श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्राओं के अंतर्गत ग्राम रोहटा से प्रस्थान कर लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम थूही नामक स्थान पर पहुंचे थे। पुरातन ऐतिहासिक संदर्भों और स्रोतों का अध्ययन करने से यह तो ज्ञात होता है कि गुरु जी इस स्थान पर पधारे थे परंतु हमारी टीम को भी इस ग्राम के बुजुर्ग बापू अर्जन सिंह जी ने भी इस स्थान के इतिहास से व्यक्तिगत तौर पर अवगत कराया था।
इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के अंतर्गत गुरु जी सहपरिवार और प्रमुख सिखों के साथ विभिन्न ग्रामों में धर्म प्रचार-प्रसार की यात्राएं निरंतर कर रहे थे। यदि इतिहास को दृष्टिक्षेप किया जाए तो ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के पश्चात ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने सबसे अधिक भ्रमण कर धर्म प्रचार-प्रसार की यात्राएं की थी। आज समय की जरूरत है इन स्थानों पर जाकर गुरु जी से संबंधित अधिक इतिहास की खोज की जाए। श्रृंखला के रचयिता अपनी पूरी टीम के साथ इस समस्त इतिहास को आपके सम्मुख समय-समय पर प्रस्तुत कर रहे हैं।
इस श्रृंखला के रचयिता ग्रामों के बुजुर्गों से मिलकर उन रास्तों पर भ्रमण कर, उन ऐतिहासिक स्थानों पर पहुंचकर आप सभी संगत (पाठकों) को निरंतर इस स्वर्णिम इतिहास से अवगत करवा रहे हैं। पुरातन समय में इन स्थानों पर क्या था? और वर्तमान समय में क्या है? भविष्य में इन समस्त इतिहास की वीडियो और चित्रकारी को देखकर इस स्वर्णिम इतिहास के स्त्रोत और सबूत डिजिटल रूप में हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए मौजूद होगी। ताकि आने वाली पीढ़ी अच्छे से समझ सके कि हमारी विरासत क्या थी? और क्या था हमारा स्वर्णिम इतिहास? इस तथ्य को भी ध्यान में रखकर श्रृंखला के रचयिता और टीम के द्वारा गुरु जी से संबंधित सभी ग्रामों में पहुंचकर इस सारे इतिहास को पुनः एक सिरे से एकजुट कर संगत (पाठकों) को इस इतिहास से अवगत करवाया जा रहा है।
ग्राम थूई से चलकर गुरु जी ग्राम रामगढ़ बौडां नामक स्थान पर पहुंचे थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर भी गुरु जी की स्मृति में भव्य गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस स्थान पर भी संगत नाम-वाणी से जुड़कर अपना जीवन सफल कर रही हैं।
नाभा नामक शहर के राजा भरपूर सिंह जी की पत्नी ने भरे दीवान में संगत के सम्मुख उपस्थित होकर अरदास (प्रार्थना) की थी कि सच्चे पातशाह जी मेरी झोली भरो! सच जानना ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का जो स्मरण करता है उसे गुरबाणी में इस तरह अंकित किया गया है–
तेग बहादुर सिमरए घर नउ निधि आवै धाइ||
सब थाईं होइ सहाये॥
गुरु जी की कृपा से राजा भरपूर सिंह जी की पत्नी को पुत्र रत्न की दात प्राप्त हुई थी। इस स्थान पर जरूरत अनुसार एक स्वच्छ पानी की बावड़ी का निर्माण किया गया है। इस बावड़ी का निर्माण सन् 1926 ई. में पूर्ण हो गया था। वर्तमान समय से लगभग 94/95 वर्ष पूर्व ही इस गहरी बावड़ी का निर्माण हुआ था। वर्तमान समय में भी यह बावड़ी उत्तम स्थिति में मौजूद है।
गुरु साहिब जी इस स्थान के पश्चात गुरु जी ग्राम गुनिके नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्थान पर पुरातन समय में एक ‘करीर’ का वृक्ष मौजूद था। वर्तमान समय में पुरातन ‘करीर’ का वृक्ष नष्ट हो चुका है। इस समय की पीढ़ी इस बात से अनजान है कि इस स्थान पर ‘करीर’ का वृक्ष मौजूद था। इस पुरातन वृक्ष की कोई निशानी भी मौजूद नहीं है। इस ग्राम के स्थानीय निवासी 100 वर्ष की आयु के बुजुर्ग बापू अर्जन सिंह जी जो कि प्रतिदिन गुरुद्वारे में आकर दर्शन करते हैं। इस बुजुर्ग अर्जुन सिंह जी से भी इस स्थान के इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई थी।
इस ग्राम के एक और स्थानीय बुजुर्ग जिनकी आंखों की रोशनी समाप्त हो गई है परंतु मन की आंखों से आप जी को उत्तम ज्ञान है। बुजुर्ग बापू जी ने श्रृंखला के रचयिता का हाथ पकड़ बड़ी ही श्रद्धा से गुरुद्वारे के दूसरी और से लेकर गए और दिखाया कि आज से 160 वर्ष पूर्व निर्मित पुरातन ड्योढ़ी वर्तमान समय में भी मौजूद है। इस स्थान पर 150 वर्ष पूर्व पुरातन गुरुद्वारा साहिब मौजूद है। उस समय गुरुद्वारे का रास्ता दूसरी और से हुआ करता था। यदि हम गुरु साहिब जी के समय की बात करें तो उस समय के रास्ते अलग थे और 150 वर्ष पूर्व के रास्ते अलग थे। साथ ही वर्तमान समय में यह रास्ता एकदम अलग है। समय के अनुसार रास्ते बदल गए, जगह बदल गई, स्थानों में परिवर्तन आ गया, पुरातन ‘करीर’ का वृक्ष भी नष्ट हो चुका है।
इस स्थान पर भी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्थानीय संगत के द्वारा उत्तम सेवाएं अर्पित की गई थी। इस ग्राम की एक माता जी ने गुरु जी को दूध और लस्सी का प्रसाद ग्रहण करवाया था और अपनी सेवाएं अर्पित की थी। वर्तमान समय में ठीक उसी स्थान पर गुरुद्वारा पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस स्थान पर भी गुरु जी ने निवास कर संगत को नाम-वाणी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था।