गुरमत साहित्य के कोहिनूर: ज्ञानी ज्ञान सिंह जी

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ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
चलते–चलते. . . .
(टीम खोज–विचार की पहेल)

प्रासंगिक—

(ज्ञानी ज्ञान सिंह जी के 200वें वर्ष जन्मोत्सव पर विशेष)–

गुरमत साहित्य के कोहिनूर: ज्ञानी ज्ञान सिंह जी

(संक्षिप्त परिचय)

सचै मारगि चलदिआ उसतति करे जहानु||

        (अंग क्रमांक 136)

अर्थात् संसार उनकी ही महिमा करता है जो सद्मार्ग पर विचरण करते है|

गुरुवाणी की उपरोक्त पंक्तियों को सारगर्भित कर ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के अनुयायी, आज हम एक ऐसे महान युगांतकारी इतिहासकार को नमन कर अपने श्रृद्धा के सुमन अर्पित कर रहा है उन्होंने अपने समय तक के सिख इतिहास को एक सूत्र में पिरोने के लिये वर्तमान समय से 200 वर्ष पूर्व देश–विदेश में देशाटन कर अनमोल सिख इतिहास की प्रत्येक विधा को एकत्रित कर, अपने साहित्यिक ज्ञान का सदुपयोग कर, संपूर्ण सिख इतिहास को रचित किया था| ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के महान युगांतकारी इतिहासकार, ज्ञानी ज्ञान सिंह जी गुरमत साहित्य के स्वर्णिम इतिहास को सृजित करने वाले ऐसे प्रथम इतिहासकार के रूप में आप जी को चिन्हित किया गया है, जिन्होंने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में, अत्यंत कष्टों को सहन कर, इस संपूर्ण इतिहास की सर्जना की है। आप जी का अवतरण 18 अप्रैल सन् 1822 ई. को लोंगोवाल गांव (सुबा पंजाब) में सरदार भाग सिंह के निवास स्थान पर माता देसन (देस कौर) जी की कोख से हुआ था। आप जी ने दीर्घायु प्राप्त कर देश–विदेशों में देशाटन किया था| आप जी ने संपूर्ण भारत वर्ष की पैदल यात्रा की थी और ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ का परचम शान से लहराया था। ज्ञानी ज्ञान सिंह जी का अधिकांश जीवन सिख इतिहास सामग्री के संग्रह और लेखन का विवरण देने में व्यतीत हुआ था और तो और कुछ ऐतिहासिक जानकारीयों को आपने काव्यात्मक रूप में रचित किया है, ज्ञानी ज्ञान सिंह जी ने अपने समय तक संपूर्ण सिख इतिहास को लिखकर ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की जो महान सेवा की वह अतुलनीय है|

ज्ञानी ज्ञान सिंह जी ने अपनी स्वर्णीम लेखनी में शहीद भाई मणी सिंह जी के वंशज होने का दावा किया था। कुशाग्र बुद्धि के ज्ञानी ज्ञान सिंह जी ने बचपन से ही गुरुवाणी को विशुद्ध रूप से कंठस्थ करना प्रारंभ कर दिया था और वह बचपन से ही अत्यंत ही सुरीली आवाज में गुरुवाणी का पाठ (पठन) किया करते थे। ज्ञानी ज्ञान सिंह उर्दू, फारसी, संस्कृत, ब्रज और गुरुमुखी भाषा के भी उत्तम विद्वान थे। अपनी 13–14 वर्ष की आयु में आप जी अपने चाचा करम सिंह जी के साथ लाहौर दरबार पहुंचे और जब शेरे–ए–पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी ने उनके मुख से सुरीली आवाज में गुरुवाणी का श्रवण सुना तो शेरे–ए–पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी अत्यंत खुश हुए और लाहौर दरबार में ज्ञानी जी को दैनिक सुखमनी साहिब के पठन करने का दायित्व देकर दरबार की सेवा करने का अवसर प्रदान किया था। शेरे–ए–पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी के अनुरोध पर, आप जी ने 6 साल तक महाराजा के दरबार में सुखमनी साहिब के पाठ (पठन) का दायित्व निभाया था। शेरे–ए–पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी की मृत्यु के पश्चात, जब सिख साम्राज्य अंग्रेजों के अधिन चला गया तो आप जी अपने पैतृक ग्राम में पुन: पधारे गये थे, इसके बाद ज्ञानी, ज्ञान सिंह जी पटियाला राज्य की सेना में शामिल हो गए। जब ज्ञानी, ज्ञान सिंह जी अपनी सेना के साथ बांगरूआ के विद्रोह को दबाने के लिए, युद्ध के मैदान में जौहर दिख़ाने गये तो ज्ञानी ज्ञान सिंह जी की जांघ में गोली लगी थी, जिसके कारण आप जी सेना से निवृत्त हो गये थे पश्चात उन्होंने निर्मले पंथ में प्रवेश कर अपनी अनमोल सेवाएं ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ को अर्पीत करना चाही तो आप जी के मार्गदर्शक पंडित तारा सिंह नरोत्तम जी ने ज्ञानी ज्ञान सिंह को सिख इतिहास को विस्तार से रचित करने के लिए उत्साह देकर प्रेरित किया था।

गुरुवाणी का फरमान है—

गुरमुखि खोजत भए उदासी||

दरसन कै ताई भेख निवासी||

  (अंग क्रमांक 939)

अर्थात् हम गुरुमख संतों की खोज में उदासी बने है और संतों–महापुरुषों के दर्शन के लिये यह भेष धारण किया हुआ है| गुरुवाणी के उपरोक्त फरमान के अनुसार आप जी ने साधु का वेश धारण कर लिया और पंडित तारा सिंह नरोत्तम जी से प्राप्त प्रेरणा से ज्ञानी ज्ञान सिंह जी ने पंथ प्रकाश, तवारिख गुरु ख़ालसा, तवारिख शमशेर ख़ालसा, तवारिख राज ख़ालसा जैसी बहुमूल्य रचनाएं ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ को अर्पित की थी। इसके बाद 25 अन्य पुस्तकें गुरधाम संग्राह, निर्मल पंथ परदीपका, रिपुदमन प्रकाश, भूपिंद्रा नंद, इतिहास रियासत बागड़ीआ, तवारिख अमृतसर, तवारिख लाहौर, सूरज प्रकाश वारतक, तीन रासां, इतिहास भाई रूपचंद, रामायण भाई मणी सिंह, फूल माला रामायण, गुरपुरब प्रकाश कंवल फूल माला, अमृत प्रकाश, नीति प्रकाश, कथा पुराण माशी बाबा पूरबणां, अनिक प्रकाश, देहावली, प्रश्नोत्री, ख़ालसा धरम पतित पवन, भेख प्रभावक में ज्ञानी जी ने स्वयं की आत्मकथा लिखी थी। ज्ञानी जी ने लगभग 48 वर्षों तक पूरे भारत और अन्य देशों में देशाटन किया और ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के इतिहास की बड़ी शिद्दत से खोज की। ज्ञानी जी ने अपना पूरा जीवन ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के बहाने में बिताया और 24 सितंबर सन् 1911 ई. को नाभा नामक (सुबा पंजाब) पर अपनी सांसारिक यात्राओं संपूर्ण कर गुरु चरणों जा विराजे। ज्ञानी जी ने अपने संपूर्ण जीवन में 34 ग्रंथों की सर्जना की थी, इस अत्यंत अनमोल साहित्य में से कुछ ग्रंथों का प्रकाशन ही बहुत पहले ना के बराबर हुआ था| आप जी के द्वारा सिख इतिहास और गुरुवाणी पर आधारित विविध विषयों पर लिखे यह ग्रंथ अत्यंत बहुमुल्य है| भविष्य में ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के महान इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी खोजी (मार्ग दर्शक— टीम खोज–विचार) के मार्ग दर्शन में इस संपूर्ण साहित्य को एकत्र कर पुन: गुरुमुखी, अंग्रेजी और हिंदी में ‘अर्श प्रकाशन’ के माध्यम से प्रकाशित करने का मानस है| इस महान सेवा को प्रतिबद्धता से निभाने के लिये ही पटियाला के सिद्धूवाल नामक स्थान पर ज्ञानी ज्ञान सिंह जी के स्मर्णार्थ एक अत्याधुनिक सिख इतिहास और गुरुवाणी के अनुसंधान का केन्द्र का निर्माण किया जा रहा है, जिसके की मोहरी गड्ड (नींव पत्थर) का भव्य–दिव्य कार्यक्रम 10 अप्रैल 2022 ई. को ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की अनेक हस्तियों की मौजूदगी में संपन्न हो चुका है| भविष्य में इस केंद्र में उभरते हुए नवोदित लेखक, इतिहासकार और विद्यार्थियों को एक ठोस मंच इस माध्यम से उपलब्ध होगा|

आज के इस विशेष दिवस पर ज्ञानी ज्ञान सिंह जी की रचनाओं के संबंध में आम संगत को जानकारी अवश्य प्रदान करनी चाहिये| शीघ्र ही टीम खोज विचार की और से इस संबंध में एक पुस्तक “गुरुमत साहित्य के कोहिनूर: ज्ञानी ज्ञान सिंह जी” का प्रकाशन गुरुमुखी, हिंदी और अंग्रेजी में किया जायेगा| ज्ञानी ज्ञान सिंह जी के साहित्य को गुरु पंथ ख़ालसा के सभी विद्वानों और साहित्यकारों ने पूर्वावलोकन कर, इस संपूर्ण साहित्य को पुन: अनेक भाषाओं में प्रकाशित कर, इस साहित्य की संपूर्ण जानकारी आम संगत तक प्रदान करना, सचमुच उनके प्रति सच्ची श्रद्धा के सुमन अर्पित करने के जैसा होगा|

नोट– 1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।

2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।

साभार लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज–विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।

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हरि नामु पदारथु नानकु माँगै॥

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