ੴ सतिगुर प्रसादि॥
चलते-चलते. . .
(टीम खोज-विचार की पहेल)
‘गुरु पंथ ख़ालसा’ सर्जना (बैसाखी) पर्व पर विशेष–
13/14 अप्रैल सन् 1699 ई. के वैशाखी पर्व पर करूणा, कलम और कृपाण के धनी दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की सर्जना करते हुए ख़ालसा सजाया था।
इतिहास गवाह है की ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के ख़ालसाई सेवादारों ने अपनी देशभक्ति, निष्ठा, त्याग, समर्पण, सेवा और सिमरन से ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ को दुनिया में एक विशेष आयाम दिया है। दशमेश पिता ने अमृत पान कराकर एक-एक ख़ालसा को सवा लाख से जूझने की शक्ति प्रदान की है। ऐसा क्या विशेष तत्व इस अमृत पान में मौजूद है? की उसे ग्रहण करने से एक अलौकिक, अद्भुत शक्ति ख़ालसे को मिलती है।
इसके लिये हमें दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के जीवन चरित्र को समझना होगा। पंथ के कई महान विद्वान, इतिहासकार, कथाकार और पंजाब की लोक धाराओं में गुरु जी प्रशंसा करते हुये विभिन्न शब्दावली का उपयोग किया है, किसी शायर ने कहा है
जितनी भी तारीफ हो गोबिन्द की वह कम है।
हरचंद मेरे हाथ में पुरज़ोर कलम है।
सतगुरु के लिये कहां ताबे रकम है।
एक आंख से क्या बुलबुला गुरमेहर को देखे।
साहिल को या मझधार को या लहर को देखे।
अकाल पुरख की आज्ञानुसार श्री गुरु नानक देव साहिब जी की दसवीं ज्योत श्री गुरु गोविंद सिंह जी की आयु छोटी थी। आपका जीवन एक बिजली की चमक की तरह था। आसमान में चमकती हुई बिजली की आयु लंबी तो नहीं होती है परंतु जितनी भी होती है उसमें एक कणखर चमक और कर्कश आवाज होती है जो सभी का ध्यान आकर्षित करती है।
दशमेश पिता के जीवन का प्रत्येक पहलू विभिन्नता से परिपूर्ण था। जब आपका प्रकाश (आगमन) पटना साहिब में हुआ तो उस समय के पीर भीखनशाह ने पश्चिम के बजाय पूर्व की और सजदा किया था। गुरु जी की छवि और सद्गुणों वाला स्वरूप अलौकिक था। आप जी की कलगी नुरानी थी, आप जी की कृपाण श्री साहिब और नगाडा़ रणजीत था। जो सुदूर पर्वतों में अपनी गुंज पैदा करता था। गुरु जी ने सत् श्री अकाल का जयकारा दिया साथ ही ख़ालसा को अविनाशी बनाया। आप जी ने देग-तेग फतेह की घोषणा दी और अस्त्र-शस्त्र को पीर माना, आप जी की मोहर केश, घोड़ा नीला, हाथी प्रशादि, बाज सफेद और किर्तनी साज ताऊस था। आप जी के तीर सोने की नोंक के बने हुये थे और क़लम लोह एवं खड्ग सर्व लोह भगवती का था। दशमेश पिता का सर्वोत्तम दान सर्व वंश दान था। आप जी के आशिक अपने परिवार को क़ुर्बान करने वाले पीर बुद्धू शाह और नबी ख़ान, गनी ख़ान जैसे थे। इस महान गुरु का योद्धा भाई विचित्तर सिंह, गुरु जी का संग्राम धर्म युद्ध और चाहत शस्त्रों के साथ जुझ मरना। गुरु जी की इंसानियत भाई कन्हैया और पांच प्यारे शीश तली पर रख कर प्रियतम की राह पर चलने वाले राहगिर। गुरु जी के चालीस मुक्ते अपने लहू से बेदावा फड़वाने वाले और बिखरे समय की यादें ‘मित्तर प्यारे नू हाल मुरिदा दा कहना’। दशमेश पिता का उस अकाल पुरख को शुकराना, चारों साहिबज़ादे शहीद करवा कर कहना …
‘इन पुतरन के सिस पर वार दिये सुत चार,चार मुयें तो क्या हुआ जीवित कई हजार’।
गुरु जी का जीवन कुर्बानी की इंतेहा है। शहीद हुए पिता के शीश का संस्कार, बड़े साहिबज़ादों के शहीद शरीरों के दर्शन, छोटे साहिबज़ादों के शहीद होने की खबर, सर्व वंश को क़ुर्बान करके अकाल पुरख को कहना ‘कमाले करामात कायम करीम, रजा बक्श राजक रहियाकुन रहीम’।
दशमेश पिता का निशाना—
‘जो मंजीले मकसुद धर्म चलावन, संत उबारन दुष्ट सभन को मूल उपारन’।
दशमेश पिता का ज़फ़रनामा वाहिगुरु जी की फ़तेह का ऐलान नामा, अकाल पुरख को निवेदन चौपाई साहिब का पाठ, पूजा अकाल-अकाल, धून तुही-तुही-तुही, दर्शन की लालसा ख़ालसे के दर्शन, अरदास सरबत का भला। गुरु जी का गुरुवाणी के लिये सत्कार आदि ग्रंथ साहिब जी को ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ संबोधित कर सिर झुका देना।
विनम्रता स्वयं की वाणी को अपना खेल कह देना। आपकी सबसे बड़ी कमाई ख़ालसे को वाहिगुरु जी का ख़ालसा बना देना। गुरु जी की जुगती देग-तेग फतेह! उनके दरबार के श्रृंगार कवि, गुणी, ज्ञानी, और विद्वान थे। गुरु जी की बख्शीश बाणी और बाना! हुकुम, रहत की परिपक्वता! बरकत पांच ककार! ताड़ना चार कुरेतिआं! उनके वारिस और विरासत श्री अकाल पुरख के ख़ालसे!
दशमेश पिता की आत्मा ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में, शरीर ‘गुरु ख़ालसा पंथ’ में, वह मालक दोनों जहान के, ‘सब विचित्रमय, सब विचित्र, सब विचित्रता भरपूर ऐसो कौन बली रे’, ऐसे महान परोपकारी गुरु के बारे में यह कहना ही सही होगा।
‘सुपन चरित्र चित्तर बानक बने बचित्तर, पावन पवित्र मित्तर आज मोरे आये है’।
समय-समय के विद्वान, कवि, महापुरुषों ने गुरु जी के जीवन को उपरोक्त लिखित अपनी-अपनी शब्दावली से अलंकृत किया है। ऐसे महान दशमेश पिता गुरु जी ने बैसाखी के दिन ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की सर्जना मानवता के कल्याण और जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने के लिए की थी। साथ ही ख़ालसा सर्जना कर आप स्वयं गुरु जी ने भी पांच प्यारों से अमृत पान कर गुरु और चेलों को एक ही रूप कर दिया है। ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की सर्जना पर दशमेश पिता से अरदास (प्रार्थना) है…
चादर मैली साबण थोड़ा, जद देखा तद रोआं॥
बहुते दाग लगे तन मेरे में कैड़ा-कैड़ा धोवां॥
दागा दी कोई क़ीमत नही, में क्यों हच्ची होआं॥
श्री साहिब मेनु दर्शन देओ, में सच्चे साबण धोआं॥
‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की सर्जना के अतिरिक्त इस दिवस का अत्यंत महत्व है। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार बैसाखी का यह विशेष दिवस निम्नलिखित ऐतिहासिक घटनाओं के कारण ही ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के अनुयायियों के लिए अत्यंत विशेष हो जाता है।
# इस बैसाखी दिवस पर श्री गुरु नानक साहिब जी ने लोक-कल्याण हेतु की जाने वाली चार उदासी यात्राओं को प्रारंभ किया था। कई सिख इतिहासकार श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश (आविर्भाव) भी इसी दिवस पर मानते हैं।
# इस बैसाखी दिवस पर ही गोइंदवाल नामक स्थान पर श्री गुरु अमरदास साहिब जी के भ्राता मानिक चंद जी के द्वारा बाउली (कुएं) में प्रथम कुदाल मारकर, पवित्र जल प्रकट किया गया था।
# गुरु घर के अनन्य सेवक भाई पारो जी जुल्का के निवेदन/विनती पर ही इस बैसाखी दिवस पर श्री गुरु अमरदास साहिब जी ने जोड़ मेला लगाने की आज्ञा प्रदान की थी।
# इस बैसाखी दिवस पर ही श्री दरबार साहिब अमृतसर में दुख: भंजनी बेरी के तले सरोवर में स्नान करते समय बीबी रजनी का पति कोड़ के रोग से मुक्त हुआ था।
# इस बैसाखी दिवस पर ही अष्टम गुरु श्री हर कृष्ण साहिब जी ने अपना अंतिम वचन ‘बाबा-बकाला’ उद्बोधित किया था।
# सन् 1706 ईस्वी. के बैसाखी दिवस पर दशमेश पिता श्री गुरु गोविंद सिंह जी की सरपरस्ती में तख़्त दमदमा साहिब (साबो की तलवंडी) नामक स्थान पर लगभग एक लाख बीस हजार लोगों (प्राणियों) को खंडे-बाटे की पाहुल छकाकर (अमृत पान की विधि) कर ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ में दाखिल किया था।
# इस बैसाखी दिवस पर ही श्री आनंदपुर साहिब जी में बाबा बंदा सिंह बहादुर की सरपरस्ती में एक भव्य समागम आयोजित किया गया था और इस समागम में अमृत संचार कर खंडे-बाटे की पाहुल (अमृतपान की विधि) से उपस्थित संगत को अमृत पान करवाकर ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ में दाखिल किया था एवं भविष्य की पंथक नीतियों पर भी गहन विचार-विमर्श किए गए थे।
# इस बैसाखी दिवस पर सिख जरनैल सरदार जस्सा सिंह जी आहलूवालिया को ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की ओर से ‘सुल्तान-उल-कौम’ का खिताब देकर नवाजा गया था।
# इस बैसाखी दिवस पर ही श्री अमृतसर में ‘राम राउणी’ नामक कच्ची गढ़ी तैयार की गई थी ताकि कठिन समय में इस गढ़ी के माध्यम से दुश्मनों का मुकाबला किया जा सके एवं इसका नाम श्री गुरु राम दास साहिब जी के नाम से प्रेरित होकर ही ‘राम राउणी’ रखा गया था।
# सन् 1801 ईस्वी. में बैसाखी दिवस पर रणजीत सिंह जी को महाराजा का खिताब देकर नवाजा गया था। इसके पश्चात आप महाराजा रणजीत सिंह जी कहलाए।
# सन् 1919 ईस्वी. में इस बैसाखी दिवस पर ही श्री अमृतसर में जलियांवाला बाग का नरसंहार (नस्ल कुशी) हुई थी।
# सन् 1978 ईस्वी. में बैसाखी दिवस पर श्री दरबार साहिब अमृतसर में निरंकारीयों के द्वारा आक्रमण कर 13 निर्दोष सिखों को शहीद किया गया था।
# इतिहास पढ़ने पर यह भी ज्ञात होता है कि इस बैसाखी दिवस पर ब्रह्मांड में सूर्य सबसे ऊंचाई पर रहता है और इसी दिवस विशेष पर चंद्रमा पर इंसान ने अपना प्रथम क़दम रखा था।
‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के जनक दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ महाराज और ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ को सादर नमन अभिवादन!
नोट 1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है एवं लेखों में प्रकाशित चित्र काल्पनिक है।
2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।
साभार— लेख में प्रकाशित गुरुवाणी की जानकारी और अर्थ सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज-विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।
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