प्रसंग क्रमांक 55: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम टहलपुरा, ग्राम आकड़ एवं ग्राम सिम्बडों का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम नौलखा से चलकर ग्राम लंग में पहुंचे थे। इस ग्राम लंग से पटियाला शहर के समीप ग्राम टहलपूरा में गुरु जी के इतिहास से संबंधित निशानियां इस स्थान पर मौजूद है। उस पुरातन समय में ग्राम टहलपूरा का कोई अस्तित्व नहीं था। इसके पश्चात प्रसिद्ध इतिहासकार भाई कान सिंह नाभा जी ने इस ग्राम टहलपुरा की खोज की थी। इतिहासकार कान सिंह नाभा जी के अनुसार ग्राम टहलपुरा सन् 1830 ई. में आबाद हुआ था। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा पातशाही नौवीं सुशोभित है।

ग्राम टहलपुरा से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का ग्राम आकड़ नामक स्थान पर आगमन हुआ था। गुरु जी इस ग्राम में पहुंचकर नीम के पेड़ के नीचे विराजमान हुए थे। वह पुरातन नीम का पेड़ आज तक हरा-भरा था परंतु वर्तमान समय में वह नीम का पेड़ विगत वर्ष में सूख चुका है। इसका कारण अज्ञात है। अफसोस है कि वर्तमान समय में हमारे द्वारा गुरु जी की निशानियां को अनदेखा किया जा रहा है। अधिक जानकारी लेने पर ग्राम के निवासियों ने बताया कि इस पेड़ के चारों और बहुसंख्या में पत्थरों को लगाया गया था। शायद इस वजह से यह पेड़ सूख गया है।

इस श्रृंखला के रचयिता के अनुसार दो वर्ष पूर्व यह नीम का पेड़ हरा-भरा एवं उत्तम अवस्था में था। ग्राम वासियों ने यह भी बताया कि इस नीम के पेड़ के एक और के पत्तों का स्वाद मीठा एवं दूसरी और का स्वाद कड़वा है। दो वर्ष पूर्व जब इस श्रृंखला के रचयिता ने इस नीम के पत्तों को खाया तो वह स्वाद में बहुत कड़वे नहीं थे। वर्तमान समय में यह नीम का पेड़ सूख चुका है। इस पेड़ का तना ही शेष है। गुरु जी इस नीम के वृक्ष के नीचे विराजमान हुए थे। इस स्थान पर एक पुरातन कुआं भी मौजूद था। वर्तमान समय में गुरुद्वारा साहिब के पीछे के भाग में स्थित इस कुंए को ढक दिया गया है। पुरातन कुआं अब नाम मात्र के लिए ही शेष है।

इस ग्राम आकड़ में गुरुद्वारे की इमारत भव्य, सुंदर और विलोभनीय है। साथ ही सरोवर का भी निर्माण किया हुआ है। इस गुरुद्वारे को गुरु जी की स्मृति में सुशोभित किया गया है और गुरुद्वारे को ग्राम आकड़ में सुशोभित गुरुद्वारा पातशाही नौवीं के नाम से ही जाना जाता है। इस ग्राम आकड़ में गुरु जी ने कुछ समय तक निवास कर आसपास की संगत को नाम-वाणी से जोड़कर गुरु जी पुनः सैफाबाद पधार गए थे।

इस श्रृंखला के पूर्व के प्रसंगों के इतिहास से ज्ञात होता है कि गुरु जी चार महीने तक सैफाबाद में रहकर आसपास के इलाकों में लगातार धर्म का प्रचार-प्रसार करते रहे थे।

इस स्थान से चलकर गुरु जी ग्राम सिम्बडों में पहुंचे थे। शहर पटियाला से ग्राम सिम्बडों केवल 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस ग्राम में जिस स्थान पर गुरु जी ने डेरा लगाया था, वर्तमान समय में ठीक उसी स्थान पर गुरुद्वारा डेरा साहिब सुशोभित है। जब गुरु जी यहां पहुंचे थे तो संगत ने एकत्र होकर गुरु जी के दर्शन-दीदार किए थे। आसपास के इलाके की सभी संगत को गुरु जी ने नाम-वाणी से जोड़कर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया था।

इस ग्राम का नंबरदार राजरूप सिंह गुरु जी की सेवा में समर्पित हुआ था और पूरे समर्पण के भाव से गुरु जी की सेवा की थी। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ नंबरदार राजरूप की सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुए और वचन किये थे कि भाई संगत की सेवा हमेशा किया करो।  तुम्हारे परिवार में भविष्य में भी नंबरदारी बनी रहेगी और परिवार पर हमेशा गुरु की कृपा बनी रहेगी।

सच जानना ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के किए हुए वचन सफल हुए और नंबरदार राजरूप सिंह की सातवीं पीढ़ी में एक बालक गुलाब सिंह का जन्म हुआ था और यह गुलाब सिंह पर गुरु की ऐसी कृपा दृष्टि हुई कि आप जी बीसवीं सदी के महान संत ईश्वर सिंह जी राड़ा साहिब वाले के रूप में सज गए थे।

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