प्रत्यक्षदर्शी हैं जिन्होंने ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ को ‘शहादत’ का जाम पीते हुए स्वयं अपनी आंखों से देखा था। ‘भाई जेठा जी’ ने उस वक्त की संवेदना और दर्द को बहुत अच्छी तरह से महसूस किया था। इसी प्रत्यक्षदर्शी ने ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ को ‘शहादत’ का जाम पीते हुए और प्रभु के ‘मीठे बहाने’ को मानते हुए देखा था।
‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ की ‘शहीदी’ के पश्चात ‘भाई जेठा जी’ ने ही इन सभी घटित घटनाओं को प्रत्यक्षदर्शी के रूप में संगत को जानकारी दी थी। आप जी ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के विश्वास पात्र एवं निकटवर्ती सिख थे। लोहगढ़ के किले में जो ‘सैन्य प्रशिक्षण’ चल रहा था उस समय ‘भाई गुरदास जी’ को प्रमुख सेनापति के रूप में मनोनीत किया गया था। ‘भाई गुरदास जी’ के निरीक्षण के अंतर्गत ही अन्य सिख एवं गुरु पुत्रों ने ‘सैन्य प्रशिक्षण’ की शिक्षा ग्रहण की थी।
इस ‘सैन्य परीक्षण’ के समय ही ‘भाई जेठा जी’ द्वारा भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को तलवारबाजी’ तीरंदाजी, घुड़सवारी और अन्य शस्त्रों की शिक्षाएँ दी गई थी ताकि आगे के युद्ध लड़े जा सके। ‘भाई जेठा जी’ दबंग शूरवीर योद्धा थे। जब ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ग्वालियर के किले में कैदी थे तो आप जी ने जहांगीर को उसके महलों में जाकर अपनी दबंगई से उसे भयभीत किया था। जब गुरु जी ग्वालियर के किले में कैद थे तो गुरु जी उस समय किले में तैयार भोजन को छूते भी नहीं थे। ऐसे कठिन समय में ‘भाई गुरदास जी, भाई जेठा जी’ अपने अन्य साथियों के साथ ‘कीरत और मेहनत’ कर जो कमाई होती थी उस कमाई से ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के भोजन की व्यवस्था की जाती थी।
लोहगढ़ के इस किले पर ही भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को शस्त्र विद्या के साथ ही धर्म की कीरत के संस्कारों से भी आत्मसात कराया गया था। इन सभी शिक्षाओं के अतिरिक्त अन्य सिखों और गुरु पुत्रों को ‘गुरमत संगीत’ के महत्वपूर्ण वाद्य, ‘तंती वाद्य’ का भी इस ‘संगीत विद्या’ में प्रशिक्षण दिया गया था। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के समय में ‘रबाब’ नामक वाद्य की उत्पत्ति हो चुकी थी। इसी प्रकार ‘श्री गुरु अमर दास साहिब जी’ एवं ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के समय में ‘सिरंदा’ नामक वाद्य यंत्र का आविष्कार हो चुका था और ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के समय में ‘गुरमत संगीत’ में ‘सारंगी’ नामक वाद्य को भी मान्यता प्रदान की गई थी।
भाई सत्ता जी, भाई बलवंड़ जी गुरु घर के महान रबाबी थे। उन के उपरांत ‘भाई बाबक जी’ इस रबाब बजाने की महान सेवा निभा रहे थे। भाई बाबक जी ने गुरु पुत्रों और अन्य सिखों को इन ‘राग विद्या’ और ‘गुरमत संगीत’ विद्या में निपुण किया था। साथ ही ‘गुरमत संगीत’ की बारीकियों से भी अवगत कराया था। उस समय ‘गुरमत संगीत’ के 30 रागों का इन विद्यार्थियों को गहन प्रशिक्षण दिया गया था।
उस समय भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने ‘गुरमत संगीत’ का उत्तम प्रशिक्षण ही नहीं लिया था अपितु आप जी ने एक नए राग, ‘राग जैजावंती’ का आविष्कार भी किया था। इस ‘राग जैजावंती’ का प्रथम उच्चारण आप जी ने किया था और इस राग को 31 वें राग के रूप में ‘गुरमत संगीत’ में शामिल किया गया था।
भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने ‘मृदंग’ बजाने की कला में महारत हासिल कर रखी थी। आप जी कीर्तन करते हुए ‘मृदंग’ पर साथ करते थे। सभी वाद्यों के साथ-साथ आप जी ‘मृदंग’ बजाने की कला में पारंगत थे।
इतिहास को यदि दृष्टिक्षेप करें तो भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के द्वारा रचित 59 पद्यों, 57 श्लोकों को मिलाकर इस प्रकार से कुल 116 पद्यों को ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में 15 रागों के अंतर्गत अंकित किया गया है।
भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की समस्त शिक्षा-दीक्षाओं का यदि आकलन किया जाए तो यह समक्ष आता है कि बाबा बुड्ढा जी, भाई गुरदास जी, रबाबी भाई बाबक जी और भाई जेठा जी का उनकी शिक्षा-दीक्षा में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान था।
‘उत्तम वैद्य’ के रूप में भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने चिकित्सा विज्ञान में भी महारत हासिल कर रखी थी और कई दुर्गम रोगों का इलाज भी किया था। आप जी को कई प्रकार की जड़ी-बूटियों की उत्तम जानकारी थी कारण ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने अपने कार्यकाल में तरनतारन में एक विशेष ‘चिकित्सा केंद्र’ बनाया था और इस केंद्र में कोढ़ के रोग से पीड़ितों का उत्तम इलाज किया जाता था। साथ ही जब लाहौर शहर ‘अकाल ग्रस्त’ हुआ था तो वहां पर भी रोगियों का उत्तम इलाज किया था। इन सेवाओं को उत्तम ढंग से निभाते हुए भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में महारत हासिल की थी। इस ‘चिकित्सा विज्ञान’ की शिक्षा को भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के साथ-साथ आप जी से दो वर्ष आयु में बड़े भाई ‘बाबा अटल जी’ ने भी प्राप्त की थी।