‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ‘चक गुरु का’ नामक स्थान से चलकर बंगा नामक स्थान से गुजरते हुए लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर गुरु जी का नवांशहर नामक स्थान पर आगमन हुआ था। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ॰ सुखदयाल सिंह जी (पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला) रचित पुस्तक श्री गुरु तेग बहादुर मार्ग के पृष्ठ क्रमांक 34 पर अंकित है कि इस स्थान पर एक माई (महिला सेवादार) धार्मिक प्रचारक के रूप में सेवा कर रही थी जो पिछले कई वर्षों से गुरु सिक्खी का प्रचार-प्रसार कर रही थी। जब गुरु जी इस स्थान पर पधारे थे तो उस माई ने ग्राम की अन्य महिला सेवादारों को एकत्रित कर संयुक्त रूप से गुरु जी की अत्यंत सेवा की थी। इन सेवाओं में माता गुजर कौर जी और माता नानकी जी भी समर्पित भाव से जुड़ी हुयी थी।
इस स्थान पर भी गुरु जी ने निवास किया था और संगत ने गुरु जी से निवेदन कर इस स्थान पर पानी की किल्लत की कठिनाई को दर्शाया था। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने इस स्थान पर अपने कर-कमलों से एक कुएं का निर्माण करवाया था। वर्तमान समय में भी इस कुएं का पूरा उपयोग पीने के पानी के लिए एवं गुरु के लंगरों के लिए किया जाता है। कुछ समय गुरु जी ने इस शहर में निवास करते हुए व्यतीत किया था और संगत को नाम-वाणी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। यह स्थान निचले इलाके में होने से इसे निवां शहर कहकर पुकारा जाता था। पश्चात इसी शहर को नवांशहर के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
जिस स्थान पर गुरु जी ने निवास किया था और कुएं का निर्माण किया था उस स्थान को गुरआना साहिब के नाम से संबोधित किया जाता था। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘मंजी साहिब’ सुशोभित है। इस स्थान के मुख्य प्रबंधक संत बाबा निहाल सिंह जी प्रमुख जत्थेदार मिसल शहीदा की एवं पंथक अकाली और जत्थेदार पंथक अकाली दल है। इस श्रृंखला के रचयिता आदरणीय भगवान सिंह जी खोजी ने स्वयं इस स्थान पर उन से मुलाकात की थी और वार्तालाप करते हुए इस स्थान के इतिहास की संपूर्ण जानकारी को प्राप्त किया था।
ऐतिहासिक पुस्तकों को अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि इस स्थान से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर दुर्गापुर नामक स्थान स्थित है और यह भी ज्ञात हुआ कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान पर भी पधारे थे। इस श्रृंखला के रचयिता ने जब स्वयं उस स्थान पर पहुंचकर इतिहास को जानना चाहा तो ज्ञात हुआ कि गुरु जी ने इस स्थान पर पहले अपने परिवार के साथ अर्थात् जब ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने अपने पुत्र भाई गुरदित्ता जी के साथ और ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ एवं ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के साथ कीरतपुर में निवास किया था तो उस समय श्री गुरु तेग बहादुर जी इस स्थान दुर्गापुर में अपने पिता ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के साथ आए थे। उस समय ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को गुरु गद्दी प्राप्त नहीं हुई थी। इस स्थान पर पुरातन गुरुद्वारा साहिब के स्थान पर नवीन गुरुद्वारा साहिब का निर्माण किया जा रहा है। यह स्थान गुरुद्वारा ‘सुखचैनआना साहिब जी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
इस स्थान से गुरु जी चलकर लगभग 60 से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कीरतपुर साहिब में पहुंचे थे। सन् 1644 ई. में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ माता नानकी जी और स्वयं के महल (गुरुमुखी भाषा में पत्नी को सम्मान पूर्वक महल कहकर संबोधित किया जाता है) के साथ ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के वचनों अनुसार कीरतपुर से ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर प्रस्थान कर गए थे। सन् 1665 ई. में अर्थात पूरे 21 वर्षों पश्चात गुरु जी का कीरतपुर साहिब में पुनरागमन हुआ था।