सिख धर्म में धार्मिक शिक्षाओं का अत्यंत महत्व है। यदि हम सिख धर्म के प्रथम गुरु ‘श्री गुरु नानक साहिब जी’ के समय से इतिहास का अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है कि उस समय पाठशालाओं और मदरसों में बच्चों को शिक्षित किया जाता था। ‘श्री गुरु नानक साहिब जी’ ने पाठशाला में शिक्षा ग्रहण करते हुए संस्कृत और गणित की शिक्षा ग्रहण की थी और मदरसे में शिक्षा ग्रहण करते हुए आप जी ने फारसी भाषा का भी अध्ययन किया था। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने बहुत उत्तम पढ़ाई करते हुए शिक्षा ग्रहण की थी। सिख धर्म के दूसरे ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करते हुए एक बहुत बड़े विशाल विद्यालय का निर्माण ‘खंडूर साहिब’ में करवाया था और आप जी ने ‘गुरुमुखी लिपि के 35 अक्षरों की क्रमानुसार सर्जना कर ‘श्री गुरु नानक साहिब जी’ के आदेशों का पालन करते हुए बच्चों के शिक्षण के लिए गुरमुखी ‘कैदे’ (बाराखडी पुस्तक) का निर्माण भी किया था। आप जी ने गुरमुखी की प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक बच्चों के पढ़ने का पूरा प्रबंध किया था और स्वयं भी बच्चों की कक्षाओं में जाकर उन्हें शिक्षित किया करते थे। साथ ही इन शिक्षाओं को उत्तम ढंग से पढ़ाने के लिए शिक्षकों को भी शिक्षित किया ताकि विद्यालय में शिक्षण ग्रहण करने वाले सभी विद्यार्थियों के शिक्षण का समुचित प्रबंध हो सके। इस विद्यालय में भाषा की शुद्धता के विशेष महत्व को देखते हुए शिक्षण करवाया जाता था ताकि आगे चलकर विद्यार्थी गुरबाणी को शुद्ध लिखकर स्पष्ट उच्चारण कर सकें।
सिख धर्म के तीसरे ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देते हुए गोइंदवाल साहिब नामक स्थान पर भी इसी तर्ज पर शिक्षण प्रारंभ करवाया था कारण गोइंदवाल साहिब वो पवित्र स्थान है जिसे सिख धर्म का (धुरा) अभिकेंद्र बिंदु माना जाता है। इसी स्थान पर गुरु जी स्वयं सिरंदा (शास्त्रीय संगीत का वाद्य) का शिक्षा ग्रहण करते थे और साथ ही सिख धर्म के पांचवें ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ को भी इसी स्थान पर सिरंदा वाद्य की शिक्षाएं दी गई थी। इस विद्यालय में कीर्तन की कक्षाओं को भी प्रारंभ किया गया। साथ ही ‘गुरमत संगीत’ की शिक्षाओं में भी विद्यार्थियों को पारंगत किया गया था।
गोइंदवाल साहिब के इसी विद्यालय में सिख धर्म के चौथे ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ ने स्वयं सिरंदा वाद्य का शिक्षण इसी स्थान पर ग्रहण किया था। इसी स्थान पर ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ और ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने शास्त्रीय संगीत पर आधारित ‘गुरमत संगीत’ के रागों की शिक्षा भी ग्रहण की थी साथ ही गुरुमुखी भाषा और लिपि का भी अध्ययन किया था।
जब अमृतसर दरबार साहिब में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रथम प्रकाश हुआ तो उसके प्रथम हेड ग्रंथी के रूप में बाबा बुड्ढा जी को मनोनीत किया गया था। आप जी ने इस दायित्व के अतिरिक्त गुरुमत विद्यालयों में गुरमुखी का ज्ञान देने के साथ ही विद्यार्थियों को शुद्ध गुरुवाणी कंठस्थ करने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया था।
‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने सिख धर्म के छठे ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ को गुरमत की शिक्षाओं का अध्ययन करने के लिए “बाबा बुड्ढा जी’ को ही नियुक्त किया था। शेष गुरु पुत्रों ने भी ‘बाबा बुड्ढा जी’ से ही शिक्षा ग्रहण कर गुरुवाणी का शुद्ध उच्चारण कंठस्थ करवाया था। ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने भी ‘बाबा बुड्ढा जी’ से ही गुरुवाणी का शुद्ध उच्चारण कंठस्थ किया था।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के समय ‘बाबा बुड्ढा जी’ रमदास में निवास करते हुए गुरमत शिक्षाओं के लिए एक उत्तम विद्यालय प्रारंभ किया था। बाल ‘तेग बहादुर जी’ को चार वर्ष की आयु में शिक्षा ग्रहण करने के लिए ‘बाबा बुड्ढा जी’ के पास रमदास में भेजा गया था।
इसी स्थान पर बाल ‘तेग बहादुर’ ने गुरुमुखी भाषा और लिपि का अध्ययन किया एवं गुरुवाणी को कंठस्थ किया था। साथ ही आप जी ‘बाबा बुड्ढा जी’ को जीवन में अपना आदर्श मानते थे। क्योंकि आप जी ‘बाबा बुड्ढा जी’ के आचार-विचार और व्यवहार से बहुत ही प्रभावित हुए थे।
‘बाबा बुड्डा जी’ नित्य अमृतवेले (ब्रह्म मुहूर्त) में नित्यनेम करते थे उपरांत दरबार साहिब में हाजिरी लगाकर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश करते थे। साथ ही अन्य सेवाएँ करते हुए अपने खेतों में जाकर हल को जोतना एवं खेती करते थे। खेतों से प्राप्त फसलों से जो उत्पन्न होता था उस उत्पादित लाभ का ‘दसवंद’ (कीरत कमाई का दसवां हिस्सा) गुरु घर की सेवा में समर्पित करते थे।
बाल ‘तेग बहादुर जी’ ने चार वर्ष की आयु से लेकर दस वर्ष की आयु तक ‘बाबा बुड्ढा जी’ से केवल शिक्षा ही ग्रहण नहीं की अपितु ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ से लेकर वर्तमान समय तक सिख इतिहास का अध्ययन कर उन्हें ठीक से समझ लिया था। ‘बाबा बुड्ढा जी’ से आप जी ने अपने दादा ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ की शहीदी के इतिहास को भी सुना था। लगातार 6 वर्ष तक आप जी ‘बाबा बुड्ढा जी’ के सानिध्य में रहे और जीवन की जरूरतों को अच्छी तरह से समझ लिया था। “बाबा बुड्डा’ जी के सात्विक जीवन की उच्च शिक्षाओं को आपने अपने हृदय में समाहित कर अपने स्वयं के जीवन को ‘भक्ति भावनाओं’ के रंग से भर दिया।