प्रसंग क्रमांक 22 : भाई मक्खन शाह लुबाना द्वारा बाबा-बकाला नामक स्थान पर सच्चे गुरु की खोज का इतिहास ।

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विगत प्रसंग के अनुसार जिस समय मक्खन शाह लुबाना का जहाजी बेड़ा डूब रहा था तो उसने सच्चे दिल से ‘अरदास’ की थी जिसे महिमा प्रकाश ग्रंथ में इस तरह से अंकित किया गया है–

करचित इकागर जप को पडा़।

पुनि सतिगुरु जी का कीआ धिआन

मन मीटे भरम गुरि लोह पछान।

(महिमा प्रकाश साखी 3 महला 9)

अर्थात हे सच्चे पातशाह जी यदि मेरा जहाजी बेड़ा डूब गया तो मेरा समस्त कारोबार डूब जाएगा, मैं फिर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के दर पर ‘दसवंद’ (अपनी कीरत कमाई का दसवें हिस्से की माया) कैसे सेवा में अर्पित करुंगा? पातशाह जी कृपा करके मेरे इस डूबते हुए जहाजी बेड़े को बचाओ और मेरे पुरखों से चली आ रही परंपरा के अनुसार मैं आपके दर पर ‘दसवंद’ की माया भेंट करूंगा।

 मक्खन शाह लुबाना ने ‘अरदास’ कर कोई मन्नत नहीं मांगी थी बल्कि वह तो अपने परिवार की परंपराओं के अनुसार गुरु घर में पहले से ही ‘दसवंद’ की माया को भेंट करते थे। मक्खन शाह लुबाना का जहाजी बेड़ा डूबने से बच गया था। तत्पश्चात आप जी का दिल्ली शहर में आगमन हुआ था तो उन्हें ज्ञात हुआ कि दिल्ली में ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ ज्योति-ज्योत समा गए हैं और उन्होनें अपने अंतिम समय में ‘बाबा-बकाला’ शब्द का उच्चारण किया था।

 भाई मक्खन शाह लुबाना जी अपने पूरे परिवार और 500 शस्त्र धारी सूरमाओं की सैन्य टुकड़ी के साथ हमेशा रहते थे। आप जी के साथ में उनकी धर्मपत्नी माता सुलजोई जी और तीन पुत्र भाई खुशाला जी, भाई चंदू लाल और लाल चंद जी के साथ ही उपस्थित संगत सहित और अपने 500 शस्त्र धारी सैनिकों के साथ आप जी का ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर 8 अक्टूबर सन् 1664 ई. को आगमन हुआ था।

 वर्तमान समय में गुरुद्वारा छावनी साहिब जिस स्थान पर स्थित है, आप जी ने उस स्थान पर अपनी छावनी बनाई थी।

मक्खन शाह लुबाना जी जब ‘बाबा-बकाला’ में पूछताछ करते हैं कि गुरु कौन है? तो उन्हें ज्ञात हुआ कि यहां तो कई झूठे गुरु मंजी (आसन) लगाकर आसीन हैं। आप जी जिस भी झूठे गुरु के समक्ष उपस्थित होते तो आप जी को प्रतीत होता था कि गुरु तो दाता है और यहां बैठे गुरु तो सभी भिखारी हैं। जितने झूठे गुरु वहा थे, वह अपने आप को सच्चा सिद्ध करने की कोशिश करते थे परंतु मक्खन शाह लुबाना जी जानते थे कि सच्चा गुरु इनमें से कोई नहीं है।

जिन हरि पाइउ तिनही छपाइउ॥

गुरु तो वो है जो–

घट घट के अंतर की जानत।

भले बुरे की पीर पछानत 

(कबयो बाच बेनती)

अर्थात् सच्चा गुरु घट-घट की जानता है और उन्हें भले-बुरे की पहचान होती है परंतु  यहां पर झूठे, भिखारी गुरुओं के चेले मक्खन शाह लुबाना को अपने-अपने दरबार में लेकर जाते थे। आप जी ने हर एक गुरु के समक्ष दो-दो मोहरे रखकर नतमस्तक होकर नमस्कार किया था (कुछ इतिहासकारों के अनुसार पांच मोहरे समक्ष रखकर नमस्कार किया था) परंतु आप जी जानते थे कि मेरे इस झूठ को सच्चा गुरु ही जान सकता है।

 धीरमल के चेलों ने तो हद करते हुए धीरमल को ही सच्चा और समर्थ गुरु बताया था क्योंकि धीरमल के अधीन आदि ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की बीड़ (ग्रंथ) थी। जब मक्खन शाह लुबाना धीरमल के दरबार पहुंचे और उन्होंने आदि ग्रंथ को नमस्कार करते हुए कुछ मोहरे धीरमल के समक्ष रखी थी परंतु विश्वास नहीं हुआ कि धीरमल ही सच्चा गुरु है। मक्खन शाह लुबाना निराश होकर अपनी छावनी में वापस आ गए थे परंतु आप भी को ‘श्री गुरु हरकृष्ण जी साहिब जी’ के उच्चारित अटल वचन ‘बाबा-बकाला’ पर पूरा विश्वास था।

आप जी का पक्के तौर पर विश्वास था कि सूरज ठंडा हो सकता है, चंद्रमा गर्म हो सकता है, चलती हुई हवाएं रुक सकती है, पहाड़ अपनी जगह बदल सकते हैं परंतु गुरु के वचन कभी भी इधर-उधर नहीं हो सकते हैं।

 आप भी दिन 9 अक्टूबर सन् 1664 ई. को सुबह ‘नितनेम’ कर पुनः अरदास की गुरु पातशाह जी आप जी

 घट घट के अंतर की जानत।

 भले बुरे की पीर पछानत ॥

के वचनों अनुसार आप ही सच्चाई का मार्ग दिखाएं, उपस्थित संगत गुमराह हो रही है और अपनी छावनी से बाहर आकर देखा तो धीरमल के मसंद पहले से ही आपको भ्रमित करने के लिए बाहर  खड़े हुए थे।

 धीरमल के चेले मक्खन शाह लुबाना से निवेदन करने लगे कि आप हमारे साथ चलिए आपको गुरु धीरमल याद कर रहे हैं। उस स्थान पर बहुत तादाद में संगत  एकत्रित हो चुकी थी। मक्खन शाह लुबाना ने वहां उपस्थित लोगों से पूछा भाई यहां पर और कोई भी सोढ़ी गुरु है? एक सज्जन ने उन्हें बताया कि हां ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के छोटे पुत्र तेग बहादुर जी और उनकी माता नानकी जी भी इस स्थान पर भाई मेहरा जी के निवास स्थान पर निवास करते हैं।

धीरमल के मसंदों ने मक्खन शाह लुबाना को भाई मेहरा जी के निवास स्थान पर न जाने के लिए भरसक कोशिश की थी परंतु आप जी को समझ आ गई थी और आप जी जब भाई मेहरा जी के निवास स्थान पर पहुंच कर देखते हैं कि वह ही पुराने जाने-पहचाने सिख वहां मौजुद थे। जिनसे आप जी कि पूर्व में भी मुलाकात हो चुकी थी। जब आप जी ‘श्री गुरु  हरगोविंद साहिब जी’ के दरबार में हाजिर होते थे तो आप जी बाबा गुरदित्ता जी, दरगाह मलजी और गुरु अर्जन देव जी के समय के सिख भाई गढ़िया जी और अन्य सभी सिखों से आप जी की पहले भी मुलाकात हो चुकी थी।

 जब मक्खन शाह लुबाना पूरे ठाट-बाट और रुबाब से अपने सैनिकों के साथ  ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से मिलने गए तो गुरु जी ने मक्खन शाह लुबाना को रोक कर गुरु घर में ‘नैतिकता’ के साथ उपस्थित होने का उपदेश दिया था। मक्खन शाह लुबाना को समझ आ गया था और जब उन्होंने कुछ मोहरे  गुरु जी के समक्ष रखकर नतमस्तक होकर नमस्कार किया तो गुरु जी ने मुस्कुराकर कर कहने लगे, जिसे महिमा प्रकाश ग्रंथ में इस तरह से अंकित किया गया है–

सुन सिख डूबदी नाउ तुम, हम कंढे़ दीन लगाइ।

कंधे मुहि घासी लगी, किउ पुजा रखे दुराइ॥

जब मक्खन शाह ने मोहरे रखकर नमस्कार किया तो गुरु जी ने जो वचन उद्गारित किए, वो महिमा प्रकाश ग्रंथ में इस तरह से अंकित है–

गुरु घर की जो अहै उपाइन ।

सो दीजहि कहि राखहु आइन।

अर दसौंद गुरु को है जैता।

अरपनि दरबु करहु अबि तेता॥

गुरु जी ने वचन किए अर्थात् जब तुम्हारा जहाजी बेड़ा डूब रहा था तो आपने ‘अरदास’ कर कुछ और कहा था और यहां पर कुछ और कर रहे हो!

 मक्खन शाह लुबाना समझ चुका था कि सच्चा गुरु कौन है? उन्होंने और उनके परिवार ने तुरंत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के चरणों में नमस्कार किया था। दरबार में कुछ देर बैठने के पश्चात और वार्तालाप होने के पश्चात आप जी ने खुशी-खुशी निवास स्थान की छत पर चढ़कर अपना पल्ला हवा में लहराते हुए जोर की घोषणा की थी।

गुरु लादो रे! गुरु लादो रे! गुरु लादो रे!

और इसी तरह से घोषणा देते हुए उपस्थित संगत को संबोधित करते हुए कहा कि भोली संगत गुमराह मत होना सच्चे गुरु की खोज हो चुकी है। बाकी के सारे दावेदार झूठे गुरु हैं, सच्चे गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ हैं और इस स्थान पर आसीन हैं।

‘बाबा बकाला’ में जो झूठे गुरु मंजी (आसन) डालकर बैठे थे, उन सभी को समझ आ गया कि संगत सच जान चुकी है और झूठे गुरु वहां से रवाना हो गए थे। केवल धीरमल ने अपनी मंजी (आसन) नहीं उठाई थी।

प्रसंग क्रमांक 23 : धीरमल के द्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी पर हुये आक्रमण का इतिहास ।

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