सिख धर्म के सातवें गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने अपने कार्यकाल में किरतपुर में निवास करते हुए स्वयं के कर-कमलों से 52 सुंदर बगीचों का निर्माण करवाया था। इन सुंदर बगीचों में स्वयं के हाथों से पेड़ों को लगाया गया था। विशेष रूप से इन 52 बगीचों में दुर्लभ जड़ी-बूटियों का रोपण भी किया गया था ताकि आने वाले समय में लोक-कल्याण हेतु इन दुर्लभ जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जा सके। साथ ही आप जी ने जख्मी और बीमार पशु, पक्षियों की सेवा करने हेतु एक चिड़िया घर का भी निर्माण किया था। लोक-कल्याण और सेवा कार्यों को आगे बढ़ाते हुए उस समय के सभी ‘वैद्य राज’ और चिकित्सकों को आमंत्रित कर उपलब्ध जड़ी, बूटी और पास ही में स्थित शिवालिक पहाड़ियों से एकत्र जड़ी, बूटियों से आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण कर; स्वयं के प्रारंभ किए हुए दवाखाना में रोगियों का रोग दूर करने की महान सेवाएं की जाती थी। इस दवाखाना के माध्यम से दुर्गम रोगों का भी सफलतापूर्वक इलाज किया जाता था। यह सभी सेवायें गुरु जी मुफ्त में उपलब्ध करवाते थे।
‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने अपने पिता ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के वचनों का पालन करते हुए हमेशा 2200 घुड़सवारों की सेना को साथ में रखते हुए शस्त्रों के अभ्यास को अपनी जीवन यात्रा में प्रोत्साहित किया करते थे।
सन् 1646 ई. में पंजाब में भीषण अकाल पड़ा था। इस मुश्किल समय में गुरु जी ने अकाल पीड़ितों की सेवा हेतु किरतपुर में स्थित अपने दवाखाने के दरवाजे पीड़ितों के लिए खोल दिये थे, स्वयं सेवा-सुश्रुषा करते हुए रोगियों का इलाज आप जी ने किया था।
उस समय दिल्ली के तख़्त पर आसीन शाहजहां का पुत्र दारा शिकोह गंभीर रूप से बीमार हो गया था। दारा शिकोह की दुर्गम बीमारियां नाइलाज थी। उस समय के ‘वैद्य राज’ और चिकित्सकों ने शाहजहां को सूचित किया था कि बीमार दारा शिकोह का इलाज किरतपुर स्थित ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ के दवाखाने में ही संभव है। दारा शिकोह जब किरतपुर से दवाखाने में उपस्थित हुआ तो ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने अमूल्य जड़ी, बूटियों से निर्मित औषधियों से दारा शिकोह का इलाज कर उसे रोग मुक्त किया था। इस कारण दारा शिकोह की गुरु घर पर अपार श्रद्धा थी।
सन् 1658 ई. में कुटिल नीतियों के महारत औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को नजर बंद करवा दिया था और अपने भाइयों के विरोध में बगावत का बिगुल फूंक दिया था। इस कारण दारा शिकोह पर भी आक्रमण हो चुका था। दारा शिकोह अपनी जान बचाने के लिए दिल्ली से लाहौर की और पलायन कर गया था। उस समय ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ का किरतपुर से करतारपुर साहिब की और आगमन हुआ था। वहां से गुरु जी ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान में भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को भेंट दे कर गोइंदवाल साहिब नामक स्थान पर पहुंचे थे। जब आप भी गोइंदवाल साहिब नामक स्थान पर संगत के बीच धर्म का प्रचार-प्रसार कर संगत को गुरु घर से जोड़ रहे थे तो उस समय दारा शिकोह ने गुरु जी के समक्ष उपस्थित होकर मदद की गुहार लगाई थी।
‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ की और से दारा शिकोह की मदद की गई थी और दरिया के किनारे उन्होंने अपनी सेना को तैनात कर औरंगजेब की सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया था। इस तरह से दारा शिकोह पलायन कर सुरक्षित लाहौर की और प्रस्थान कर गया था।
तत्पश्चात ‘मसंद’ धीरमल के द्वारा औरंगजेब को सूचित कर शिकायत की थी कि दारा शिकोह की मदद ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने की थी। औरंगजेब ने अपने पत्र के द्वारा ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ को सूचित कर दारा शिकोह की जो मदद की गई थी उसका स्पष्टीकरण मांगा था। परंतु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने निश्चय कर लिया था कि–
नैंह मलेश को दरशन देहैं॥
नैंह मलेश के दरशन लेहैं॥
अर्थात कि हम औरंगजेब के मुंह नहीं लगेंगे।
‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने निश्चित किया था कि वो स्वयं औरंगजेब के समक्ष न जाते हुए अपने बड़े बेटे राम राय को औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली भेजेंगे।