डॉ. रणजीत सिंह ‘अर्श’ को मिला डॉ. शहाबुद्दीन शेख विशिष्ट हिंदी सेवी सम्मान 2025
(प्रयागराज में हिंदी साहित्य सेवा संस्थान के 29वें राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान हुआ अलंकरण)
प्रयागराज। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान (मुख्यालय प्रयागराज, उत्तर प्रदेश) के 29वें राष्ट्रीय अधिवेशन एवं 23वें साहित्य मेले के अवसर पर दिनांक 13 अक्टूबर 2025 को हिंदी भाषा और साहित्य के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर डॉ. रणजीत सिंह अरोरा ‘अर्श’ (पुणे, महाराष्ट्र) को “डॉ. शहाबुद्दीन शेख विशिष्ट हिंदी सेवी सम्मान–2025” से अलंकृत किया गया। सम्मान समारोह में डॉ. अर्श को पारंपरिक अंगवस्त्र, स्मृति-चिह्न और प्रशस्ति-पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया। उपस्थित दर्शकों ने उन्हें खड़े होकर भावभीनी शुभकामनाएं दीं।
यह सम्मान उन्हें हिंदी भाषा, सिख इतिहास और भारतीय सांस्कृतिक चेतना के प्रचार-प्रसार में उनके असाधारण योगदान के लिए प्रदान किया गया। डॉ. अर्श गुरुवाणी और सिख इतिहास पर हिंदी में गहन शोधपरक लेखन, अनुवाद और ऐतिहासिक साहित्य सृजन के लिए विख्यात हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं स्वागत गीत से हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथी डाॅ. सुरेन्द्र कुमार पांडेय (आई. ए. एस.) मंडलायुक्त (से.नि.), विशिष्ट अतिथि डाॅ. नरसिंह बहादूर सिंह प्रोफेसर वनस्पति, इलाहाबाद विश्वविद्यालय (से.नि.), विशिष्ट अतिथि श्री नीलाम्बुज नवीन पांडेय वरिष्ट प्रबंधक, दैनिक जागरण- आई-नेक्स्ट, अध्यक्ष- श्री ओम प्रकाश त्रिपाठी (कार्याध्यक्ष विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, अध्यक्षा-डाॅ. विजया लक्ष्मी रामटेके एवं उपस्थित सम्मानीय साहित्यकारों की उपस्थिती में यह सम्मान प्रदान किया। इस कार्यक्रम की प्रस्तावना- डाॅ. गोलुलेश्वर कुमार द्विवेदी जी ने की एवं आभार प्रदर्शन डाॅ. मुक्ता कौशीक ने किया|
सम्मान ग्रहण करते हुए डॉ. रणजीत सिंह ‘अर्श’ ने कहा-“आज मेरे लिए यह क्षण केवल सम्मान प्राप्ति का नहीं, बल्कि साहित्यिक साधना की सार्थकता का है। यह पुरस्कार मेरे लिए व्यक्तिगत गौरव नहीं, अपितु हिंदी भाषा और भारतीय सांस्कृतिक चेतना के प्रति मेरी निष्ठा की स्वीकृति है।” उन्होंने कहा कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि “आत्मा और संस्कृति की पहचान” होती है। “हिंदी ने सदियों से भारत के विविध समुदायों को एक सूत्र में बाँधा है। आज जब भाषाएँ सीमाएँ पार कर रही हैं, तब भी हिंदी ने विचार, विज्ञान और अध्यात्म-तीनों क्षेत्रों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है।”
डॉ. अर्श ने अपने उद्बोधन में स्वर्गीय डॉ. शहाबुद्दीन शेख को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा-“उनके नाम से यह सम्मान प्राप्त करना मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत है। साहित्य केवल शब्दों का नहीं, बल्कि संवेदना का साधन है-और इसी भावना को जीवित रखना ही सच्ची हिंदी सेवा है।” उन्होंने आगे कहा- “मैं इस सम्मान को उन सभी रचनाकारों को समर्पित करता हूँ, जो निःस्वार्थ भाव से हिंदी सेवा के यज्ञ में अपनी आहुति दे रहे हैं-चाहे वे किसी छोटे कस्बे में हों या बड़े नगर में।”
डॉ. अर्श ने विशेष रूप से संस्थान की अध्यक्षा डॉ. विजया लक्ष्मी रामटेके, सचिव डॉ. गोकुलेश्वर प्रसाद द्विवेदी, निर्णायक मंडल, अपने परिवार, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी, टीम खोज-विचार और अपने सभी पाठकों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने अपने संबोधन के अंत में कहा— “मैं इस सम्मान को रचनात्मक उत्तरदायित्व के रूप में स्वीकार करता हूँ। मेरा संकल्प है कि हिंदी को केवल लेखन की भाषा नहीं, बल्कि जन-जागरण की क्रांतिकारी शक्ति के रूप में आगे बढ़ाएं।
साहित्यकार का कार्य केवल सृजन नहीं, बल्कि संवेदना को समाज से जोड़ना है-और यही मेरी लेखनी का उद्देश्य रहा है।”
कार्यक्रम के समापन पर उपस्थित साहित्य प्रेमियों ने एक स्वर में कहा कि डॉ. रणजीत सिंह अरोरा ‘अर्श’ का यह सम्मान संपूर्ण हिंदी जगत के लिए गर्व का विषय है। उनके साहित्य में विचार, संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। सत्र का समापन “जय हिंदी, जय भारत” के उद्घोष के साथ हुआ, जहाँ पूरा सभागार उत्साह, सम्मान और हिंदी गौरव की भावना से गूंज उठा।