कोरोना संक्रमण का अंत

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आज पूरी दुनिया में हर शख्स टकटकी लगाकर कोरोना वैक्सीन का बेचैनी से इंतजार कर रहा है। इस वक्त मैं कहां पर कितने कोरोना संक्रमित हुए है? या कितने लोगों की कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गई? या कोरोना संक्रमित के देश में क्या आंकड़ा है? इन सभी खबरों को नजरअंदाज कर प्रत्येक व्यक्ति टीवी पर या सोशल मीडिया के माध्यम से केवल यह जानना चाहता है कि कोरोना वैक्सीन कब लांच होगी? हर घर में केवल एक ही चर्चा है कि कौन सी कंपनी की वैक्सीन, ट्रायल के किस स्टेज पर है? वैश्विक महामारी कोरोना ने इतिहास की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माण की दौड़ को जन्म दे दिया है। डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुसार पूरी दुनिया में कोरोना वैक्सीन के निर्माण में अलग–अलग 160 कंपनियां इस कोरोना वैक्सीन निर्माण की घुड़दौड़ में शामिल है। दरअसल कोरोना वैक्सीन बनाना कोई आसान काम नहीं है। इसके निर्माण की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। वैज्ञानिक कई अलग–अलग स्तर पर अलग–अलग रासायनिक परीक्षण विधियों से वैक्सीन का परीक्षण करते है; तब कहीं जाकर एक या दो फार्मूले सफल होते है।

पाठकों की जानकारी के लिए जिस तरह से पुणे शहर ‘इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी’, ऑटोमोबाइल्स निर्माण क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थान, कंप्रेसर और जनरेटर निर्माण में देश में अग्रसर है। उसी तरह पूरी दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माण की कंपनी ‘सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया’ पुणे में स्थित है। आज पूरी दुनिया में दी जाने वाली वैक्सीन में से हर दूसरी वैक्सीन ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ में निर्मित है। इस कंपनी के निर्माण में आदरणीय सायरस पूनावाला और उनके सुपुत्र कंपनी के सी.ई.ओ. आधार पूनावाला का बहुमूल्य योगदान है।

मृदुभाषी सायरस पूनावाला जी विशिष्ठ पारसी परिवेश में जीवन व्यतीत करने वाले हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के व्यक्तित्व के धनी हैं। आप जी आदरणीय ‘लोकनायक राष्ट्रवादी कांग्रेस के संस्थापक अध्यक्ष श्री शरद पवार जी’ के वर्ग मित्र हैं। स्वयं के व्यक्तिगत संग्रहालय में दुनिया के सर्वोत्तम चित्रों की कलाकृति को संजो कर रखने वाले महान कलाकार हैं। दुनिया की सर्वोत्तम स्पोर्ट्स कार का संग्रहालय आपके शौक की एक और अन्य विशेषता है। सायरस पूनावाला स्वयं के प्राइवेट जेट में सफर करने वाले देश के चौथे सबसे अमीर व्यक्ति हैं।

सायरस पूनावाला जी का खानदानी व्यवसाय घोड़े पालना है। स्वयं की मालकी का स्टड फार्म, घोड़ों की दौड़ और उनका पालन पोषण एवं उत्तम प्रजाति के घोड़ों की प्रजनन प्रक्रिया द्वारा घोड़े को जन्म देना; इसी शौक को आपने अपना व्यवसाय भी बना रखा है। ब्रिटिशों के जाने के बाद भारतीयों को घोड़े की रेस में रुचि नहीं रह गई थी। इस पूरे बड़े कारोबार की देखरेख करना, दिन–ब–दिन मुश्किल होता जा रहा था। ऐसे विकट समय में लोनावाला से लेकर पुणे तक फैली कई एकड़ जमीनों की देखरेख एवं हजारों घोड़ों का रखरखाव यह कोई मामूली काम नहीं था।

सन् 1960 ई. के दशक में इस व्यवसाय को बंद करने का मन में विचार था। इसी दरम्यान इस समूह ने भारत में स्पोर्ट्स कार बनाकर बेचने का उद्योग भी प्रारंभ किया था परंतु उस समय रईसों के शौक वाले इस व्यवसाय को भारतीय अमीरों ने सिरे से नकार दिया था। भारतीयों की स्थायी तड़क-भड़क (LOCAL FLAMBOYANT) वाली जिंदगी की कभी भी इस तरह की मानसिकता नही रही है।

सर सायरस पूनावाला घोड़ों की दौड़ से रिटायर्ड घोड़ों को अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में हाफकिन इंस्टीट्यूट को दान कर देते थे। वैक्सीन तैयार करने के लिए घोड़ों के रक्त को ‘बेस’ के रूप में उपयोग किया जाता है। सर सायरस पूनावाला जी ने हापकिन के एक पशु चिकित्सा वैज्ञानिक से तैयार की जाने वाली वैक्सीन के गुण धर्म को समझ कर लिया। उसी समय साइरस पूनावाला जी को ध्यान में आया कि आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में बोझ बने हुए यह घोड़े ही उत्तम प्रगति का मार्ग बनेंगे। घोड़ों के रक्त से एंटीटॉक्सिन तैयार करने की पुरानी विधि को आप जी ने आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ दिया।

सन् 1966 ई. में पुणे में ‘सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया’ की स्थापना हुई। स्वयं के स्टड फार्म में हजारों घोड़े थे। जिनके रक्त से ‘सीरम’ ने आधुनिक निर्माण प्रणाली को अपनाकर सर्वोत्तम दर्जे की वैक्सीन का निर्माण प्रारंभ कर दिया।

सन् 1974 ई. में ‘सर्पदंश’ के लिए अति उपयुक्त वैक्सीन का निर्माण किया। पश्चात ‘सूखी खांसी’ के लिए वैक्सीन का निर्माण किया। सन् 1981 ई. में ‘सर्पदंश’ की वैक्सीन विश्व विख्यात हो गई। आज 100 से अधिक देशों में ‘सीरम’ की ‘सर्पदंश’ की वैक्सीन का निर्यात हो रहा है। आज विश्व में पैदा होने वाले हर दूसरे बच्चे को ‘सीरम’ निर्मित वैक्सीन का इंजेक्शन लगाया जाता है।

सन् 1960 ई. के दशक में घोड़ों के व्यवसाय से संबंधित पूनावाला समूह आज प्रत्येक वर्ष 50 करोड़ से भी ज्यादा वैक्सीन का उत्पादन करता है। आज पूनावाला समूह की संपत्ति 15 अरब डॉलर से भी अधिक है ‘सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया’ ने यूरोप की दो प्रमुख वैक्सीन निर्माण कंपनियों को भी खरीद लिया है। आज दस हजार करोड़ डॉलर से भी अधिक का टर्नओवर करने वाली कंपनियों में ‘सीरम’ का नाम अंकित है। ‘सिरम’ प्रत्येक वर्ष डेढ़ अरब वैक्सीन के डोज बनाने की क्षमता रखती है। आज दुनिया ने चाहे जितनी प्रगति कर ली है परंतु आज दुनिया को वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए जो वैक्सीन ईजाद हुई है उसका निर्माण ‘सीरम’ पुणे में होगा। चाहे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के द्वारा ईजाद की हुई COVISHILS हो या अमेरिकन कंपनी NOVAVAX के द्वारा ईजाद की गई वैक्सीन NVX–COV2373 हो सभी का उत्पादन ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ पुणे में होगा।

‘सिरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया’ द्वारा निर्मित वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण की वैक्सीन को बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से पूरे विश्व के 90 देशों में केवल 3 डॉलर में बेचा जाएगा अर्थात भारत के स्थानीय बाजारों में इसकी कीमत महज रुपये 225 से रुपये 250 तक की होगी। इस सस्ती कीमत पर विश्व में इस वैक्सीन को मुहैया कराने के लिये ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने 15 करोड़ डॉलर का जोखिम रहित धन दान देकर मुहैया करवाया है।

यदि आप परिवार और मित्रों के समेत लोनावला घूमने जाएं और पूनावाला स्टड फार्म पर ‘बेफाम’ दौड़ने वाले घोड़े नजर आए तो उन्हें नमस्कार करना मत भुलिएगा कारण इन ‘बेफाम’ दौड़ने वाले घोड़े की रक्त वाहिनियों में दौड़ने वाला रक्त ही वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से पूरी दुनिया को आजाद कराने वाला है।

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