प्रसंग क्रमांक 26 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की जीवन यात्रा से संबंधित माता हरो जी का इतिहास।

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22 नवंबर सन् 1664 ई. को गुरु जी अपने पूरे परिवार को और काफिले के साथ ‘बाबा बकाले’  से प्रस्थान कर के ग्राम कालेके, तसरिका और लेहल से मार्गस्थ होकर शाम को दरबार साहिब अमृतसर में पहुंचे थे।

 दरबार साहिब में हरि जी के मसंदों के द्वारा गुरु जी का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया था। उस समय दर्शनी-ड्योढ़ी (प्रवेश द्वार) को बंद कर दिया गया था। ‘श्री गुरु  तेग बहादुर साहिब जी’ थड़ा साहिब नामक स्थान पर आसीन होकर अपनी भविष्य की यात्रा की और प्रस्थान कर गए थे।

 गुरु जी ‘दरबार साहिब’ से लगभग दो किलोमीटर आगे एक स्थान पर रुके थे। वर्तमान समय में यहां पर गुरुद्वारा ‘दमदमा साहिब’ स्थित है। इस गुरुद्वारा ‘दमदमा साहिब’ में प्रत्येक वर्ष फरवरी से मार्च तक जोड़ मेला गुरु जी की स्मृति में स्थानीय संगत द्वारा आयोजित किया जाता है। उस समय बहुत बड़ी तादाद में इस स्थान पर संगत एकत्रित होती है। इस स्थान पर कुछ समय विश्राम करने के पश्चात अपनी यात्रा के अंतर्गत गुरु जी कुछ दूर और चले गये। रास्ते में कुएं की मुंडेर पर गुरु जी कुछ समय के लिए आसीन हुए थे। इस स्थान पर खेतों में मोल-मजदूरी कर रहे मजदूरों के लिए ‘माता हरो जी’ नामक वृद्धा ने स्वयं भोजन की व्यवस्था की थी।

 गुरु जी के साथ बड़ी तादाद में संगत यात्रा कर रही थी। माता हरो जी ने जानना चाहा कि यह कैसी भीड़ है? तो उन्हें पता लगा की ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के छोटे पुत्र ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ पधारे हैं जो कि इस समय ‘श्री गुरु नानक देव जी’ की नौवीं ज्योत के रूप में गुरु गद्दी पर विराजमान हैं।

 माता हरो जी गुरु घर और गुरु वाणी से जुड़ी हुई थी। उन्होंने गुरु जी के आगमन पर अपनी खुशी जाहिर की थी। माता जी ने मजदूरों के भोजन की जो व्यवस्था की थी उसी भोजन को उसने गुरु जी के सम्मुख रखकर भोजन ग्रहण करने का निवेदन किया था। माता हरो जी ने गुरु जी से कहा कि मैंने आपके लिए भोजन की व्यवस्था की है और आपसे निवेदन है कि आप इस भोजन को ग्रहण करें।

गुरु जी ने माता हरो जी को वचन किया कि आप यह भोजन खेत में मोल-मजदूरी करने वाले मजदूरों के लिए लेकर आई हो, इस भोजन पर उन मजदूरों का हक है। वह मजदूर किरत कर के भूखे हैं। इस भोजन की हमसे ज्यादा उन मजदूरों को आवश्यकता है।

‘हकु पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाइ’॥ (अंग क्रमांक 141)

के वचन अनुसार कभी भी किसी का पराया हक नही मारना चाहिए।

 गुरु जी के वचनों के अनुसार खेत में काम करने वाले उन मजदूरों को भोजन ग्रहण करवाया गया था।

 माता हरो जी ने गुरु जी से निवेदन किया कि यह पास ही में मेरा निवास स्थान है। आप जी कृपा करके मेरे निवास स्थान को अपने चरण चिन्हों से चिन्हित करें। माता हरो जी के खेतों में, माता जी के निवास स्थान पर गुरु जी ने विश्राम किया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर ‘गुरुद्वारा गुरिआना साहिब’ स्थित है। पहले इसी स्थान पर एक कुआं भी था परंतु ठीक से देखभाल न होने के कारण वर्तमान समय में वो कुआं मिट्टी में दब गया है। इतिहासकार आदरणीय भगवान सिंह जी खोजी जी ने बहुत खोजबीन के पश्चात इस स्थान की खोज की है। संगत इस स्थान पर पहुंचकर गुरुद्वारा ‘गुरिआना साहिब’ के दर्शन कर सकती हैं।

प्रसंग क्रमांक 27 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की जीवन यात्रा से संबंधित ग्राम वल्ले का इतिहास।

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