गुरु घर की बरकत

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ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

अनुभव लेखन–

चलते–चलते. . .

(टीम खोज–विचार की पहेल)

गुरु घर की बरकत

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

अनुभव लेखन

चलते–चलते. . .

(टीम खोज–विचार का उपक्रम)

अपने संघर्ष के दिनों में नौकरी के सिलसिले में मुझे दुबई स्थित एक किराए की सदनिका में कुछ समय तक पाकिस्तानियों के साथ निवास करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस पुरी सदनिका में, मैं अकेला भारतीय पंजाबी था। जल्द ही में इन पाकिस्तानियों से घुलमिल गया कारण हम सभी की मातृभाषा पंजाबी थी। व्यक्तिगत रूप से मेरे बहुत ही अच्छे और मीठे अनुभव इन पाकिस्तानियों के साथ रहें। मेरे यह अनुभव भारत में निवास करते हुए पाकिस्तानियों के लिए हम भारतीयों की बनी हुई सोच के एक़दम विपरीत थे। यदि मैं अपने खट्टे–मीठे अनुभवों को लिखने की कोशिश करूँ तो मुझे इन अनुभवों को एक श्रृंखला के रूप में लिखना पड़ेगा परंतु मैं एक प्रसंग अवश्य अपने इस अनुभव लेखन के माध्यम से अंकित करना चाहता हूं।

शुक्रवार को जुम्मे की छुट्टी वाले दिन हम सब सदनिका में रहने वाले सदस्य आपस में मिल बैठ कर नाश्ता करते थे। प्रत्येक शुक्रवार को सदनिका में रहने वाला प्रत्येक सदस्य क्रमानुसार अपने खर्चे से मियाँ जी के ढाबे से गरमा–गरम पराठे लेकर आता और उसे गोल रोल बनाकर सतरंगी अचार के साथ स्वाद लगा–लगा कर खाते थे। इन दिनों में सदनिका में एक नव आगंतुक पाकिस्तानी नौजवान लड़का तीन महीने के प्रवासी वीजा पर नौकरी की तलाश में दुबई आया था और हमारे साथ हमारी सदनिका में ही निवास कर रहा था। इस नौजवान लड़के के वीजा के केवल दस दिन ही शेष थे और उसे अभी तक कोई नौकरी नहीं मिली थी। इसलिए वह बहुत परेशान था, उस बेचारे के पास लाए हुए पैसे भी समाप्त हो चुके थे।

एक शुक्रवार को मैंने सदनिका में रहने वाले अपने सभी साथियों से कहा कि मेरे लिए आज नाश्ता मत लेकर आना। मैं आज गुरुद्वारे जा रहा हूं। नाश्ते के रूप में, मैं गुरुद्वारे में ही ‘लंगर’ (भोजन प्रसाद) छक लूंगा। उस समय वह पाकिस्तानी नौजवान वहां मौजूद था। उसने उत्सुकता से मुझ से पूछा कि गुरुद्वारे में क्या उपहार गृह (रेस्टोरेंट) होता है? मैंने मुस्कुराकर उसको समझाया कि गुरुद्वारे में रेस्टोरेंट नहीं होता है। हम सभी ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ को मत्था टेककर, गुरुद्वारे में कीर्तन श्रवण करते है और अरदास (प्रार्थना) कर ‘लंगर’ छकते हैं एवं प्रसादी के रूप में मिलने वाला यह ‘लंगर’ बिल्कुल मुफ्त होता है। उस नौजवान ने कौतूहल से मुझे देख कर कहा भाई जान क्या मजाक कर रहे हो? क्या ‘लंगर’ बिल्कुल मुफ्त होता है?

मेरी हां में हां मिलाते हुए एक–दूसरे पाकिस्तानी ने कहा हां भाई गुरुद्वारों में मिलने वाला ‘लंगर’ बिल्कुल मुफ्त होता है। मैंने पाकिस्तान में स्थित ‘ननकाना साहिब’ गुरुद्वारे के संबंध में पाकिस्तान में सुन रखा है। उस पाकिस्तानी नौजवान ने बहुत ही हैरानी से आश्चर्यचकित होकर एक बार फिर मुझसे पूछा बिल्कुल मुफ्त! चाहे जितना मर्जी खाओ! मैंने उस नौजवान को उत्तर दिया हां बिल्कुल मुफ्त! पेट भर के खाओ। मैंने उस नौजवान का मुस्कुराते हुए बहुत ही आत्मीयता से उसका हाथ पकड़ा और उसे आमंत्रित कर कहा, चलो मेरे साथ मैं तुम्हें गुरुद्वारे लेकर चलता हूं कारण मैं जानता था कि उसके पास पैसे समाप्त हो चुके हैं। भोजनालय में से आए हुए एक बार के भोजन के टिफिन को वह तीन बार खाता था। उस नौजवान ने फिर मुझसे पूछा क्या गुरुद्वारे में मुसलमान भी जाकर ‘लंगर’ खा सकते हैं? मैंने उसे उत्तर दिया हां बिल्कुल खा सकते हैं और उसकी सहमति लिये बिना ही मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे साथ लेकर मैं जेबेल अली नामक स्थान पर स्थित गुरुद्वारा ‘गुरु नानक दरबार’ में पहुंच गया।

जब हम गुरुद्वारा ‘गुरु नानक दरबार’ पहुंचे तो गुरुद्वारे की आलीशान इमारत देखकर उसने अचंभित होकर दांतों तले उंगली को दबा लिया और मुझसे कहना लगा कि भाई जान यह आप मुझे कहां लेकर आ गये? वह आशंकित होकर गुरुद्वारा साहिब जी में प्रवेश करने के लिये हिचकिचा रहा था, मैंने आत्म विश्वास से उसका हाथ पकड़ा और हम दोनों ने गुरुद्वारे में प्रवेश किया।

मैंने गुरुद्वारे में पहुंचकर उसको सुचना दी कि हमारे जूते हमने गुरुद्वारे में बने हुये जोड़ा घर में जमा करने हैं एवं हाथ स्वच्छ धोकर, सिर पर रुमाल बांधकर अंदर जाना है। मैंने वहां पर रखे हुए टोकरे में से एक रुमाल लेकर उसके सिर पर अच्छे से बांध दिया था। जब हम ऊपर मत्था टेकने जा रहे थे तो मैंने उसे हाथ के इशारे से ‘लंगर’ हाल को दिखाया। वहां पर उपस्थित सभी संगत (श्रद्धालु) एक कतार में बैठकर ‘लंगर’ छक रहे थे। जब हम ऊपर दीवान हॉल में पहुंचे तो मैंने नमन करते हुये उसे दीवान हाल में पालखी में सजे हुए ‘श्री गुरु ग्रंथ साहब जी’ को दिखाया, दीवान हाल में रागी जत्था गुरमत संगीत अनुसार किर्तन कर रहे थे। किर्तन में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में अंकित बाणी का पठन कर किर्तन चल रहा था, हारमोनियम और तबले से उत्पन्न मधुर संगीत ने संगत (श्रद्धालुओं) का समां बांध कर रखा हुआ था इस रमणीक नजारे और किर्तन को सुनकर निश्चित ही कोई भी परेशान इंसान एक अजीब से शांती को महसूस करेगा। मैनें उससे कहा कि हम इनके आगे सिर झुका कर सजदा करते हैं। उस पाकिस्तानी नौजवान ने कहा भाई जान बुरा मत मानना हम मुस्लिम लोग अपने धर्म को छोड़कर किसी और के आगे सजदा नहीं करते। मैंने उससे कहा कि मैं समझ सकता हूं। तुम हॉल में बैठो मैं मत्था टेक, अरदास (प्रार्थना) कर के आता हूं। पंद्राह मिनट पश्चात जब मैं मत्था टेककर वापस आया तो वह अपने मोबाइल से गुरुद्वारा साहिब जी की अनेक विशेष कोणों से फोटो खींच रहा था और सेल्फी लेकर, प्रसन्नचित्त होकर अपने आपको अभिभूत कर रहा था। मैनें अपने हाथों से कडा़ प्रसादि, उसे दोनों हाथों में लेने के लिये कहा और उसने तुरंत ही अपने दोनों हाथ मेरे आगे बड़ा दिये थे। कडा़ प्रसादि ग्रहण करवा कर मैं उस नौजवान को गुरुद्वारे के ‘लंगर’ हॉल में लेकर आ गया। मैं अच्छी तरह से उस नौजवान की भूख से व्याकुल स्थिति को समझ सकता था।

हम दोनों गुरुद्वारे की पंगत में चौकड़ी मारकर एक कतार बैठ गए। हमारे सामने ‘लंगर’ ख़ाने की थालियां लग चुकी थी। मैंने चाटुकारिता करते हुए हंसकर उस से कहा कि गले तक पेट भर जाए तब तक तुम खा सकते हो। उसने भी अपने पेट पर हाथ फेरकर मुस्कुराते हुए कहा भाई जान आप देखते ही जाओ! हमारे इस वार्तालाप के बीच गुरुद्वारे के सेवादारों ने हमारी थालियों को लंगर के प्रसादी से भर दिया था। उसकी वेशभूषा से गुरुद्वारे के सेवादार भी समझ गए थे कि वह भारतीय नहीं है, शायद इसी कारण से सेवादार सेवा करते हुए उसका विशेष ध्यान रख रहे थे और बहुत ही प्यार से उसे ‘लंगर’ ग्रहण करने के लिए बार बार आग्रह कर रहे थे। उसने भी पेट भर के ‘लंगर’ खाया उसकी भूख की व्याकुलता को देखकर सेवादार भी समझ गए थे कि उसने कई दिनों से ठीक से ख़ाना नहीं खाया है।

‘लंगर’ छक कर जब हम बाहर आए तो एक सेवादार ने उसे लंगर का एक पार्सल भी पकड़ा दिया और बड़ी विनम्रता से उससे निवेदन किया की जब भी उसे भूख लगे तो वह इस स्थान पर आकर ‘लंगर’ छक सकता है और साथ ही ‘लंगर’ का पार्सल भी ले जा सकता है। वह आश्चर्यचकित होकर सारे नजारे देख रहा था। जब हमने जोड़े घर से अपने जूते वापस लिए तो वह यह देखकर अत्यंत हैरान और प्रसन्न था कि उसके जूतों को बहुत ही अच्छी तरह से साफ करके पालिश कर दिया गया था।

जब मैं उसका रुमाल वापस रखने के लिए उतारने लगा तो उसी समय दीवान हाल में कीर्तन करते हुए रागी जत्थे ने अपनी मधुर आवाज में एक सबद (पद्य/अभंग) आरंभ किया, जिसके बोल थे

अवलि अलह नूरु उपाइआ क़ुदरति के सभ बंदे॥

एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे॥ 

           (अंग क्रमांक 1349)

इस सबद (पद्य/अभंग) को पढ़ते हुए रागी सिंह ने अवलि अलह के सुर को ठीक उसी प्रकार से उच्चारित किया था जैसे मस्जिद में कोई मौलवी अजान देते समय उच्चारित करता है।

उसने मुझसे कहा भाई जान रुकिये! मैंने हैरानी से पूछा अब क्या है? कहने लगा भाई जान एक बार फिर से ऊपर दीवान हाल में जाना चाहता हूं। मैंने कहा, क्या तुम्हे और फोटो खींचने है? वह पाकिस्तानी नौजवान सजल नेत्रों से कहने लगा नहीं भाई जान ऐसा नहीं है, यह जगह कोई आम स्थान नहीं है। मेरे परेशान मन को इस स्थान पर आकर बहुत सुकुन मिला है एवं रागी सिंह के द्वारा अभी–अभी गाये हुए सबद (पद्य/अंभग) का मैं अर्थ भी जानना चाहता हूँ। उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे दीवान हाल की और ऊपर लेकर जाने लगा एवं उसने कहा कि असल में यह स्थान तो जन्नत है। यहां सभी मुफ्त में लंगर खा रहे हैं, बांटने वाले भी खुलकर बांटे जा रहे हैं, ख़ाने वाले पेट भर के खा रहे हैं और तो और सभी ज़रूरतमंदों को पार्सल भी दिया जा रहा है। उसकी देह बोली ने विस्मय बोध में आकर मुझसे कहा ‘इस गुरु घर में इतनी बरकत’!

उस नौजवान ने कहा कि मैं यहां से बिना सजदा करे वापस नहीं जाना चाहता हूं। भाई जान हम ऊपर दीवान हॉल में पुनः चलते है। मैं भी तुम्हारे जैसा इस गुरु घर में मत्था टेकना चाहता हूं। हम पुनः ऊपर गए और उस नौजवान ने ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ को सजदा किया एवं उस नौजवान ने हेड ग्रंथी साहिब जी को मिलकर रागी सिंह द्वारा दीवान हाल में जो सबद (पद्य/अभंग) गाया जा रहा था उसे लिखकर उसका अर्थ भी जाना, जो कि इस प्रकार है

अवलि अलह नूरु उपाइआ क़ुदरति के सभ बंदे॥

एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे॥

(अंग क्रमांक 1349)

अर्थात वह ऊर्जा जो अति सूक्ष्म तेजोमय, निर्विकार, निर्गुण, सतत है और अनंत ब्रह्मांड को अपने में समेटे हुए हैं। किसी भी तंत्र में उसके लिये एक सिरे से उसमें समाहित होती है और एक या ज़्याद सिरों से निष्कासित होती है। जिस एक नूर से सृष्टि की उत्पत्ति हुई वह हीं प्रभु–परमेश्वर और अल्लाह है। हम सभी उसी के बंदे हैं। इसलिए हम अलग–अलग कैसे हो सकते हैं? इस सृष्टि के निर्माता ने तो प्राकृतिक रूप से हमें एक जैसा बनाया है।

भरपेट ‘लंगर’ छकने के पश्चात उस नौजवान का सुकून और उसे प्राप्त शांति को देखकर मेरा दिल भर आया और मैं सोचने लगा कि ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने यह कैसा, अनोखा प्रेम वाला धर्म बनाया है? जहां पर हर ‘मजहब’ के लोग श्रद्धा से स्वयं ही अपना शीश झुका देते हैं! शायद यही मेरे देश की गंगा–जमुना तहजीब है। शायद इसलिए पुरे विश्व की मानव जाति हमें विशेष निगाहों से सम्मानित कर ‘विश्व गुरु’ के रूप में देखना चाहती है। निश्चित ही मैंने भी ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की सांझीवालता का प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया था।

नोट—1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।

2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।

साभार— लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज–विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।

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शहीद

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