पुरातन समय सेखेमकरण से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ भैणी नगर नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस नगर का नाम भैणी है। ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ भी इस नगर में पधारे थे। उस समय इस नगर के चौधरी श्री दाना संधू जी और उनकी पत्नी माता सुखां जी ने उनकी सेवा की थी। उस समय गुरु जी को जब लंगर (भोजन प्रसादि) छकाना था तो माता सुखां जी के मन में विचार आया कि यदि में दाल-सब्जी के साथ संपूर्ण भोजन की व्यवस्था करुंगी तो मुझे भोजन तैयार करने में बहुत समय लग जाएगा। उन्होंने जो प्रशादे (रोटीयां) तैयार थी उसमें देसी घी और शक्कर का उपयोग कर तैयार रोटियों का स्वादिष्ट चूरमा बना लिया था। इस चुरमें को माता जी ने स्नेह और प्रेम पूर्वक ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ को छकाया (भोजन करवाया) था।
‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ भोजन उपरांत अत्यंत प्रसन्न हुए थे और माता जी से कहा आप चोहला (चूरमा) बहुत ही रुचकर और स्वादिष्ट बना कर लाई हो और गुरु जी ने अपने मुखारविंद से निम्नलिखित वचनों को उद्गारित किया था–
हरि धनु संचनु हरि नामु भोजनु इहु नानक कीनो चौला्॥
(अंग क्रमांक 672)
गुरु जी द्वारा उपरोक्त उच्चारित वचन इस स्थान पर स्थित गुरुद्वारा ‘चोहला साहिब’ में प्रतिदिन दीवान में संगत के द्वारा उच्चारित किया जाता है।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ जनवरी सन् 1665 ई. में इस स्थान भैणी नगर में पधारे थे। इस स्थान पर गुरु जी ने हीरा बाड्डी नामक सिख के निवास स्थान पर निवास किया था। बॉड्डी अर्थात (बढ़ाई/ सुतार) जिन्हें पंजाब में तरखान सिख कहकर भी संबोधित किया जाता है। कुछ दिनों तक गुरु जी ने हीरा बाड्डी का आतिथ्य स्वीकार किया था। पश्चात् आप जी ने अपनी भविष्य की जीवन यात्रा प्रारंभ कर दी थी।
सफर-ए-पातशाही नौवीं श्रृंखला के रचयिता आदरणीय सरदार भगवान सिंह जी खोजी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की जीवन यात्रा से संबंधित गुरु धामों के दर्शन-दीदार करते हुए 30 जुलाई 2020 ई. को इस स्थान पर पहुंचे थे। यहां पहुंचकर जानकारी मिली कि ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ की स्मृति में इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘चोहला साहिब’ स्थित है। परंतु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की जीवन यात्रा के अंतर्गत इस स्थान पर किए गए गुरु जी के प्रवास की स्थानीय संगत को कोई जानकारी नहीं थी।
इस श्रृंखला के रचयिता आदरणीय ‘खोजी जी’ को इस नगर के कुछ अति सम्मानित सिखों से मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ था। इसमें से आदरणीय मास्टर मुख्तियार सिंह जी, भाई प्रितपाल सिंह जी और भाई सेवा सिंह जी प्रमुख है। इन सभी सिखों की गुरु घर पर असीम श्रद्धा है। इन सभी सिखों के परिवार समर्पित रूप से इस स्थान पर अपनी सेवाएं अर्पित कर रहे हैं। इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘चोहला साहिब’ के प्रबंधक सरदार परगट सिंह जी और कथा वाचक भाई हरजीत सिंह जी से भी मुलाकात उपरांत वार्तालाप हुआ था परंतु इन सभी सम्माननीय सिखों को इस इतिहास की कोई जानकारी नहीं है कि पुरातन समय में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान पर पधारे थे।
इस श्रृंखला के रचयिता ‘खोजी जी’ ने कुछ पुरातन स्रोतों का संदर्भ देते हुए जानकारी दी कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान पर पधारे थे। इस स्थान के स्थानीय निवासी भाई प्रितपाल सिंह जी एक बड़े किराना स्टोर को संचालित करते हैं। विशेष रूप से भाई प्रितपाल सिंह जी के परिवार की और से प्रत्येक वर्ष ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का प्रकाश पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है परंतु आप जी को यह जानकारी नहीं थी कि इस नगर में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ पधारे थे।
इस श्रृंखला के रचयिता ‘खोजी जी’ ने इस संबंध में कई महत्वपूर्ण तथ्यों को संदर्भित करते हुए इस इतिहास के सबूत पेश किए थे। जो इस प्रकार से हैं–
इतिहासकार सरूप सिंह जी कोशिश की और से इतिहासकार प्यारा सिंह ‘पदम’ रचित गुरु की साखियां (साखी क्रमांक 22 पृष्ठ क्रमांक 69) में अंकित है–
‘गुरु तेग बहादुर जी खेमकरण नगरी से विदा हुए, माझे देश में दोहें महीने रटन किया। नदी ब्यास के किनारे चोला नगरी में पहुंचकर कुछ दिवस हीरे बाड्डी के घर गुजार कर आगे जाने की तैयारी की’।
इस इतिहास को इतिहासकार प्रिंसिपल सतबीर सिंह जी द्वारा रचित पुस्तक ‘इति जनकरी’ में पृष्ठ क्रमांक 59 में अंकित किया गया है। इतिहासकार प्रिंसिपल सेवा सिंह जी कौड़ा द्वारा रचित पुस्तक ‘गुरु तेग बहादुर शख्सियत-सफर-संदेश-शहादत’ में पृष्ठ क्रमांक 103 में भी अंकित है। इतिहासकार डॉ॰ सुखदियाल सिंह जी (पंजाबी यूनिवर्सिटी) रचित पुस्तक ‘श्री गुरु तेग बहादुर मार्ग पंजाब’ में पृष्ठ क्रमांक 103 में भी उपरोक्त इतिहास को संदर्भित किया गया है।
इन सभी ऐतिहासिक संदर्भों से पुष्टि होती है कि ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ की स्मृति में स्थित गुरुद्वारा ‘चोहला साहिब’ जिस नगर में स्थित है। उस नगर में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ पधारे थे और उस नगर को अपने चरण-चिन्हों से स्पर्श कर पवित्र किया था।
इस इतिहास के संबंध में खोज निरंतर जारी है और गुरुद्वारा ‘चोहला साहिब’ की प्रबंधक कमेटी के संपर्क में रहते हुए खोज करके भाई हीरा बाड्डी के परिवार की खोज भी की जा रही है। स्थानीय संगत और विद्वानों को इस श्रृंखला के रचयिता आदरणीय ‘खोजी जी’ का निवेदन है कि इस स्थान के ऐतिहासिक तथ्यों को खोजने में उनकी मदद की जाए। जिससे कि सही-सटीक और विशुद्ध इतिहास की खोज की जा सके।