‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के तहत ग्राम लंग नामक स्थान पर सहपरिवार और प्रमुख सिखों के साथ पहुंचे थे। गुरु जी ने इस ग्राम लंग में जिस स्थान पर निवास किया था उस स्थान पर स्थित पुरातन ‘खिरनी’ का वृक्ष वर्तमान समय में भी स्थित है। ‘खिरनी’ का पेड़ अत्यंत औषधीय गुणों वाला मूल्यवान पेड़ होता है। इस ‘खिरनी’ के पेड़ का वैज्ञानिक नाम मनीकारा हेक्जैंड्रा है। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी उत्तम वैद्य और चिकित्सक थे। विगत और भविष्य के प्रसंगों में कई बार जिक्र आता है कि गुरु जी ने कोड़, तपेदिक (टी°बी°) और विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों का इलाज सफलतापूर्वक कर लोक-कल्याण का महान कार्य किया था।
गुरु जी इस ‘खिरनी’ के पेड़ के नीचे विराजमान हुए थे। उस पुरातन समय से लेकर वर्तमान समय में भी यह वृक्ष इसी स्थान पर स्थित है। इस लगभग 400 वर्ष पुरातन वृक्ष की हमें अच्छे से देखभाल करनी चाहिए। इस वृक्ष की जड़, तना, पत्ते और बीज सभी में बहुमूल्य औषधीय गुण हैं। इस ‘खिरनी’ के पेड़ के बीजों में विटामिन बी. प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आज के इस आधुनिक युग में हमें चिकित्सकों के द्वारा सीधे से विटामिन बी, विटामिन सी की गोलियां दी जाती है परंतु उस पुरातन समय में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को इन वृक्षों के औषधीय गुणों का उत्तम ज्ञान था। इस वृक्ष के बीज के औषधीय गुणों से तपेदिक (टी.बी.) और आंखों की बीमारियों का उत्तम इलाज किया जा सकता है। इस मनीकारा हैक्सेंड्रा (खिरनी) वृक्ष की जानकारी गूगल पर भी उपलब्ध है।
विचार करने वाली बात है कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ जिन वृक्षों के नीचे बैठते थे, निश्चित ही उन वृक्षों में औषधीय गुणों का भंडार होता था। वर्तमान समय में हम सभी अपनी परंपरागत औषधियों के सेवन को त्याग कर कृत्रिम दवाइयों के सेवन में लगे हुए हैं।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के भतीजे ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने कीरतपुर नामक स्थान पर एक बहुत बड़े बगीचे का निर्माण किया था और सभी औषधीय गुण वाले पेड़, पौधे एवं जड़ी, बूटियों को उस बगीचे में रोपित किया था। साथ ही आप जी इन सभी हर्बल एवं आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से बहुत बड़े चिकित्सालय का संचालन भी करते थे।
क्या विरासत से प्राप्त इस चिकित्सा विज्ञान का ज्ञान ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को नहीं होगा? क्या श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी के पश्चात गुरता गद्दी का जो सामान विरासत में मिला था। उस सामान में क्या गुरु जी को हर्बल और आयुर्वेदिक औषधियों का खजाना नहीं प्राप्त हुआ होगा? उस खजाने के साथ गुरु जी को विरासत में 2200 घुड़सवारों की सेना भी मिली थी। इन सभी ऐतिहासिक तथ्यों पर विचार करने की आवश्यकता है।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में ग्राम लंग में गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस गुरुद्वारा साहिब के परिसर में ऐतिहासिक ‘खिरनी’ का पेड़ स्थित है। वर्तमान समय में इस ऐतिहासिक पेड़ की सेवा-संभाल करना अत्यंत आवश्यक है।
इस ग्राम के ‘खिरनी’ के पेड़ के नीचे ही गुरु जी विराजमान हुए थे। इस ग्राम की एक सिख सेवादारनी माई, लखन पत्ती नामक स्थान की निवासी भी आपके चरणों में उपस्थित हुई थी और इस माई ने गुरु जी एवं संगत की लंगर (भोजन प्रशादि) की सेवा कर अपना जीवन सफल किया था। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के दर्शन-दीदार हेतु इस इलाके की संगत उपस्थित हुई थी। गुरु जी ने धर्म का प्रचार-प्रसार कर संगत को नाम-बानी से जुड़ा था। ग्राम लंग पटियाला नामक शहर से मात्र 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह ग्राम बहुत ही खुशहाल (चढ़दी कला) में है।
श्रृंखला के रचयिता का संगत (पाठकों) से निवेदन है कि इस पूरे इतिहास को हम प्रसंगों के अनुसार पढ़कर जान रहे हैं तो समय-समय पर इस इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं को नोट करते रहे। इसका यह लाभ होगा कि जब हम ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के संपूर्ण इतिहास को जानेंगे तो फिर हम समझ सकेंगे कि अपनी जीवन यात्रा में आप जी ने कितने महान कार्यों को अंजाम दिया था। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के पश्चात सबसे अधिक धर्म प्रचार-प्रसार की यात्राएं आप जी ने की थी।