प्रसंग क्रमांक 2 : श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी की जीवन यात्रा एवं भावी श्री गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाश।

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सिख धर्म के चौथे गुरु “श्री रामदास साहिब जी’ के द्वारा ‘गुरु के महल’ का निर्माण किया गया था। इस निवास स्थान पर ‘गुरु अर्जन देव साहिब जी’ का बचपन में जीवन व्यतीत हुआ था। यही वो ऐतिहासिक भवन है,  जहां पर ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ का परिणय बंधन हुआ था।  इसी ऐतिहासिक स्थान पर गुरु जी ने निवास कर अपना गृहस्थ जीवन यापन  किया था।

‘गुरु के महल’ ही वो स्थान है; जहां  ‘श्री गुरु  हरगोविंद साहिब जी’ को चार पुत्र रत्न और एक पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई थी। जिनका नाम बाबा गुरदित्ता जी, भाई अनि राय जी, भाई सूरजमल जी, बाबा अटल जी और बीबी वीरो था।

सिख धर्म के चौथे ‘श्री गुरु राम दास जी’ ने अपनी उच्चारित वाणी में  सिख गुरुओं के लिए अंकित किया है–

सा धरती भई हरिआवली जिथै मेरा सतिगुरु बैठा आइ||

से जंत भए हरीआवले जिनी मेरा सतिगुरु देखिआ जाइ||

धनु धंनु पिता धनु धंनु कुलु धनु धनु सु जननी जिनि गुरु जणिआ माइ||

 (अंग क्रमांक 310)

अर्थात्‌ वह माता धन्य  है, वह  पिता धन्य है, जिसने गुरु को जन्म दिया और वह स्वर्णिम समय 5 बैसाख सन् 1678 ई. का दिवस था (1 अप्रैल 1621 ई. दिन रविवार)  अमृतवेला (ब्रह्म मुहूर्त) के इस सौभाग्य भरे समय में नौवीं पातशाही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का प्रकाश हुआ था।

अर्थात्‌ वह माता धन्य  है, वह  पिता धन्य है, जिसने गुरु को जन्म दिया और वह स्वर्णिम समय 5 बैसाख सन् 1678 ई. का दिवस था (1 अप्रैल 1621 ई. दिन रविवार)  अमृतवेला (ब्रह्म मुहूर्त) के इस सौभाग्य भरे समय में नौवीं पातशाही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का प्रकाश हुआ था।

इस खुशखबरी से उपस्थित संगत  में खुशी की लहर दौड़ गई। जब कीर्तन की समाप्ति हुई तो  संगत  की और  से  ‘श्री गुरु  हरगोविंद साहिब जी’ को बधाइयां प्रेषित की गई थी। अमृतसर ही नहीं अपितु  जहां-जहां भी गुरु की  संगत को यह खुशखबरी मिलती है तो हर्षोल्लास के माहौल में  संगत  के द्वारा एक दूसरे को बधाइयां प्रेषित की गई थी। गुरु जी अपने सेवादार और परिवार के साथ ‘गुरु के महल’ पधारे थे। उस समय बाबा बुड्ढा जी, भाई गुरदास जी, भाई बिधि चंद जी गुरु जी के साथ थे (अपने समय में यह सभी सिख इतिहास की महान शख्सियत थी)। गुरु जी ने नवजात बालक को अपने हाथों में लेकर स्नेह पूर्वक प्यार किया और संगत एवं परिवार के सदस्यों के समक्ष नवजात बालक के आगे अपने शीश को झुका कर आदरपूर्वक नमन किया था।

यह एक आश्चर्यजनक, अचरज भरी घटना थी;  जिसे ‘पंथ प्रकाश’  नामक ग्रंथ में इस तरह से अंकित किया गया है–

तब गुरु सिस को बंदन किनी अति हित लाइ||

बिधीआ कहि कस बंधन की कहो मोह समझाइ||

 अर्थात्

भाई बिधि चंद जी ने अपने मुखारविंद से उच्चारित किया कि गुरु पातशाह जी आपको  पहले से ही 4 पुत्र रत्नों की प्राप्ति है। आपने अपने पुत्रों को बहुत आशीष दी है एवं अत्यंत प्यार भी किया परंतु इनके जन्मों पर आपने अपने शीश को नमन नहीं किया था। क्या कारण है कि इस नवजात बालक को अपने हाथों में उठा कर बहुत ही गौर से निहारा और अपने शीश को उनके समक्ष झुका दिया? गुरु जी ने बहुत ही विनम्रता और प्यार से उत्तर दिया बिधि चंद जी आप भ्रम में मत रहना आने वाले समय में यह बालक “दिन रक्ष संकट हरै। एह निरभै जर तुरक उखेरी”।।

अर्थात् यह बालक दीन के रक्षक होंगे और बड़े से बड़े संकटों का नाश कर देंगे और यह निर्भय होंगे एवं दुश्मनों को जड़ों से उखाड़ के रख देंगे। मैंने स्वयं तो उनको नमन किया है परंतु भविष्य में इसके आगे पूरी दुनिया शीश झुकाकर नतमस्तक होगी। निश्चित ही यह अद्भुत नवजात बालक ‘तेग का धनी’ होगा। इसलिए इनका नामकरण भी मैंने ‘तेग बहादुर’ कर दिया है।

इस तरह से 1 अप्रैल सन् 1621 ई. दिन रविवार को अमृतवेले (ब्रह्म मुहूर्त) में नौवीं  पातशाही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का प्रकाश हुआ था। इस विशेष अवसर पर संगत में खुशी की लहर थी और एक दूसरे को बधाइयां दी जा रही थी।

प्रसंग क्रमांक 3 : भावी श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की अद्भुत बाल लीलाओं से परिपूर्ण जीवन यात्रा।

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