ध्वनिक्षेपण विज्ञान और श्री दरबार साहिब जी अमृतसर का निर्माण

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ੴसतिगुर प्रसादि॥ (अद्वितीय सिख विरासत/गुरबाणी और सिख इतिहास/खोज-विचार की पहेल)

ध्वनिक्षेपण विज्ञान और श्री दरबार साहिब जी अमृतसर का निर्माण

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के प्रथम प्रकाश पर्व को समर्पित–

वर्तमान समय से लगभग 450 वर्ष पूर्व जिस पुरातन समय में ‘श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब अमृतसर जी’ के समय भवन निर्माण करते समय आवाज (ध्वनि) की आवृत्ति को ऊंचा करने के लिए आधुनिक समय की तरह लाउड स्पीकर आदि यंत्र नहीं होते थे। व्यक्ति को अपनी बात दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए स्वयं के कंठ के जोर पर ही निर्भर रहना पड़ता था। उस समय ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने जब 500 फीट लंबे और 490 फीट चौड़े सरोवर के मध्य ‘श्री हरमंदिर साहिब जी’ का निर्माण किया था। इस पुरी परिक्रमा और परिसर के निर्माण कार्य के लिये ध्वनि क्षेपण तकनिकी विज्ञान को विशेष महत्व देकर संपूर्ण निर्माण कार्य को विशेष शैली में निर्मित किया गया था। श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब की परिक्रमा के दरवाजे से सरोवर पर निर्मित पुल से होते हुए दरबार साहिब के मध्य स्थित मुख्य दरवाजे की लंबाई 240 फीट है और चौड़ाई 21 फीट है। पुल से मुख्य इमारत के छत की ऊंचाई 26 फीट 9 इंच है और छत पर निर्मित गैलरी की ऊंचाई 4 फीट है। इस गैलरी के उपर दरबार साहिब के मुख्य गुंबद स्थित है। सरोवर के मध्य स्थित इमारत के मुख्य प्रवेश द्वार के द‍ायीं ओर एवं बायीं और 19-19 छोटे आकार के गुंबद एक विशेष ऐतिहासिक महत्व के तहत स्थापित किये गये है। इस सरोवर की गहराई 17 फीट है। ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ ने इस निर्माण कार्य के अंतर्गत कई अद्भुत पहलुओं पर विशेष ध्यान रखकर इस निर्माण कार्य को संपन्न किया था।

इस अद्भुत वास्तु को निर्माण करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि सरोवर की परिक्रमा पर उपस्थित संगत (श्रद्धालुओं) और सरोवर के बीच स्थित ‘श्री हरमंदिर साहिब जी’ की परिक्रमा में उपस्थित संगत (श्रद्धालुओं) को दरबार साहिब में चल रहे कीर्तन की आवाज एक समान रूप से चारों और सुनाई देवें। गुरु जी ने स्वयं ध्वनिक्षेपण विज्ञान के सूत्र को आत्मसात कर विशिष्ट ध्वनि लहरी के गुणों के अनुसार परिसर के भवन निर्माण को उन कोणों के अनुकूल निर्माण करवाया था। अर्थात ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ की ध्वनिक्षेपण विज्ञान और ज्यामिति गणित के अनुसार ध्वनि लहरी के गुणों से परावर्तित होने वाली ध्वनि और सरोवर के जल द्वारा ध्वनि अवशोषण की मात्रा का उत्तम ज्ञान था।

इस निर्माण में मुख्य भवन और परिक्रमा के चारों और निर्मित भवनों के निर्माण में विशेष रूप से भवनों की ऊंचाई, खिड़की, दरवाजों की लंबाई, चौड़ाई और दूरी का खास ध्यान रखा गया था। एक दीवार से दूसरी दीवार तक की दूरी इस तरह से समायोजित की गई थी कि किसी भी प्रकार से चल रहे कीर्तन की आवाज में रुकावट पैदा ना हो और भवनों के निर्माण के कारण ध्वनि की आवृत्ति का समन्वय एक समान किया गया,  जिससे आवाज ना फटेगी और ना ही गुंज पैदा करेगी।

इस विशेष ध्वनिक्षेपण की व्यवस्था से आवाज मुलायम और सुरीली होकर एक समान होगी उस समय में इस तरह के ध्वनिक्षेपण विज्ञान का उपयोग करना बहुत ही तकनीकी और सूझबूझ का कार्य था।

उस समय दरबार साहिब में उपस्थित श्रोताओं को इस तरह से महसूस होता था कि जैसे अकाल पुरख की इलाही वाणी साक्षात् आकाश से अवतरित होकर, मनमोहक कीर्तन की सुरीली धुन के रूप में संपूर्ण वातावरण को प्रभु-परमेश्वर के प्यार से ओतप्रोत कर रही हो। इस सुंदर वातावरण में ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ स्वयं कीर्तन से इस इलाही वाणी में प्रेम का अद्भुत रंग भर कर समां बांध देते थे। गुरु जी के साथ भाई गुरदास जी संगत करते थे और बाबा बुड्ढा जी रबाब की सुरीली धुनों से गुरु जी का कीर्तन में साथ देते थे।

‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ की जीवन यात्रा के समय 7 प्रमुख कीर्तनी जत्थे दरबार साहिब में अपनी सेवाएं समर्पित करते थे। विशेष इन जत्थों में 6 रबाबी मुस्लिम धर्म के थे। सन् 1900 ईस्वी. के दशक में 15 कीर्तनी जत्थे सेवाएं अर्पित करते थे। इतिहास गवाह है जब ‘गुरु पंथ-खालसा’ के महान कीर्तनकार भाई मनसा सिंह जी दरबार साहिब में कीर्तन करते थे तो ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ के नेत्र ईश्वर भक्ति में झुक कर, सत्कार से नम हो जाते थे। ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ इलाही कीर्तन के माध्यम से अकाल पुरख से सुरमयी वार्तालाप करते थे।

दरबार साहिब में कीर्तन की हाजिरी भरने वाले रागी सिंह (कीर्तन कारों) का विशेष सम्मान होता है। उस समय प्रसिद्ध कीर्तनकार बड़े-बड़े राजा, महाराजाओं की हवेली में कीर्तन करने से स्पष्ट इनकार कर देते थे क्योंकि वो अपने कंठ में से सुर निकालने हेतु दरबार साहिब जी को ही उपयुक्त स्थान मानते थे। इन कीर्तन कारों की दरबार साहिब में सेवाएं निश्चित होती थी।

एक दिन ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ को ज्ञात हुआ कि गुरु घर के महान कीर्तनकार भाई मनसा सिंह जी की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। गुरु पंथ खालसा’ के महान रागी मनसा सिंह जी का गरीबी के बोझ तले दबा हुआ होना महाराजा जी को रास नहीं आया और वो स्वयं महान कीर्तनकार भाई मनसा सिंह जी के घर उसकी आर्थिक मदद करने हेतु पहुंच गए थे परंतु भाई मनसा सिंह जी ने घर का दरवाजा नहीं खोला और घर के भीतर से ही महाराजा को विनम्रता पूर्वक धन्यवाद कर आर्थिक मदद लेने से इनकार कर दिया था। ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ तुरंत जान गए थे कि जो व्यक्ति गुरु की शरण में जीवन व्यतीत करता है वो हमेशा सुखी और तृप्त होता है। ऐसे सेवादारों को वाहिगुरु जी स्वयं हमेशा चड़दी कला में हमेशा रखते हैं।

जब देश के महान कविवर श्री रविंद्र नाथ टैगोर जी ने दरबार साहिब में ‘गुरु पंथ खालसा’ के महान कीर्तनकार भाई सुंदर सिंह जी का कीर्तन सुना तो वो इस कीर्तन के दीवाने हो गए थे। उन्होंने भाई सुंदर सिंह जी को सूचित करते हुए निवेदन किया कि वो जिस स्थान पर निवास कर रहे हैं उस स्थान पर आकर आप जी  कीर्तन करें। भाई साहब जी ने स्पष्ट इंकार कर कहा था कि यदि रविंद्र नाथ जी को कीर्तन श्रवण करना है तो उन्हें दरबार साहिब में ही उपस्थित होना पड़ेगा। जब टैगोर जी पुनः बंगाल प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होंने कहा था कि यदि भाई सुंदर सिंह जी दरबार साहिब के कीर्तनिये नहीं होते तो मैं उन्हें उठाकर बंगाल लेकर जाता था।

वर्तमान समय में दरबार साहिब में अत्याधुनिक ध्वनिक्षेपण यंत्र स्थापित किए गये है, जो अत्यंत सूक्ष्म ध्वनि को भी मुलायम और सुरीला बनाकर संपूर्ण दरबार साहिब एवं परिक्रमा में एक जैसा चारों ओर फैला देते हैं। जैसे हवा का एक झोंका फूलों की खुशबू से वातावरण को सुगंधित कर देता है।

जब अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की पालकी को दरबार साहिब में लेकर जाते हैं तो इस पालकी के आगे एक सिख नौजवान श्रद्धालु पूरी शक्ति से नरसिंगा नामक वाद्य को  बजाता है। जब इस नरसिंगा वाद्य से निकली ध्वनि लहरियां दरबार साहिब जी की दीवारों को छू कर पुनः परावर्तित होती है तो इस परिक्रमा का परिसर निश्चित ही विस्मय की भक्ति के रंग में सराबोर होकर वातावरण में एक अद्भुत पवित्रता पैदा करता है। उस समय ऐसा महसूस होता है कि परमेश्वर स्वयं ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के सत्कार में आकाश से अवतरित होकर अनादि-नाद का अनोखा कीर्तन कर ‘अनहद’ की ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। इसी समय एक सेवादार सिख अपनी विशेष आवाज में सतनाम. . . . . श्री वाहेगुरु साहिब जी का उच्चारण करता है तो उस सिख सेवादार की आवाज बिना माइक के पूरे परिक्रमा के परिसर में एक समान गूंज कर श्रद्धालुओं को अभिभूत करती है।

‘श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब’ के संदर्भ में कुछ अद्भुत-अलौकिक, महत्वपूर्ण जानकारियां-

 

1.विश्व के समस्त मंदिरों के प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर स्थित होते हैं कारण सूर्य की प्रथम किरण ने प्रकाश के स्वरूप में मंदिर को प्रकाशित करना चाहिए परंतु ‘श्री हरमंदिर साहिब,दरबार साहिब जी’ का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में स्थित है। इस कारण से सूर्य की प्रथम किरण प्रकाश के स्वरूप में दरबार साहिब के पिछले हिस्से को प्रथम प्रकाशित करती है। इसे सिख धर्म में इस तरह निर्देशित किया गया है कि गुरवाणी के ज्ञान का प्रकाश सूर्य के प्रकाश से भी सर्वोत्तम होता है।

2.’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ के प्रवेश द्वार से यदि हम दृष्टिक्षेप करें तो दरबार साहिब के दायीं एवं बायीं और 19-19 की संख्या में छोटे गुंबद स्थित है। यह दायीं एवं बायीं और स्थित गुंबद यह दर्शाते हैं कि जब हम ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश करते हैं तो ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ को यदि हम पठन के लिए सम्मान पूर्वक खोलते हैं तो ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के अंगों (गुरु श्री ग्रंथ साहिब जी के पृष्ठों को सम्मान पूर्वक गुरुमुखी में ‘अंग’ कहकर संबोधित किया जाता है) के दाएं और एवं बाएं और क्रमानुसार गुरवाणी की 19-19 पंक्तियां अंकित हैं।

 

3.’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ के परिक्रमा के परिसर एवं सरोवर के चारों और कहीं भी मेंढक और बगुले आज तक दिखाई नहीं पड़ते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि इस तरह की वृत्ति के लोगों का गुरु घर ‘श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में कोई स्थान नहीं है।

4.दुनिया में समस्त निर्मित गुरुद्वारों के प्रवेश द्वार पर ही निशान साहिब (सिख धर्म का ध्वज) स्थित होता है परंतु ‘श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में  मुख्य निशान साहिब पीछे की और ऊपर में स्थित है। इस पुरे परिसर का यदि हम हवाई अवलोकन करें तो ऐसा प्रतीत होता है, जैसे पूरा परिसर खुले समुद्र में यात्रा करते हुए जहाज के समान अवलोकित होता है। जो कि यह दर्शाता है कि इस जीवन रूपी यात्रा में केवल प्रभु के नाम-स्मरण के जहाज में ही यात्रा कर कलयुग रुपी गहरे समुद्र को पार किया जा सकता है।

5.’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में सरोवर के मध्य स्थित मुख्य इमारत का गुंबद कमल के फूल के आकार में उल्टा स्थित अर्थात (विरुद्ध दिशा में) है। कमल के फूल के आकार में यह उल्टा गुंबद ‘विनम्रता’ का प्रतीक है। साथ ही ‘श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ के एकदम समक्ष स्थित ‘श्री अकाल तख्त साहिब जी’ की मुख्य इमारत के गुंबद को कमल के फूल के सीधे आकर में स्थापित किया है। जो कि सिख धर्म की ‘चड़दी कला’ का प्रतीक है। ठीक इसी प्रकार श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब की पूर्ण परिक्रमा जमीनी सतह की समतल भूमि से निचे की और स्थित है अर्थात् हमें परिक्रमा स्थल पर पहुंचने के लिये सीढ़ियों से उतरकर नीचे की और जाना पड़ता है। जो कि सिख धर्म की विनम्रता को दर्शाता है। साथ ही जब हम ‘श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ से श्री अकाल तख्त साहिब जी की और जाते है तो हमें ऊंची सीढ़ियों को चढ़कर जाना पड़ता हूँ। जो कि खालसा की चड़दी कला को निर्देशित करता है।

6.श्री अकाल तख्त के मुख्य दीवान हाल से आप सीधे ‘श्री हरमंदिर साहिब जी’ के मुख्य दीवान में हाल में विराजमान ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के सीधे दर्शन कर सकते है परंतु ‘श्री हरमंदिर साहिब जी’ के मुख्य दीवान हाल से श्री अकाल तख्त साहिब जी के मुख्य दीवान हाल के दर्शन नहीं कर सकते है। जो कि यह दर्शाता है कि राज सत्ता को हमेशा धर्म की सेवा करने वालों पर दृष्टिक्षेप कर उनकी सेवा में तत्पर रहना चाहिए एवं धर्म की सेवा करने वालों को राज सत्ता की और दुर्लक्ष करना चाहिये।

7.’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ के भवन निर्माण के मध्य स्थित मुख्य इमारत के चारों दरवाजों को चारों दिशाओं के कोण से निर्धारित नहीं किया जा सकता है। यहां मुख्य इमारत 360 डिग्री के कोण से एक समान दिखाई पड़ती है अर्थात यदि हम 360 डिग्री के कोण में घूम कर इस इमारत का अवलोकन करेंगे तो सभी कोणों से यह मुख्य इमारत एक जैसी दिखाई पड़ती है।

8.’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ मैं सेवाएं समर्पित करने वाले कीर्तनी जत्थों की संख्या 19 है, इन जत्थों में से प्रतिदिन 8 जत्थे, 15 चौकियों में कीर्तन कर अपनी सेवाएं समर्पित करते हैं।  इस स्थान पर भाषण नहीं दिया जाता है और केवल गुरवाणी का पठन ही किया जाता है।

9. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में केवल ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के सबद, दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद साहिब जी’ की वाणी भाई गुरदास जी की वाणी और भाई नंद लाल जी की रचनाओं का ही पठन किया जाता है।

10. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’  मैं बेशकीमती सोने के छतर जड़ाऊ सिरका सोने की मालाएं ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ की श्री साहिब (बेशकीमती कृपाण), 108 सच्चे मोतियों की माला, सोने के दरवाजे, सोने के चक्र, दो सोने के पंखे, पांच सोने की करिआं, पांच चांदी के बाटे, हीरे जड़ीत चांदनी, बेशकीमती चंदन का बना हुआ चंवर, ढोड़ी साहिब के लिए सोने की जोड़ी, इत्यादि बहुमूल्य वस्तुएं सुशोभित हैं।

11. प्रसिद्ध सिख वैज्ञानिक सरदार लहना सिंह मजीठिया जिनका कि जन्म सन 1825 ई. में मजीठा नामक गांव (सूबा पंजाब) में हुआ था। इनके पिता का नाम देसा सिंह मजीठिया था। सरदार लहना सिंह एक कुशल यांत्रिकी और खोजकर्ता थे, आप जी को ‘साहिबे-क़दर’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है। आप जी ने एक घड़ी भी बनाई थी, जो धूप के आधार पर समय बताती थी। यह सिख साम्राज्य की सबसे पहली बनाई गई धूप घड़ी थी, जिसे उन्होंने ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ को भेंट स्वरूप दी थी और महाराजा ने उस घड़ी को दरबार साहिब की परिक्रमा में सुशोभित कर दिया, जो आज भी वहाँ मौजूद है।

12.सन 1922 ईस्वी. में अंग्रेज सरकार के द्वारा ‘श्री दरबार साहिब, हरमंदिर साहिब जी’ की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अधीन कर दी गई थी।  सन 1962 ईस्वी. में इस परिसर में प्रबंधक कमेटी के द्वारा तांबे और लौह अयस्क के मिश्रण से बने खंभों पर दो निशान साहिब सुशोभित किए गए थे, यह दोनों निशान साहिब मीरी और पीरी (भक्ति और शक्ति) का प्रतीक हैं।

13. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में हुकुमनामा बाएं और से लिया जाता है और कीर्तन दाएं ओर से किया जाता है।  जबकि और गुरु स्थानों पर कीर्तन बाएं और से होता है।

14. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में तीन बार हुकुमनामा लिया जाता है,1. प्रकाश करते समय, 2. आसा दी वार के कीर्तन के पश्चात एवं 3.रात्रि के सुखासन के समय।

15. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ का प्रबंध ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने सन 1699 ईस्वी. में भाई मनी सिंह के सुपुर्द किया था।  उस समय गुरु साहिब जी ने भाई मनी सिंह जी को एक नगाड़ा, एक निशान साहिब जी, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बीड़(पोथी साहिब) एवं 5 सिख सेवादार उनके साथ प्रबंधन के लिए नियुक्त  किये थे।

16. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ ने अपने कार्यकाल के समय एक कीमती चांदनी भेंट की थी, इस चांदनी की कीमत उस समय ₹80 लाख थी।  यह चांदनी साका नीला तारा (ऑपरेशन ब्लू स्टार) की कार्यवाही के तहत जलकर खाक हो गई।

17. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ के परिसर में ऐतिहासिक बैरी के तीन पेड़ हैं, 1. दुख भांजनी बेरी, 2.बेर बाबा बुड्ढा जी, 3. इलायची बेरी, इलायची बेरी का पेड़ ‘श्री अकाल तख़्त साहिब जी’ के सामने स्थित है।  इसी स्थान पर एक अन्य ईमली का पेड़ भी स्थित है।  ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ के समय, उस समय के ‘श्री अकाल तख़्त साहिब जी’ के जत्थेदार सरदार फूला सिंह जी ने इस ईमली के पेड़ से बांधकर ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ को पांच कोड़े मारने की सज़ा सुनाई थी।  यह समस्त पेड़ एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में दरबार साहिब जी के परिसर में स्थित हैं।

18. श्री हरमंदिर साहिब दरबार साहिब जी की परिक्रमा में बाबा बुड्ढा जी की बेरी के समीप जो ठंडा पानी की प्याऊ/छबिल लगती है, उसके ऊपर सुशोभित चक्र नुमा छत को भाई सुखा सिंह जी और भाई महताब सिंह जी की स्मृति में सुशोभित किया गया है। इतिहास गवाह है कि भाई सुखा सिंह और भाई महताब सिंह ने आक्रांता मस्सा रंगड को मार कर, उसके सर को कलम कर अपने हाथों में लेकर दरबार साहिब से बाहर निकले तो आक्रांता मस्सा रंगड के सर को भाले के ऊपर टांगकर, इस लाची बेरी के समीप आए और अपने घोड़े को खोलकर, घोड़े पर सवार होकर इस स्थान से बाहर जाने की बजाय उन्होनें बाबा बुड्ढा साहिब जी की बेरी की ओर अपने घोड़े को घूमाकर खड़े रहे थे। आप दोनों गुरु के सिख यह बताना चाहते थे कि हम मुगलों से डर कर भाग नहीं रहे है अपितु निडर होकर, बहादुरी से अपने घोड़े को घूमाकर शत्रु सेना को ललकारा था। इस इतिहास की स्मृति को संजोते हुए इस स्थान पर चक्र नुमा गोल छत सुशोभित की गई है।

19.’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में पालकी के आवागमन का समय–  ग्रीष्म ऋतु में प्रातः काल (अमृत वेले) 4.30 बजे,  शीत ऋतु में प्रातः काल 5.30बजे, प्रतिदिन रात्रि को ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की सवारी को रात 10:30 बजे सुनहरी पालकी में विराजमान करके गुरुद्वारा कोठा साहिब जी (श्री अकाल तख्त साहिब जी) में सुखासन के लिए लेकर जाया जाता है।  ऋतुओं के हिसाब से इस समय में 15 मिनट का अंतर कम या अधिक हो सकता है।

20. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ का सन 1803 ईस्वी. में नूतनीकरण करते समय ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ ने एक मुस्लिम कारीगर यार मोहम्मद खान की देखरेख में सेवा प्रारंभ करवाई थी।  इस सेवा का प्रारंभ 162 सेर विशुद्ध सोने से किया गया था, यह महान सेवा लगभग 27 वर्षों तक निरंतर चलती रही थी।  इसके पश्चात नूतनीकरण करते समय लगभग 500 किलो शुद्ध सोने से भी अधिक सोना उस समय लगा दिया गया था।  जिसकी उस समय कीमत 150 करोड़ रुपए से भी अधिक थी।

21. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ प्रत्येक दिवस दूध मिश्रित जल से (कच्ची लस्सी) से सफाई की जाती है ताकि संगमरमर की चमक बरकरार रहे और भविष्य में इस संगमरमर पर फंगस का प्रादुर्भाव ना हो एवं गुरु साहिब का चंदौआ प्रत्येक सप्ताह के बुधवार एवं शुक्रवार को बदला जाता है।

22. ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ के ग्रीष्म ऋतु में किवाड़ खुलने का समय रात 2:00 बजे है एवं शीत ऋतु में किवाड़ खुलने का समय ब्रह्म मुहूर्त (अमृतवेला) में सुबह 3:00 बजे है।  साथ ही किवाड़ के मंगल होने का समय रात 10:00 बजे है।  प्रतिदिन रात 12:00 बजे दरबार साहिब के फर्श की सफाई होती है।  दरबार साहिब को कभी भी ताला नहीं लगाया जाता है।

23. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की स्थापना संवत 1661 में की थी और प्रथम हेड ग्रंथि के रूप में बाबा बुड्ढा जी को नियुक्त किया था।  इस दिवस को प्रत्येक वर्ष ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के प्रथम प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।  इस वर्ष यह प्रकाश पर्व 16 सितंबर सन 2024 ईस्वी. को है।  इस स्थान पर कुल तीन स्थानों पर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश होता है।

24. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ पीछे की ओर स्थित सरोवर के घाट को हर की पौड़ी के नाम से संबोधित किया जाता है।  दरबार साहिब के तैयार होने के पश्चात सबसे पहले इसी स्थान पर ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ ने अमृत (पवित्र जल) ग्रहण किया था।  दरबार साहिब के दर्शन ही भाग में 7 बुंगे स्थित है एवं पीछे की ओर स्थित सरोवर घाट के ऊपर 13 बुंगे स्थित हैं, साथ ही ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ को 10 गुरुओं की ज्योत के रूप में निरूपित किया जाता है, यदि इन सभी अंकों को जोड़ा जाए तो उसका जोड़ कुल 68 होता है।  अर्थात इसे तरह से माना गया है कि श्री दरबार साहिब अमृतसर में स्नान करने से 68 तीर्थ स्थानों का पुण्य प्राप्त होता है।

25. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ मैं प्रतिदिन 6 अरदास (प्रार्थना) की जाती है।  1. गुरु साहिब जी के प्रकाश के पश्चात, ‘श्री आनंद साहिब जी’ का पाठ करने के पश्चात, 2. ‘आसा दी वार’ कीर्तन के भोग के पश्चात, 3.दोपहर 12:00 बजे ‘श्री आनंद साहिब जी’ के पाठ के पश्चात, 4.दोपहर (मध्याह्न काल) 3:00 बजे चरण कमल आरती करने के पश्चात, 5. रहरास साहिब जी के पाठ के पश्चात एवं 6. रात्रि को कीर्तन सोहिला के पाठ के पश्चात।

26. ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’  में महाराजा फरीदकोट के अथक प्रयासों से सन 1930 ईस्वी. में ‘श्री दरबार साहिब जी’ में बिजली के प्रबंध हुए थे।  जिसके लिए विशेष तौर पर दिनांक 29/08/1897 ईस्वी. में एक स्थाई बिजली घर की नींव रखी गई थी।

27.  ’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में चल रहे कीर्तन का प्रसारण प्रत्येक दिवस ब्रह्म मुहूर्त (अमृत वेले) में 4:00 से 6:00 बजे एवं संध्याकाल में 4:30 से 5:30 तक होता है।

28.’श्री हरमंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में ‘रहरास साहिब जी’ के पाठ से पहले, पवित्र ज्योति को प्रज्वलित किया जाता है एवं प्रातः काल ‘आसा दी वार’ कीर्तन के पश्चात इस पवित्र ज्योत को मंगल किया जाता है।

29. ‘श्री हरि मंदिर साहिब, दरबार साहिब जी’ में स्थित लंगर घर दुनिया का सबसे बड़ा सामुदायिक रसोईघर माना जाता है। इसे पूरी तरह से स्वयंसेवकों द्वारा संचालित किया जाता है, जिन्हें ‘सेवक/सेवादार’ कहा जाता है। इस लंगर घर में प्रतिदिन दिन, लगभग 100,000 से 150,000 लोग लंगर घर में प्रतिदिन लंगर ग्रहण करते हैं। त्योहारों और विशेष अवसरों पर यह संख्या और भी बढ़ जाती है। लंगर घर का संचालन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अधीन होता है, जो गुरुद्वारों का प्रबंधन करता है। लंगर घर में पूरी तरह से शाकाहारी भोजन परोसा जाता है, जिसमें आमतौर पर दाल, सब्जी, चपाती और खीर शामिल होते हैं। भोजन बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सभी सामग्री स्वच्छ और उच्च गुणवत्ता वाली होती है। गेहूं, दालें, और अन्य सामग्री अक्सर श्रद्धालुओं द्वारा दान की जाती हैं। लंगर घर में भोजन बनाने, परोसने, और सफाई करने का कार्य पूरी तरह से स्वयंसेवकों/सेवादारों के द्वारा किया जाता है। वे बिना किसी भेदभाव के सेवा करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह श्रद्धालु हो या कोई अन्य, लंगर घर में सेवा कर सकता है। सेवा करने वालों में युवा, वृद्ध, महिलाएं, और पुरुष सभी शामिल होते हैं। लंगर में आने वाले सभी लोग एक साथ, जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं, ताकि समानता का संदेश प्रसारित हो। भोजन करने से पहले हाथ धोना और सिर ढकना अनिवार्य होता है। लंगर घर का वातावरण अत्यंत स्वच्छ और पवित्र होता है। साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है, ताकि सभी को स्वच्छ और पौष्टिक भोजन प्रसादि/लंगर मिल सके। इतने बड़े पैमाने पर भोजन बनाने के लिए आधुनिक रसोई उपकरणों और तकनीकों का उपयोग किया जाता है। हालांकि, कुछ पारंपरिक विधियों को भी संरक्षित किया गया है। श्री हरि मंदिर साहिब का लंगर घर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानवता, सेवा, और समानता का प्रतीक भी है। यह पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि किस प्रकार सेवा और समर्पण के साथ समाज में एकता और सामूहिकता स्थापित की जा सकती है।

सभी संगत (पाठकों) से निवेदन है कि जब भी ‘श्री दरबार साहिब जी’ में दर्शनों के लिए उपस्थित हो तो इस दृष्टिकोण से ‘श्री दरबार साहिब जी’ के नजारे देख कर अनोखे, आत्मिक, अलौकिक सुख का आनंद प्राप्त करें।

नोट–1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।

2. गुरवाणी का हिंदी अनुवाद गुरवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।

साभार– लेख में प्रकाशित गुरवाणी  के पद्यों की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज-विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।

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गुरुवाणी और कर्मकांड: एक विवेचना-(भाग–1)

 

 


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