ੴ सतिगुर प्रसादि॥
(अद्वितीय सिख विरासत/गुरबाणी और सिख इतिहास)टीम खोज–विचार की पहेल)
अपने अंदर के रावण का दहन करें. . .
विजयादशमी अर्थात आश्विन मास के शुक्ल की दसवीं तिथि (24 अक्टूबर 2023 अर्थात 8 कत्तक आसु सुदी 10 नानक शाही 555) के दिवस संपूर्ण विश्व में हम भारतीय विजयदशमी का त्योहार अत्यंत हर्ष और उत्साह से मना कर अपनी खुशियां बांटते हैं।
इसी दिवस पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। रावण जो पर्याय है बुराई का, धर्म का, अहम् का, पाप और अहंकार का! इस पाप के साम्राज्य पर पुण्य की विजय ही विजयदशमी है परंतु क्या बुराई हार गई है? क्या पाप का, अहम् का, धर्म का और अहंकार का सर्वनाश हो गया है?
जिस रावण के पुतले का दहन हम सदियों से करते आ रहे हैं, वह कोई मामूली हस्ती नहीं था। वह रावण अत्यंत ज्ञानी, गुणी, वेदों का ज्ञाता एवं उसने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था।
वह ‘भक्ति और असीम शक्ति का अनोखा संगम था’। उसका मस्तिष्क 10 मस्तिष्कों के बराबर तेज चलता था, इसलिए तो प्रतीक के रूप में 10 मुंह वाले रावण का दहन किया जाता है। इस कारण से वह अत्यंत अहंकारी था। वह बहुत अच्छी तरह जानता था कि वह काल रहित है उसकी मृत्यु नहीं हो सकती है। रावण के संबंध में गुरबाणी में अंकित है—
आसा॥
लंका सा कोटु समुंद सी खाई॥
तिह रावन घर खबरि न पाई॥
किआ मागउ किछु थिरु न रहाई॥
देखत नैन चलिओ जगु जाई॥रहाउ॥
इकु लखु पूत सवा लखु नाती॥
तिह रावन घर दीआ न बाती॥
चंदु सूरजु जा के तपत रसोई॥
बैसंतरु जा के कपरे धोई॥
गुरमति रामै नामि बसाई।।
असथिरु रहै न कतहूं जाई॥
कहत कबीर सुनहु रे लोई॥
राम नाम बिनु मुकति न होई॥
(अंग क्रमांक 481)
जिस महाबली रावण का लंका जैसा मजबूत किला था और समुद्र जैसी किले की रक्षा हेतु खाई थी, उस रावण के घर की आज कोई खबर नहीं अर्थात कोई वजूद नहीं मिलता। मैं परमात्मा से क्या माँगू क्योंकि कुछ भी स्थिर नहीं रहता अर्थात् सब कुछ नाशवान है। मेरे नयनों के देखते-देखते ही समूचा जगत चला जा रहा है अर्थात् नाश हो रहा है॥रहाउ। जिस रावण के एक लाख पुत्र एवं सवा लाख नाती-पोते थे, उस रावण के घर में आज न दीया और न ही बाती है। रावण इतना बलशाली था कि चन्द्रमा एवं सूर्य देवता उसकी रसोई तैयार करते थे और अग्नि देवता उसके वस्त्र धोता था। जो गुरु की मत द्वारा राम के नाम को अपने हृदय में बसाता है, वह स्थिर रहता है और कहीं भी नहीं भटकता। कबीर जी कहते हैं कि हे लोगो! जरा ध्यान से सुनो, राम के नाम बिना जीव की मुक्ति नहीं होती है।
रावण यह नहीं जानता था कि उस प्रभु-परमेश्वर, अकाल पुरख ने प्रत्येक का अंत उसके जन्म पर ही लिख दिया है, अर्थात जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु तय है। रावण के अहंकार ने उस से एक गलत काम करवाया और वो ही उसकी मृत्यु का कारण बना था। उस रावण ने माता सीता का हरण कर, अपनी अशोक वाटिका में उन्हें बड़ी इज्जत और स्त्री सम्मान के साथ अपनी कैद में रखा था।
इस देश में पुरातन समय से ही रामायण को अनेक लेखकों के द्वारा रचित किया गया है परंतु प्रत्येक लेखक ने रावण के किरदार को खलनायक की तरह ही हमेशा नकारात्मक लिखा है। रावण ने माता सीता का हरण कर उन्हें किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं दिया था अपितु उसका मकसद तो केवल सूर्पनखा की बेइज्जती का श्रीराम को एहसास करना था। जब रावण का अंत श्री राम जी ने किया तो उन्होंने रावण के मृत शरीर के चरण स्पर्श कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस घटना से ज्ञात होता है कि रावण सचमुच एक अत्यंत गुणी, ज्ञानी और विद्वान था। रावण के अंदर की बुराई का अंत तो कर दिया परंतु वर्तमान समय तक उसके किरदार को लिख-लिख कर, राम लीलाओं के माध्यम से या फिल्मी पर्दों पर दिखाकर, उसे इतना बड़ा खलनायक बना दिया कि कोई भी मां अपने बच्चे का नाम रावण नहीं रखना चाहती है। जबकि समाज में चारों ओर रावण खुले आम घूम रहे हैं। यह वो रावण है जो समाज के भीतर तक अपनी पैठ जमाये बैठे है। यह रावण सरे आम बलात्कार, भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार और नर संहार कर रहे हैं। क्या कोई इनके पुतलों का दहन करेगा? मुगल काल में देश की हजारों स्त्रियों को गजनी के बाजार में टके-टके पर बेचा गया था। क्या किसी ने इन अत्याचारी मुगलों के पुतले फूंके? ब्रिटिश राज में हजारों भारतीयों का कत्लेआम हुआ स्त्रियों के बलात्कार हुए पर क्या किसी ने अंग्रेजों के राजा का पुतला फूंका? सन 1984 ई. के सिखों का नरसंहार (नस्ल कुशी) किया गया। हजारों सिखों के गले में जलते हुए टायर डालकर उन्हें जिंदा जला दिया गया। सिख औरत और बच्चियों के साथ सरेआम बलात्कार हुए, सिखों के घरों को, दुकानों को लूट लिया गया परंतु क्या किसी रावण का पुतला फूंका गया? अभी हाल ही में मणिपुर में स्त्रियों के बलात्कार कर उन्हें नग्न घूमाकर, सरेआम कत्ल कर दिया गया। क्या इन दोषी रावणों के कोई पुतले फुकेगा? इन आधुनिक रावणों ने ऐतिहासिक रावण की तुलना में कई जघन्य अपराध किए हैं। इन्हीं दिनों नवरात्रि में माता पूजन और कंजक पूजन (छोटे बच्चियों का पूजन) होता है परंतु क्या देश में बलात्कारों की रोकथाम हुई है? वर्तमान समय में लाखों रावण नेताओं की छत्रछाया में पल रहे हैं। इसलिए किसी भी ऐसे रावण का पुतला फुका नहीं जा रहा है। देश के हर कोने में रावण समस्त लक्ष्मण रेखाओं को लांघकर, सीता हरण को तैयार बैठे हैं। रास्ते पर चलती हुई लड़कियों को अगवा कर सरेआम बलात्कार किए जाते हैं। सोने की लंका वाले रावण के देश में तो ऐसा कुछ नहीं होता होगा परंतु सोने की चिड़िया वाले देश में हजारों रावण लाखों सीताओं का बलात्कार कर रहे हैं और तो और किसी ने आज तक उनका पुतला भी नहीं फुका है। पुतला फूकना तो दूर की बात है, देश के संविधान के अधीन भी यह रावण सजाएं पाने से बच जाते हैं। प्रत्येक वर्ष आज के दिवस रावण का पुतला चिख-चिख कर कहता है. . . मेरा दहन करने वालों ध्यान से दृष्टिक्षेप करो, असली रावण तो तुम स्वयं हो! वर्तमान समय में आवश्यकता है अपने अंदर पनपे रावण का दहन करने की। इस अंदर के रावण का दहन अत्यंत जरूरी है। इन आधुनिक रावणों के पुतले कब फुके जाएंगे? जो देश ही नहीं अपितु देश की बहन-बेटियों को भी नहीं छोड़ते हैं। निश्चित ही रावण के पुतले का दहन कर, हम धन और समय की तो बर्बादी कर ही रहे अपितु प्रदुर्षण भी फैला रहें। इस धन का उपयोग हम लोग-कल्याण हेतु कर सकते हैं। प्रत्येक वर्ष बुराई के प्रतीक रावण का पुतला दहन करने का कोई फायदा नहीं है अपितु आज के दिन हमें इंसानियत की भलाई के लिए आगे आकर प्रण करना चाहिए और वह रावण जो हमारे ही अंदर है, लालच के रूप में, झूठ बोलने की प्रवृत्ति के रूप में, अहंकार के रूप में स्वार्थ के रूप में, वासना के रूप में, आलस्य के रूप में, उस शक्ति के रूप में जो आती है पद और पैसे से, ऐसे कितने ही रूप है, जिनमें छुप कर रावण हमारे ही भीतर रहता है। हमें उन सभी रावणों का दहन करना होगा तो ही विजयदशमी का त्यौहार, सही मायने में मनाना सार्थक होगा। हमें गुरबाणी की शिक्षाओं को आत्मसात करना होगा, गुरबाणी में अंकित है—
रामु गइओ रावनु गइओ जा कर बहु परवारु॥
कहु नानक थिरु कछु नही सुपने जिउ संसारु॥
(अंग क्रमांक 1429)
अर्थात दशरथ सुत राम भी संसार को छोड़ गए, लंकापति रावण भी मौत की आगोश में चला गया, जिसका बहुत बड़ा परिवार था। नानक का कथन है कि यह संसार सपने की तरह है और यहां कोई स्थाई नहीं है।
000