कारपोरेट कंपनी की एक मीटिंग में सभी डायरेक्टर कॉन्फ्रेंस हॉल में बैठकर किसी महत्वपूर्ण विषय पर गहन विचार – विमर्श कर रहे थे। बहुत माथापच्ची के बाद भी किसी योग्य निर्णय पर सभी डायरेक्टर की आपसी सहमति नहीं बन रही थी। इसी बीच कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर ने एक प्रस्ताव रखा कि चलो कॉफी पी जाए। इस प्रस्ताव को उपस्थित सभी डायरेक्टरों ने एक मत से खुशी से सहमति दी। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर स्वयं उठकर काफी लाने गए। एक ट्रे में कई अलग – अलग डिजाइनों के कपों में कॉफी भरकर वो वापस कॉन्फ्रेंस टेबल पर आए। उन सभी भरे हुए कपों में एक कप पेपर निर्मित था। जब ट्रै को टेबल पर रखा गया तो उपस्थित सभी डायरेक्टरों ने महंगे से महंगा कप उठा लिया और पेपर निर्मित कप स्वयं मैनेजिंग डायरेक्टर को मिला।
जब सारे मिलकर कॉफी पीने लगे तो मैनेजिंग डायरेक्टर ने सभी से कहा कि आप सभी ने महंगे और अच्छे डिजाइन वाले कप ट्रै में से पहले उठा लिए और मुझे पेपर निर्मित कप मिला जबकि सभी ने कप में से पीनी तो काफी ही है। अर्थात् कप का संबंध केवल कॉफी पीने तक था। इसके अतिरिक्त काफी के इन कप की और कोई उपयोगिता नही है।
मेरा एक मित्र रियल स्टेट कंपनी में कार्य करता है और उस कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर एक अंग्रेज है; जिसका नाम थॉमस है। थामस दिलदार और इंसानियत रखने वाला इंसान है। वो हर साल अपनी कमाई में से दस लाख डालर दान करता है परंतु उसने एक सस्ती सी पुरानी टोयोटा की कोरोला कार स्वयं के उपयोग के लिए रखी है। जबकि रियल स्टेट व्यवसाय से जुड़े हुए लोग अपने ग्राहकों को प्रभावित करने के लिए महंगी से महंगी कार रखते हैं। मेरे मित्र ने मुझे एक दिन बताया कि मैंने एक दिन अपने कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर से पूछा कि आप इतने धनवान हो तो आप अपने स्वयं के उपयोग के लिए कोई नई कार क्यों नहीं लेते? थॉमस ने सहज भाव से उसे उत्तर दिया था कि मुझे जहां भी जाना हो, मैं इस अपनी पुरानी कार से पहुंच जाता हूं और मेरी इस कार में अभी तक कोई खराबी भी नहीं है। उसने कहा कि कार की आवश्यकता एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने तक ही होती है। अर्थात् महंगी कार भी मुझे मेरे गंतव्य स्थान तक लेकर जाएगी। ठीक उसी प्रकार से मेरी यह कार भी गंतव्य स्थान तक ले जाएगी। मतलब कार कौन सी है? इस से मतलब नहीं है। मतलब है तो गंतव्य स्थान पर पहुंचने से।
पौराणिक कथाओं के अनुसार मार्कंडेय ऋषि की उम्र बहुत लंबी थी। जब उनसे किसी ने पूछा कि आपने अपने लिए कोई घर क्यों नहीं बनाया? तो उन्होंने उत्तर दिया था कि इस पृथ्वी पर कितने समय तक हम रहने वाले हैं? क्या झोपड़ी? क्या कच्चा घर? और क्या पक्का मकान? बात तो रैनबसेरे की है। सिर पर छत होनी चाहिये; ठंड, गर्मी, और बारिश से बचने के लिये।
घर कैसा भी हो ईंट, पत्थर, सीमेंट और स्टील से बने महंगे घरों का क्या फायदा? यदि उस घर में रहने वाले परिवार में आपसी प्यार व सहयोग ना हो। बात घर के अंदर जिंदगी जीने वालों के जीवन स्तर और उनकी खुशी की है अपितु घर के अंदर रहने वाले व्यक्तियों की भोग विलासिता की नहीं। घर चारदीवारी से नहीं बनता अपितु घर में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा निर्मित परिवार के आपसी मेलजोल से घर बनता है।
तेजी से कमाया हुआ हराम का पैसा भोग – विलासिता और अय्याशी में ही पानी की तरह बह जाता है। इतिहास गवाह है कि अय्याश व्यक्ति कभी भी तृप्त नहीं हो सकता है। इंसान को अंतर्मन का आनंद ही सुख दे सकता है। पैसों की कमाई से आनंद नहीं मिलता है। आनंद तो सेवा-सिमरन और त्याग से प्राप्त होता है। समृद्ध इंसान को संतोषी होना भी जरूरी है।
बच्चे के जन्म से लेकर बुढ़ापे में मरने तक व्यक्ति हजारों रूप बदलता है। कभी हैवान! कभी शैतान! कभी संत और कभी ज्ञानी! कभी चोर और कभी साधु! कभी झूठा और कभी सच्चा! कभी दुखी और कभी सुखी! कभी नाराज कभी खुश! कभी गुस्से में तो कभी प्यार में परंतु जिंदगी केवल एक है। एक बार ही इंसान जन्म लेता है, एक ही बार जिंदगी जीना है और एक ही बार में मर जाना है। इंसान चाहे जितने रूप धारण कर लेवे परंतु जिंदगी का प्रवाह अपने समय से चलता रहता है । बात बाहर की वेशभूषा और झूठी शान की नहीं है अपितु बात अंतर्मन की है। बात यह नहीं है कि हमने क्या किया? बात यह है कि इस जिंदगी के प्रवाह में हमने क्या लिया और क्या दिया? हमने क्या कमाया और क्या गवाया।
इंसान का शरीर एक कॉफी का कप है और इस कप से हमें प्यार रूपी कॉफी पीनी चाहिए थी परंतु हम महंगे डिजाइन वाले कपों के पीछे दौड़ कर प्यार रूपी कॉफी पीनी भूल गये।
बात द्रष्टि की नहीं अपितु दृष्टिकोण की है!