प्रसंग क्रमांक 21: भाई मक्खन शाह लुबाना का इतिहास|

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सन् 1340 ई. में एक राजा था। जिसका नाम राजा धज था। राजा धज का बेटा कोधज था, कोधज का बेटा केशव था, केशव का बेटा चाड्डा था,चाड्डा का बेटा थिड्डा था, थिड्ड़ा का बेटा मौला था, मौला का बेटा मौता था’ मौता का बेटा बोहरू था और बोहरू का बेटा ‘सावन नायक’ था। ‘सावन नायक’ और ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ समकालीन थे। सन् 1517 ई. में अपनी उदासी यात्राओं के अंतर्गत ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ मानसरोवर से लेह-लद्दाख से होते हुए मटन कश्मीर नामक स्थान पर पहुंचे थे और मटन कश्मीर से पाकिस्तान के गुजरात प्रांत में पहुंचे थे।

 जब ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ पाकिस्तान के गुजरात प्रांत में पहुंचे थे तो उनकी दृष्टि में एक बड़ी आलीशान हवेली आई थी। इस हवेली में अलग-अलग ध्वज (झंडे) शान से लहरा रहे थे। जब ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ को पता चला कि इस हवेली में ‘सावन नायक’ नामक धनी व्यक्ति निवास करता है। उस समय गुरु जी ने वचन किये कि यह इतना धनी व्यक्ति इस धन का क्या करेगा? यदि इसका समय आ गया तो एक वस्त्र भी साथ में लेकर नहीं जा सकता है। गुरु जी की धनी सावन नायक से मुलाकात हुई थी (कई विद्वान साहित्यकारों ने इस मुलाकात का जिक्र दक्षिण अफ्रीका के किनिया शहर में हुई थी ऐसा इतिहास में दर्शाया है)।

 यह धनी ‘सावन नायक’ गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर उनका सिख सज गया था और धर्म प्रचारक बनकर इन्होंने अपनी सेवाओं को भी समर्पित किया था। इन्हीं ‘सावन नायक’ का बेटा बाबा अर्था जी था, बाबा अर्था जी का बेटा बाबा बिना जी था, बाबा बिना जी का बेटा बाबा दासा जी था, बाबा दादा जी ‘श्री गुरु राम दास साहिब जी’ के समकालीन थे और उन्होंने गुरु जी के मसंद के रूप में धर्म प्रचार कर अपनी सेवाएं अर्पित की थी।

 यह बाबा दासाजी व्यापारी मक्खन शाह लुबाना के पिताजी थे। धनी व्यापारी मक्खन शाह जी ‘श्री गुरु राम दास साहिब जी’ के सेवक भी थे। भाई गुरदास जी रचित वारा (ग्रंथ) की 11वीं पौढ़ी (श्लोक) के अंतर्गत भाई दासा जी के संबंध में अंकित है कि वह उनके मसंद सिखों में से एक थे। इस पौड़ी (श्लोक) को इस प्रकार से अंकित किया गया है–

पुरखु पदारथ जाणीअै तारु भारु दासु दुआरा।

अर्थात् भाई तारु जी, भाई भारू जी और भाई दासु जी के साथ और अनेक सिखों का नाम भी इस वारां (ग्रंथ) में संदर्भित किया गया है।

 व्यापारी मक्खन शाह के पिता जी भाई दासा जी ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ के प्रमुख सिखों में से एक थे। जो कि दूर-दराज के देशों में ‘देशाटन’ करते हुए धर्म प्रचार के साथ व्यापार भी करते थे। भटवइआं  रचित ग्रंथ में मक्खन शाह लुबाना का जन्म 5 वैशाख 1589 ई. में माना गया है।

 सन् 1604 ई. में मक्खन शाह अपने पिताजी के साथ ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी के दर्शन के लिए आए थे तो उनकी आयु केवल 15 वर्ष की थी। आप जी ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के दरबार में अपनी दसवंद भी भेंट करते थे। जब मक्खन शाह लुबाना के पिताजी 95 वर्ष की आयु में अकाल चलाना (स्वर्गवास) कर गए थे तो उस समय ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ इनके निवास स्थान पर उपस्थित थे। उस समय लगभग 4 महीने तक मक्खन शाह लुबाना जी ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ की सेवा में रहकर दर्शन-दीदार करते रहे थे। मक्खन शाह लुबाना का गुरु घर पर अत्यंत श्रद्धा और विश्वास था। साथ ही आप जी गुरु घर के समस्त आंतरिक मसलों की जानकारी भी रखते थे।

 मक्खन शाह लुबाना का उस समय बहुत बड़ा व्यापार था और लगभग 200 समुद्री जहाजों के बेड़े आप के अधीन थे। आप जी बड़ी तादाद में खच्चर, घोड़े और ऊंटों की मदद से आयात-निर्यात का व्यापार करते थे।

 सन् 1664 ई. में मक्खन शाह के अधीन एक बहुत बड़े जहाज का बेड़ा समुद्री तूफान में फंस गया था। इतिहासकार श्री सरूप सिंह कोशिश के रचित इतिहास अनुसार उपरोक्त जहाजी बेड़ा टेमो (वह स्थान जहां पानी का प्रवाह अलग-अलग  दिशाओं से आकर मिलता है) नामक स्थान पर भंवर में फंस गया था। इतिहासकार लेखक प्रिंसिपल सतबीर सिंह जी रचित ऐतिहासिक पुस्तक की जानकारी के प्रसंग क्रमांक 47 के अनुसार इस बेड़े के फंसने की जानकारी सूरत बंदरगाह पर लिखी हुई है। इस संबंध में अधिक इतिहास खोजने की जरूरत है।

 जब मक्खन शाह जी का बेड़ा समुद्री तूफान में फंस गया और बचने की कोई उम्मीद नहीं रही तो आप जी ने ‘अरदास’ (प्रार्थना) का सहारा लिया था। उस समय मक्खन शाह लुबाना की आयु 75 वर्ष की थी। आप जी गुरबाणी के रसिया थे और आपका ‘अरदास’ पर पूरा विश्वास था। उस संकट के समय आप जी ने जप जी साहिब का पाठ कर ‘अरदास’ की थी और आप भी का जहाजी बेड़ा डूबने से बच गया था। जिसे महिमा प्रकाश ग्रंथ में इस तरह से अंकित किया गया है–

कर चित इकागर जप के पड़ा।

पुनि सतिगुरु जी का कीआ धिआन।

मन मिटे भरम गुरि लोह पछान॥

(महिमा प्रकाश साखी 3 महला 9)

अर्थात् उस समय आप जी की ‘अरदास’ परवान हुई थी और जहाजी बेड़ा डूबने से बच गया था।

मक्खन शाह लुबाना जी की उस समय ‘अरदास परवान हुई थी। कई शंकित लोग कहते हैं कि यह कैसे संभव है? ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ और जहाजी बेड़े के मध्य कोसों की दूरी थी कैसे डूबते हुए जहाजी बेड़ा बच गया था?

गुरबाणी का सहारा लेकर हमें ‘अरदास’ पर पूर्णतया भरोसा करना चाहिए। वाणी में अंकित है–

तीने ताप निवारणहारा दुख हंता सुख रासि।

ता कउ बिघनु न कोऊ लागै जा की प्रभ आगै अरदास॥

(अंग क्रमांक 714)

तीने ताप अर्थात् यानि की यदि हम विश्वास पूर्वक ‘अरदास’ करें तो तन के, मन के और बाहर के दुख तुरंत दूर हो जाते हैं।

 गुरु जी हमारी ‘अरदास’ कैसे तुरंत परवान करते हैं? इसे गुरबाणी में इस तरह अंकित किया गया है–

अपुने सेवक की आपे राखै आपे नामु जपावै।

जह जह काज किरति सेवक की तहा तहा उठि धावै॥

सेवक कउ निकटी होइ दिखावै।

जो जो कहै ठाकुर पहि सेवकु ततकाल होइ आवै॥1॥ रहाउ ॥

(अंग क्रमांक 403)

अर्थात् जो-जो सेवक गुरु के समक्ष सच्चे मन से ‘अरदास’ करता है उस की ‘अरदास’ तत्काल सुनी जाती है।

 दूर रहकर ‘अरदास’ कैसे सुने जा सकती है? इसका उत्तम उदाहरण गुरबाणी में इस तरह अंकित है–

जैसी गगनि फिरंती ऊडती कपरे बागे वाली।

ओह राखै चीतु पीछै बिचि बचरे नित हिरदै सारि समाली।

तिउ सतिगुरु सिख प्रीति हरि हरि की गुरु सिख रखै जीअ नाली॥

(अंग क्रमांक 168)

अर्थात् जिस प्रकार से कुंज (सारस पक्षी) अपने बच्चों को हजारों किलोमीटर पीछे छोड़कर चोगा चुग कर अपने बच्चों को पालती है। ठीक उसी प्रकार से गुरु भी अपने सिखों की प्रीत पालन करते हैं।

इसे गुरुवाणी में इस तरह से भी अंकित किया गया है–

ऊडे ऊडि आवै सै कौसा तिसु पाछै बचरे छरिआ॥

तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ॥

              (अंग क्रमांक 10)

अर्थात कुंज (सारस पक्षी) साइबेरिया से लगभग 8000 किलोमीटर की दूरी पर आकर यहां दाने चुगती है और वो 8000 किलोमीटर स्थित अपने बच्चों को पालती है।

इसी तरह से गुरुवाणी कहती है–

कुंमी जल माहि तन तिसु बाहरि पंख खीरु तिन नाहि।

(अंग क्रमांक 488)

अर्थात कछुआ पानी में रहता हैं और अंडे प्रजनन के लिए पानी से बाहर आकर अंडे प्रजनित कर पुनः पानी में चले जाता हैं। कछुओं के पास पानी से बाहर उड़ के आने के लिए पंख नहीं होते हैं और ना ही अंडों से प्रजनित बच्चों के लिए दूध होता है। कछुआ पानी के भीतर अंडों से बच्चे बाहर आने के लिए ध्यान लगाते हैं। जब बच्चे अंडे से बाहर आते हैं तो स्वयं पानी में अपनी ध्यानावस्था माता के समीप पहुंच जाते हैं।

 जब कुंज (सारस पक्षी) 8000 किलोमीटर दूर रहकर अपने बच्चों को बचा सकती है और कछुए पानी के भीतर से ध्यान लगा कर के अपने बच्चों को बचा सकते है तो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ‘बाबा बकाला’ में बैठकर मक्खन शाह लुबाना का जहाजी बेड़ा क्यों नहीं बचा सकते हैं?

प्रसंग क्रमांक 22 : भाई मक्खन शाह लुबाना द्वारा बाबा–बकाला नामक स्थान पर सच्चे गुरु की खोज का इतिहास।

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