किसान मोर्चा और मुस्लिम भाईचारा

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दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को पुरे देश से अभूतपूर्व समर्थन प्राप्त हो रहा है। इस जन आंदोलन ने सरकार की नींद हराम कर दी है। गोदी मीडिया द्वारा इसे पंजाब के आतंकवादी आंदोलन बनाने की असफल कोशिश की गई। परंतु इस जन आंदोलन को आज सभी जाति – धर्म के लोगों द्वारा अभूतपूर्व समर्थन दिया जा रहा है। विशेष रूप से इस देश के मुस्लिम भाईचारे ने भी इस आंदोलन को तन–मन–धन से सहयोग कर हमारी कौमी एकता का शानदार प्रदर्शन किया है। यह मुस्लिम भाईचारे ने किसान मोर्चे को समर्थन के साथ – साथ पूर्ण सहयोग कर अपनी देशभक्ति का परिचय दिया है। इतिहास में सिखों का और मुस्लिम भाईचारे का एक अनोखा संबंध है। अवसरवादी और फितूरी लोगों ने इस भाईचारे को अपने उल–जलुल तर्कों से हमेशा नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है। यदि हम सिखों के साथ मुस्लिम भाईचारे को दृष्टिक्षेप करे तो एक अद्भुत–अनोखा इतिहास हमारे सम्मुख आता है। जो कि इस प्रकार है–

गुरु नानक शाह फकीर, हिंदुओं के गुरु मुस्लिमों के पीर।

सिख धर्म के संस्थापक प्रथम ‘श्री गुरु गुरु नानक देव साहिब जी’ का अवतार जगत के कल्याण के लिए हुआ था। आप जी ने अपनी चार उदासी यात्राओं से लगभग 36000 माइल्स की यात्रा कर आम लोगों को जाति, वर्ण और छुआछूत के भेदभाव से दूर रहने के उपदेश दिये। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने प्रेम, करुणा, भाईचारा और सदाचार का संदेश बहुत ही प्रेरणादायक ढंग से आम लोगों को दिये।

गुरु जी ने कर्मकांड, कुरीतियों, विषमता और दोहरे मूल्यों पर तीखे प्रहार किये।

‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी हमारे देश की सांझीवालता के सजग प्रहरी थे। इतिहास गवाह है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय गुरु जी के उपदेशों के मुरीद थे। कुछ नवोदित बुद्धिजीवियों के द्वारा इतिहास की गलत जानकारी देकर आम जनता के दिमाग में कूट–कूट के भरा जा रहा है कि सिखों ने मुस्लिमों के खिलाफ जंग लड़ी और सिख धर्म का उदय ही इसके लिये हुआ है। यहां हमें इतिहास को समझना होगा कि सिख किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं थे। सिख केवल और केवल जुल्म के खिलाफ थे। सिख गुरुओं के समय और गुरुओं क‌े पश्चात के सिख इतिहास को समझने से स्पष्ट हो जाता है कि मुस्लिम समुदाय का सिखों से प्रारंभ से ही स्नेह रहा है।

‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के ईश्वरीय अवतार को सर्वप्रथम पहचानने वाले गुरु जी के प्रथम सिख राय बुलार जी मुस्लिम समुदाय के थे और ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के बाल सखा भाई मरदाना जी एवं ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की दोस्ती विश्व विख्यात है। भाई मरदाना रबाबी गुरु जी के साथ उनकी चार उदासी यात्राओं में परछाई की तरह रहे और गुरु जी के अंतिम समय तक हमेशा गुरु जी के साथ रहे थे।

चौथी पातशाही ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ ने हरमंदिर साहिब अमृतसर की नींव मुस्लिम सूफी संत मियां मीर जी के कर–कमलों से रखवाई थी। सांझीवालता का इससे श्रेष्ठ उदाहरण क्या हो सकता है?

मुगल आक्रांताओं से उस समय का मुस्लिम समाज भी पीड़ित रहा और ऐसे कई मुस्लिम परिवार थे; जो सिख गुरुओं पर अपनी पूरी श्रद्धा और निष्ठा रखते थे। इस समय देश में तथाकथित नवोदित बुद्धिजीवी हर मुसलमान में औरंगजेब, जकरिया ख़ान, वज़ीर खान और फर्रूखसियार को ही क्यों देखते हैं?

करुणा, कलम और कृपाण के धनी दशमेश पिता श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने अपने छोटे से जीवन काल में 14 युद्ध लड़े और उनमें से 13 युद्ध उन हिंदू राजाओं के खिलाफ लड़े जो उस समय के मुगल शासकों के अधीन होकर आम लोगों पर जुल्म ढाते थे। केवल एक युद्ध गुरु जी ने औरंगजेब के खिलाफ लड़ा था और इन सभी पहाड़ी राजाओं के औरंगजेब को उकसाने के बाद ही दशमेश पिता को औरंगजेब के खिलाफ युद्ध लड़ना पड़ा था।

सिख इतिहास में पीर बुद्धु शाह का इतिहास स्वर्ण अक्षरों से अंकित है। पीर बुद्धु शाह और उसके परिवार ने गुरु जी से सच्चा प्यार किया और पूरी श्रद्धा, निष्ठा के साथ दशमेश पिता को भंगानी के युद्ध में साथ दिया था। इस युद्ध में पीर बुद्धु शाह ने अपने 400 मसंदो को और चार पुत्रों को शहीद करवाया था। जब ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने प्रसन्न होकर पीर बुद्धु शाह को कहा कि आप चाहें जो मुझ से मांग सकते हो; उस समय गुरु जी कंघी कर रहे थे और पीर बुद्धु शाह ने गुरु जी से उनकी कंघी में फंसे बालों को मांग लिया था। अपनी विनम्रता और निष्ठा के कारण पीर बुद्धु शाह का नाम इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में अमर हो गया।

इसी तरह मलेरकोटला के राजा शेर मोहम्मद खान (जिन्होंने ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के छोटे साहिबजादे के इंसाफ के लिये वजीर खान के दरबार में आवाज उठाई थी) को भी सिखों के स्वर्णिम इतिहास में सम्मान पूर्वक याद किया जाता है।

जब दशमेश पिता अपने सर्ववंश को शहीद कराकर माछीवाड़ा के जंगल में बिल्कुल अकेले रह गये थे। (इसी समय गुरु जी ने मित्तर प्यारे नू हाल मुरीदा दा कहना वैराग्यमयी पद्य का उच्चारण किया था) तो उनके दो सेवक भाई गनी खान और भाई नबी खान उनको उच्च का पीर बनाकर पालकी में बैठकर मुगलों के घेरे से सुरक्षित दक्षिण की ओर ले गये थे एवं भाई नबी खान और भाई गनी खान ने युद्ध में अपने परिवारों को भी शहीद करवाया था।

भक्त कबीर जी, भाई मरदाना रबाबी, भक्त शेख फरीद जी, भक्त भीखन जी, भक्त सदना जी पीर ऐसे महान संत हुए जिनकी वाणी को ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में स्थान दिया गया है।

मुस्लिम समुदाय के कुछ विशिष्ट लोगों के नाम सिख इतिहास में विशेष रूप से दर्ज हैं। जिनका सिख गुरुओं और सिख इतिहास से विशेष संबंध रहा है। कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं,–

दौलत खान लोधी, साई अल्लाह दित्ता, सैयद तकी, मियां मिट्ठा, शाह सरफ, हमजा गौस, बुड्डन शाह, मखदूम बहाउद्दीन, पीर दस्तगीर, बहलोल दाना,सैय्यद हाजी अब्दुल बुखारी, अब्दुल रहमान , रश जमीर, अल्लाह यार खान जोगी, शाह हुसैन, भाई सत्ता और भाई बलवंत जी, बाबक रबाबी, भाई फतेह शाह, करीम बख्श, मीरा शाह, सैफ खान, मोहम्मद खान पठान गढ़ी नजीर, पीर अराफ दिन, करीम बख्श पठान, हकीम अबू तब,कोटला निहंग खान, बीबी कौलां जी, बीबी मुमताज बेगम इत्यादि…इत्यादि।

कहने का तात्पर्य यह है कि सिख धर्म की लड़ाई जुल्म के खिलाफ थी। इसी तरह नौवीं पातशाही “सृष्टि की चादर ‘श्री गुरु तेग बहादुर जी’ ने तिलक और जनेऊ की रक्षा के लिये अपना शीश देकर महान शहादत दी थी। साथ ही भाई मती दास,भाई सती दास, भाई दयाला जी ने भी हिंदू धर्म की रक्षा के लिए महान शहीदों ने शहादत दी थी। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के जीवन से प्रभावित उस समय के उच्च कोटि के सैय्यद पीर मुसा रोपड़ी जी ने अपना जीवन गुरु जी की सेवा में समर्पित किया था। बहादुरगढ़ के नवाब सैफुद्दीन ने तो अपने महल में गुरु जी की और गुरु परिवार की चार महीने तक सेवा की थी।

विशेषकर हमें पंडित कृपाराम जी को भी याद करना होगा जो दशमेश पिता के उम्र 9 वर्ष और 6 महीने की थी तभी से लेकर उनके अंतिम समय तक एक साये की तरह आप जी दशमेश पिता के साथ रहे थे; एवं सभी प्रकार की धार्मिक शिक्षा देकर उन्हें युद्ध कला में भी निपुण किया था। अपनी 84 वर्ष की आयु में आप जी ने चमकौर की गढ़ी में बड़े साहिबजादों के साथ शहीदी प्राप्त की थी।

इन सभी ऐतिहासिक प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि सिख धर्म की शिक्षाएं यही है कि हमें जुल्म से लड़ना है, जुल्मी की जात से नहीं! यही आज देश की जरूरत भी है। जात-पात का भेद कर हम एक ऐसा विष समाज में फैला रहे हैं; जिसका परिणाम परमाणु बम से भी घातक है।

हमारी सांझीवालता को भक्त कबीर जी ने अत्यंत सुंदर ढंग से इस पद्य में सुशोभित किया है,–

अविल अलह नूरु उपाइआ कुदरति के सभ बंदे||

एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे||

        (अंग क्रमांक 1349)

अर्थात वो ऊर्जा जो अति सूक्ष्म तेजोमय, निर्विकार, निर्गुण, सतत् है और अनंत ब्रह्मांड को अपने में समेटे हुये हैं। किसी भी तंत्र में उसके लिये एक सिरे से उसमें समाहित होती है और एक या ज्यादा सिरों से निष्कासित होती है।

इस सारे इतिहास को दोहराने का कारण यह है कि किसान आंदोलन को कुचलने के लिये सिखों को अंधभक्तों की और से गोदी मीडिया की सहायता से आतंकवादी करार करने की नाकामयाब कोशिश की जा रही है। हमें अपने इतिहास को और अपनी विरासत को याद रख कर गोदी मीडिया की इस साजिश का पर्दाफाश करना होगा। एक बार फिर से अनेकता में एकता के मंत्र को आत्मसात कर हमारी कौमी एकता को मजबूत करना होगा।

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अलमारी और मन

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