ग्राम घुकेवाली से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ तरनतारन साहिब नामक स्थान पर पहुंचे थे। तरनतारन साहिब ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के कर-कमलों से बसाया हुआ नगर है। इस स्थान पर ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने एक सरोवर का निर्माण करवाया था। इसी स्थान पर ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने दीन दुखी और रोगियों के इलाज के लिए एक अस्पताल का निर्माण भी किया था। गुरु जी आप स्वयं कौड़ीयों की सेवा कर, उनके घावों को साफ कर मलमपट्टी करते थे और उन्हें औषधियां भी देते थे। इन महान सेवाओं को गुरु जी ने स्वयं अपने कर-कमलों से अंजाम देते थे।
गुरुद्वारा ‘तरनतारन साहिब’ में ही सिख जगत का सबसे बड़ा सरोवर (अमृत कुंड) स्थित है। इस सरोवर की लंबाई 999 फीट और चौड़ाई 990 फीट है। इस सरोवर के किनारे पर ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ जिस स्थान पर आसीन होकर कार सेवा करते थे और रोगियों का इलाज करते थे उस स्थान पर गुरुद्वारा ‘मंजी साहिब’ सुशोभित है।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपने चरण चिन्हों से इस धरती को पवित्र किया था। इस स्थान से चलकर गुरु जी ‘खंडूर साहिब’ नामक नगर में पहुंचे थे। खंडूर साहिब वह नगर है जहां ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ ने धर्म प्रचार-प्रसार का कार्य किया था। इस स्थान पर ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ ने मल्ल अखाड़े को प्रारंभ किया था। इस अखाड़े में घुड़सवारी का उत्तम प्रशिक्षण भी दिया जाता था। इसी स्थान पर ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने गुरुमुखी के 35 अक्षरों की रचना कर गुरमुखी के कैदे (बाराखड़ी) की पुस्तकें भी प्रकाशित की थी। इस स्थान पर गुरमुखी के शिक्षण की उत्तम व्यवस्था की गई थी। इस स्थान पर गुरुद्वारा दरबार साहिब स्थित है।
जब बाबा अमरदास जी ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी के लिए लगातार 12 वर्षों तक गागर (घड़े) में पानी भर कर ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ की सेवा करते थे तो एक दिन रात के अंधेरे में बाबा अमर दास जी का पैर रास्ते पर गड़े हुए खूंटे से ठोकर खा गया था और आप भी जमीन पर धराशाई हो गए थे। उस स्थान पर निवास करने वाले जुलाहे (बुनकर) ने अपनी पत्नी से पूछा था कि इतनी रात गये यह कौन है? तो उस समय जुलाहे की पत्नी ने उत्तर दिया था कि होगा–
वो ही अमरू निथाणा, (बेसहारा)
जिस दा ना कोई घर ते ना कोई ठिकाना।
उस समय बाबा अमर दास जी ने वचन किए थे कमलीये (भोली) मैं निथांवा (बेसहारा) नहीं हूं, मुझे तो सबसे बड़ी थां (स्थान) मिला है।
वर्तमान समय में उस स्थान पर जहां बाबा अमर दास जी को खूंटे की ठोकर लगी थी और आप भी धराशाई हो गए थे वह खूंटा भी मौजूद हैं और वह गागर (घड़ा) भी मौजूद है। ‘गुरु जी खड्डी से गद्दी तक पहुंचे थे’ और ‘गागर से सागर’ हो गये थे। इस स्थान पर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की स्मृति में ‘गुरुद्वारा तपिआना’ साहिब स्थित है। इस गुरुद्वारे में ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ स्वयं आसीन होकर कीर्तन करते थे। इस स्थान पर और भी कई ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब स्थित हैं।
इस स्थान से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ गोइंदवाल साहिब नामक स्थान पर पहुंचे थे। गोइंदवाल साहिब ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ ने ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ के हुकुमानुसार ‘गोंदें मरवाये’ नामक सिख के निवेदन पर इस नगर को बसाया गया था।
इस स्थान पर ही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के दादा ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ का भी प्रकाश हुआ था। इस पूरे इतिहास के कारण यह स्थान ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का पैतृक (जद्दी) नगर है। इसी स्थान से ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने अमृतसर प्रस्थान किया था। अमृतसर स्थित ‘गुरु के महल’ में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का प्रकाश हुआ था। ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ का अपना पैतृक नगर गोइंदवाल साहिब नामक स्थान है। इस स्थान पर ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ का प्रकाश भी हुआ था। इस कारण से यह स्थान ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का पैतृक (जद्दी) नगर माना जाता है।
इस स्थान पर ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ के पुत्र बाबा मोहन जी का वो चौबारा (चबूतरा) स्थित है, जहां पर गुरुवाणी की रचित पोथियों को संभाल कर रखा गया था। इसी स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के विद्या गुरु भाई गुरदास जी ने अपनी अंतिम सांसों को लिया था। भाई गुरदास जी की स्मृति में इस स्थान का निर्माण हुआ था।
भाई प्यारा सिंह ‘पदम’ रचित गुरु की साखिआं में साखी क्रमांक 2 पृष्ठ क्रमांक 69 में अंकित है–
पोख की अमावस्या, मसया के देंहों।
श्री बावली साहिब के आये दरशन किआं।
सिख संगत गुरु जी का आना सुन।
चवां दिशा से दीदार पानै आइआं॥
इसी स्थान पर ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ के वंश में से एक भाई द्वारकादास भल्ला जी ने आप जी की अत्यंत सेवा की थी। भविष्य में आने वाले इतिहास में भाई द्वारकादास के परिवार का जिक्र भी होगा।