जब मन बहुत विचलित और व्यथित हो, स्वयं के शरीर का भार सहन करने में कठिनाई हो, सांसों का लगातार क्रमानुसार चलना लड़खड़ाने लगे, स्वयं के दिल की धड़कन बिना स्टेथोस्कोप के मन–मस्तिष्क पर चोट करने लगे और जब अपने किसी के अचानक सामने आने पर अवाक होकर, नजरें मिलाकर चेहरों पर बेबसी झलकें, देहबोली एक असहाय व्यक्ति की भंगिमाओं को प्रकट करें एवं हमें स्वयं अपने आप में एक अंधेरी, गहरी खाई में तेजी से गिरने की आश्चर्य मिश्रित वेदना हो तो वो समय जीवन का सबसे कठिन समय होगा।
ऐसे जीवन के सबसे कठिन समय में गुरुवाणी की निम्नलिखित पंक्तियां मार्गदर्शन करती है–
जगतु जलंदा रखि लै आपणि किरपा धारि॥
जितु दुआरै उबरै तितै लैहु उबारि॥
सतिगुरि सुखु वेखालिआ सचा सबदु बीचारि॥
नानक अवरु न सुझई हरि बिनु बखसणहारु॥
(अंग क्रमांक 853)
हे परमात्मा! यह संसार तृष्णाग्नि में जल रहा है, अपनी रहमतों से आप इस संसार की रक्षा करें। संसार को बचाने के लिए जो भी सुकर मार्ग हो उसे अपना कर, इस संसार को बचा लो। है सच्चे प्रभु! तेरे सच्चे नाम के सुमिरन से ही सुख का मार्ग निहित होता है। हे नानक! ईश्वर के अतिरिक्त मुझे अन्य कोई भी क्षमावान् नजर नहीं आता है।
ग्रीष्म ऋतु के इस समय में तो पके हुए आमों को वृक्षों से मुक्त होना था परंतु अच्छे–खासे चलते हुए जीवन में मनुष्य चलते–चलते जीवन से अचानक मुक्त होने लगे। आम रस के पीने के दिनों में लस (टीका) की चिंता सताने लगी और जिस सहजता से हम सॉरी और थैंक्यू बोलते थे उसी सहजता से सोशल मीडिया पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करने लगे हैं। जीवन भर अपार कष्ट कर कमाई हुई संपत्ति, पद, मान–सम्मान सभी कुछ अचानक छोड़कर दुनिया से अलविदा कहने का समय आ गया हो, लोग सोशल मीडिया पर क्षणभंगुर संवेदना प्रकट करने लगे हो, यह क्षणभंगुर संवेदना व्हाट्सएप के डीपी की तरह बदलने लगे तो जीवन की डीपी पर लगा हुआ फोटो आभास प्रदर्शित करता है, स्पर्श नहीं! ऐसे कठिन समय में एक दूसरे से प्रेम पूर्वक मेलजोल रखो, एक दूसरे की सहायता करो, जब भी मिलो प्यार से बोलो कारण भविष्य में आने वाले दिवस बहुत कठिन है।
ऐसे दुखद और कष्टदायक समय में ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ का सुमिरन ही दुखों से तार सकता है। जिसे इस तरह से अंकित किया गया है–
श्री हर कृष्ण जी धिआइए जिस डिठे सब दुख जाये॥
‘श्री गुरु हर कृष्ण जी’ का सुमिरन सभी वेदना और कष्टों से बचाता है।
समय की नब्ज को समझो, स्तब्ध है सारा विश्व! ओझल है आशाओं की किरण, वातावरण की जहरीली हवाओं से सांसे लड़खड़ा रही है परंतु हमें ऐसे कठिन समय में भी विश्वास पूर्वक स्वयं को दृढ़ निश्चय से उभारना होगा। जीवन की इस अंधी दौड़ में इंसान से बहुत भूल हो रही थी, धन के नशे की खुमारी ने इंसानियत को भुला दिया था। इस लोभ का अंत करना होगा और इस अंधी दौड़ के नशे से बाहर आना होगा। हमें एक बार पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
हमें एक ऐसे विश्व का निर्माण करना होगा, जिसका स्वयं का सुरीला गाना हो, सांसों में एक विश्वास हो, आखों में एक अनोखी चमक हो, प्रेम का निशान हो, प्रित का व्यवहार हो, पुनः नई फसल उगेगी, पुनः युवा पीढ़ी की जवानी का जोश होगा, पुनः हर्षोल्लास और आनंद का वातावरण होगा। ‘श्री गुरु नानक देव जी’ की इस पवित्र धरती को पुनीत–पावन बनाने हेतु पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
हमें भविष्य में ऐसे विश्व का निर्माण करना होगा जहां लोभ, हिंसा और झूठ का कोई स्थान ना हो, ऐसे विश्व का निर्माण हो जो इंसानियत के लिए वरदान हो, एक नए युग के नवल का उत्थान करना होगा। हमें एकजुट होकर पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
इस संसार में सांसों की अबाध गति से ही जीवन गतिमान होगा, नसों में रक्त की दौड़ के आवेग को स्थापित करना होगा। बांसुरी के साद से, वीणा की झंकार से, तबले की थाप से, संगीत की रुणझुण से, भविष्य का जीवन खुशहाल होगा। निरोगी काया से देश का निर्माण कर, एक बार पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
हमारे इरादे हिमालय से अडिग हैं और चट्टानों से भी ज्यादा सख्त है। इस धरा पर धर्म के सूत्रों का पालन कर ‘वसुदेव कुटुंबकम’ अनुसार पूरी कायनात की इंसानियत को आगोश में भर कर, पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
हम पृथ्वी के जीव सभी गलती करने वाले है। एक बार हमें उस करतार से अपनी भूलों को बख्शा कर, सभी की चढ़दी कला की अरदास (प्रार्थना) को करना होगा। जिसे गुरवाणी में इस तरह से अंकित किया गया है–
भुलण अंदरि सभु को अभुलु गुरु करतार॥
(अंग क्रमांक 61)
अर्थात हम सभी जीव गलती करने वाले हैं केवल गुरु और सृष्टि की रचना करने वाला ही अचूक है।
हे प्रभु परमेश्वर! पृथ्वी के सभी जीवो को बक्श ले, उस प्रभु–परमेश्वर की प्रार्थना कर हमें पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा. . .
पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
शेष फिर कभी. . . . .
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जब मन बहुत विचलित और व्यथित हो, स्वयं के शरीर का भार सहन करने में कठिनाई हो, सांसों का लगातार क्रमानुसार चलना लड़खड़ाने लगे, स्वयं के दिल की धड़कन बिना स्टेथोस्कोप के मन–मस्तिष्क पर चोट करने लगे और जब अपने किसी के अचानक सामने आने पर अवाक होकर, नजरें मिलाकर चेहरों पर बेबसी झलकें, देहबोली एक असहाय व्यक्ति की भंगिमाओं को प्रकट करें एवं हमें स्वयं अपने आप में एक अंधेरी, गहरी खाई में तेजी से गिरने की आश्चर्य मिश्रित वेदना हो तो वो समय जीवन का सबसे कठिन समय होगा।
ऐसे जीवन के सबसे कठिन समय में गुरुवाणी की निम्नलिखित पंक्तियां मार्गदर्शन करती है–
जगतु जलंदा रखि लै आपणि किरपा धारि॥
जितु दुआरै उबरै तितै लैहु उबारि॥
सतिगुरि सुखु वेखालिआ सचा सबदु बीचारि॥
नानक अवरु न सुझई हरि बिनु बखसणहारु॥
(अंग क्रमांक 853)
हे परमात्मा! यह संसार तृष्णाग्नि में जल रहा है, अपनी रहमतों से आप इस संसार की रक्षा करें। संसार को बचाने के लिए जो भी सुकर मार्ग हो उसे अपना कर, इस संसार को बचा लो। है सच्चे प्रभु! तेरे सच्चे नाम के सुमिरन से ही सुख का मार्ग निहित होता है। हे नानक! ईश्वर के अतिरिक्त मुझे अन्य कोई भी क्षमावान् नजर नहीं आता है।
ग्रीष्म ऋतु के इस समय में तो पके हुए आमों को वृक्षों से मुक्त होना था परंतु अच्छे–खासे चलते हुए जीवन में मनुष्य चलते–चलते जीवन से अचानक मुक्त होने लगे। आम रस के पीने के दिनों में लस (टीका) की चिंता सताने लगी और जिस सहजता से हम सॉरी और थैंक्यू बोलते थे उसी सहजता से सोशल मीडिया पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करने लगे हैं। जीवन भर अपार कष्ट कर कमाई हुई संपत्ति, पद, मान–सम्मान सभी कुछ अचानक छोड़कर दुनिया से अलविदा कहने का समय आ गया हो, लोग सोशल मीडिया पर क्षणभंगुर संवेदना प्रकट करने लगे हो, यह क्षणभंगुर संवेदना व्हाट्सएप के डीपी की तरह बदलने लगे तो जीवन की डीपी पर लगा हुआ फोटो आभास प्रदर्शित करता है, स्पर्श नहीं! ऐसे कठिन समय में एक दूसरे से प्रेम पूर्वक मेलजोल रखो, एक दूसरे की सहायता करो, जब भी मिलो प्यार से बोलो कारण भविष्य में आने वाले दिवस बहुत कठिन है।
ऐसे दुखद और कष्टदायक समय में ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ का सुमिरन ही दुखों से तार सकता है। जिसे इस तरह से अंकित किया गया है–
श्री हर कृष्ण जी धिआइए जिस डिठे सब दुख जाये॥
‘श्री गुरु हर कृष्ण जी’ का सुमिरन सभी वेदना और कष्टों से बचाता है।
समय की नब्ज को समझो, स्तब्ध है सारा विश्व! ओझल है आशाओं की किरण, वातावरण की जहरीली हवाओं से सांसे लड़खड़ा रही है परंतु हमें ऐसे कठिन समय में भी विश्वास पूर्वक स्वयं को दृढ़ निश्चय से उभारना होगा। जीवन की इस अंधी दौड़ में इंसान से बहुत भूल हो रही थी, धन के नशे की खुमारी ने इंसानियत को भुला दिया था। इस लोभ का अंत करना होगा और इस अंधी दौड़ के नशे से बाहर आना होगा। हमें एक बार पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
हमें एक ऐसे विश्व का निर्माण करना होगा, जिसका स्वयं का सुरीला गाना हो, सांसों में एक विश्वास हो, आखों में एक अनोखी चमक हो, प्रेम का निशान हो, प्रित का व्यवहार हो, पुनः नई फसल उगेगी, पुनः युवा पीढ़ी की जवानी का जोश होगा, पुनः हर्षोल्लास और आनंद का वातावरण होगा। ‘श्री गुरु नानक देव जी’ की इस पवित्र धरती को पुनीत–पावन बनाने हेतु पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
हमें भविष्य में ऐसे विश्व का निर्माण करना होगा जहां लोभ, हिंसा और झूठ का कोई स्थान ना हो, ऐसे विश्व का निर्माण हो जो इंसानियत के लिए वरदान हो, एक नए युग के नवल का उत्थान करना होगा। हमें एकजुट होकर पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
इस संसार में सांसों की अबाध गति से ही जीवन गतिमान होगा, नसों में रक्त की दौड़ के आवेग को स्थापित करना होगा। बांसुरी के साद से, वीणा की झंकार से, तबले की थाप से, संगीत की रुणझुण से, भविष्य का जीवन खुशहाल होगा। निरोगी काया से देश का निर्माण कर, एक बार पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
हमारे इरादे हिमालय से अडिग हैं और चट्टानों से भी ज्यादा सख्त है। इस धरा पर धर्म के सूत्रों का पालन कर ‘वसुदेव कुटुंबकम’ अनुसार पूरी कायनात की इंसानियत को आगोश में भर कर, पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
हम पृथ्वी के जीव सभी गलती करने वाले है। एक बार हमें उस करतार से अपनी भूलों को बख्शा कर, सभी की चढ़दी कला की अरदास (प्रार्थना) को करना होगा। जिसे गुरवाणी में इस तरह से अंकित किया गया है–
भुलण अंदरि सभु को अभुलु गुरु करतार॥
(अंग क्रमांक 61)
अर्थात हम सभी जीव गलती करने वाले हैं केवल गुरु और सृष्टि की रचना करने वाला ही अचूक है।
हे प्रभु परमेश्वर! पृथ्वी के सभी जीवो को बक्श ले, उस प्रभु–परमेश्वर की प्रार्थना कर हमें पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा. . .
पुनः निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा।
शेष फिर कभी. . . . .
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