कुर्बानी की अमिट मिसाल बेग़म ज़ेबुलनिशा
यदि हम सिख इतिहास का अवलोकन करें तो सिख धर्म के छठे गुरु, श्री गुरु हरगोविंद साहिब को जब जहाँगीर के द्वारा ग्वालियर के क़िले में क़ैद करके रखा गया था तो आप जी ने अपने विशेष प्रयासों से उस समय देश के 52 राजाओं को जो जहाँगीर की क़ैद में थे उन सभी को आज़ाद करवाया था।
इन 52 राजाओं में से एक केल्हूर का पहाड़ी राजा दीपचंद भी था। समय तेजी से बीत रहा था। जब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, श्री गुरु नानक देव साहिब की नौवीं ज्योत के रूप में गुरु गद्दी पर विराजमान थे तो उस समय राजा दीपचंद का देहांत हो गया था। राजा दीपचंद के पूरे परिवार की गुरु घर के प्रति अत्यंत श्रद्धा और सम्मान था। राजा दीपचंद के उठामना (भोग) में गुरु पातशाह जी को केल्हूर राज्य में आमंत्रित किया गया था।
जब गुरु जी केल्हूर में थे तो राजा दीपचंद की पत्नी ने गुरु पातशाह जी से हाथ जोड़कर निवेदन किया कि पातशाह जी आपने हम पर असीम कृपा की हैं। हम आपकी सेवा करना चाहते है। उस समय श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने रानी साहिबा से उनके कुछ इलाके की ज़मीन को खरीदने की पेशकश की थी। गुरु जी ने अपनी दूरदृष्टि का परिचय देते हुए रानी साहिबा से स्वयं का पसंद किया हुआ इलाका दान स्वरूप या भेंट स्वरूप नहीं लिया था, अपितु उस इलाके को खरीदने के लिए 500 मोहरें रानी जी को देकर उस जगह के पंजीकरण (जरा पट्टे) को लिखवा कर लिया था।
माखोवाल नामक स्थान पर ग्राम सोहोटा में मोहरी गड्ड (नींव का पत्थर) रखकर इस नवीन स्थापित जगह को चक नानकी नगर से संबोधित किया गया था। इस चक नानकी नामक स्थान का कालांतर में नाम श्री आनंदपुर साहिब हो गया था। रानी साहिबा का गुरु घर से अत्यंत निकट का प्रेम और स्नेह का संबंध था और वह हमेशा श्री आनंदपुर साहिब में गुरु दरबार में हाज़री भरने आती-जाती रहती थी। रानी साहिबा की एक गोली (दासी) थीं। जिसका नाम बीबी सुभागों था और बीबी सुभागों रानी साहिबा के साथ अपनी भागों नामक बेटी के साथ अक्सर श्री आनंदपुर साहिब में आती-जाती रहती थी। सुभागों की बेटी भागों ने श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब के दर्शन किए थे और माता गुजर कौर एवं श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के दर्शन कर उनका आशीर्वाद भी प्राप्त किया था साथ ही दासी सुभागों की बेटी भागों गुरु घर की श्रद्धालु भी थी। जब दासी सुभागों की बेटी भागों जवान हुई तो राजपूत घराने की होने के कारण एवं इसका लालन-पोषण महलों में होने के कारण भागों सुंदर और संस्कारी थी। जब इसका विवाह किया गया तो बस्सी पठान नामक स्थान पर इसके विवाह के डोले को वज़ीर खान के सिपाहियों ने लूट कर डोले में बैठी नववधू भागोंं को वज़ीर खान के सम्मुख पेश किया था।
इस नववधू भागोंं का पालन-पोषण महलों में हुआ था। इसलिये नववधू सुशील एवं संस्कारों वाली थी। वज़ीर खान इसकी सुंदरता पर फ़िदा हो गया और बल प्रयोग कर उसने इसका धर्म परिवर्तन कर दिया था। इस्लाम धर्म में शामिल होने के पश्चात इसका नाम ज़ेबुलनिशा रख दिया गया था। इस ज़ेबुलनिशा से ज़बरदस्ती वज़ीर खान ने निक़ाह किया था और सुंदर-सुशील भागोंं अब बेग़म ज़ेबुलनिशा हो चुकी थी वज़ीर खान और ज़ेबुलनिशा के घर में दो पुत्रों का जन्म भी हुआ था। भविष्य में समय चक्र अनुसार साहिबज़ादे जोरावर सिंह एवं साहिबज़ादे फतेह सिंह को क़ैद करके सरहिंद के ठंडे बुर्ज़ में रखा था। उस समय से ही इस बीबी भागोंं अर्थात् बेग़म ज़ेबुलनिशा ने अपने शौहर का विरोध करना प्रारंभ कर दिया था। इस बेग़म ज़ेबुलनिशा ने अपने शौहर वज़ीर खान को समझाकर कहा था कि लोग गुरु जी को मत्था टेकते हैं। और आप ने गुरु जी से मत्था लगा लिया है। इस बेग़म ज़ेबुलनिशा ने वज़ीर खान का पुरज़ोर विरोध किया था। जब माता गुजरी जी ठंडे बुर्ज़़ में साहिबज़ादों के साथ कै़द थी तो इसने दूर से माता जी का अभिवादन भी किया था। इस बेग़म ज़ेबुलनिशा ने अपनी देह बोली से माता जी के सम्मुख आँखों ही आँखों में अपनी मजबूरी को प्रकट किया था। जब छोटे साहिबज़ादों को दीवार में चिनवाकर शहीद करने का फ़तवा जारी किया गया तो बेग़म ज़ेबुलनिशा अपने अच्छे संस्कारों से पुनः बीबी भागोंं में परिवर्तित हो गई थी। बीबी भागोंं ने वज़ीर खान का खुलेआम डटकर विरोध कर कहा था कि पापी तेरे को तेरे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ेगा। जिस तरह से तुम ने माता गुजरी जी और श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब को विरहा की अग्नि में झोंका है, तुझे भी उस विरहा की अग्नि में जलना होगा और इस विरहा की अग्नि में जलकर ही तेरी मृत्यु निश्चित होगी। छोटे साहिबज़ादे जब शहीदी का जाम पी गये और फिर जब वज़ीर खान अपने महल में पहुँचा तो इस बीबी भागोंं उर्फ बेग़म ज़ेबुलनिशा ने अपना खंज़र वज़ीर खान के सम्मुख निकाला और वज़ीर खान की आँखों के सम्मुख पूरी ताकत से अपने पेट में घोंप लिया था। वज़ीर खान की आँखों के सम्मुख उसकी इस बेग़म ज़ेबुलनिशा ने तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए थे।
वज़ीर खान के अपने स्वयं के जीवन में यह सबसे बड़ा आघात था। जब उसकी स्वयं की बेग़म ज़ेबुलनिशा अर्थात बीबी भागोंं जो कि श्री गुरु गोविंद सिंह जी की निकटवर्ती श्रद्धालु थी, ने स्वयं अपने प्राणों का अंत कर अपने धर्म का निर्वाह किया था। इस बीबी भागों ने अपने आपको श्री गुरु गोविंद सिंह जी के साथ एकनिष्ठ रहकर स्वयं को कुर्बान कर दिया था। ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार प्रसिद्ध इतिहासकार भाई वीर सिंह जी द्वारा रचित ‘कलगीधर चमत्कार’ में भी इस इतिहास का ज़िक्र है। पंथ के महान इतिहासकार डॉ. गुरबचन सिंह राही ने भी इस इतिहास का उल्लेख किया है। इतिहासकार प्रोफेसर कृपाल सिंह बंडोंगर ने भी इस इतिहास पर अपनी मुहर लगाई है।